loader

कड़कड़ाती ठंड में बौछारें झेल रहे किसान चाहते क्या हैं?

पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि को लेकर मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ दिल्ली पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार पानी की बौछारों से रोकने की कोशिश कर रही है। इस बीच पुलिस और किसानों के बीच ज़बरदस्त टकराव हुआ है। आख़िर किसान इतने ग़ुस्से में क्यों हैं और क्यों कड़कड़ाती ठंड में भी पानी की बौछारें उनके आक्रोश को ठंडा नहीं कर पा रही हैं? आख़िर क्या हैं उनकी माँगें कि सरकार मानने को तैयार नहीं है? 

ख़ास ख़बरें

किसानों की माँगें और दलीलें

  • सितंबर माह में बनाए गए तीनों नये कृषि क़ानूनों को रद्द किया जाए। 
  • इन क़ानूनों से उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना बंद हो सकता है।
  • किसानों की आशंका है कि नयी व्यवस्था से मंडी व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी। 
  • पहले से ही घाटे में किसान और भी कम दाम पर बेचने को मजबूर होंगे। 
  • विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि किसानों को लागत के अनुसार उपज के दाम नहीं मिलते।
  • इससे किसान कृषि बाज़ार के शोषण का शिकार हो सकते हैं। 
  • पीएम मोदी का दावा है कि नये क़ानून मौजूदा मंडी व्यवस्था को ख़त्म नहीं करते। 
  • उनका यह भी दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी यह ख़त्म नहीं करता। 
  • किसानों को डर है कि नये क़ानूनों से मौजूदा व्यवस्था ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगी। 
  • आशंका है मंडी की जगह नया बाज़ार आ जाएगा जो उद्योगपतियों के कब्जे में होगा।
  • किसान डरे हुए हैं कि धीरे-धीरे पूरा कृषि क्षेत्र कॉरपोरेट घरानों के हवाले हो जाएगा।

पंजाब-हरियाणा में ही विरोध क्यों?

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सबसे ज़्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा से होती है। 
  • इसी कारण इन राज्यों के किसानों की आमदनी औसतन बेहतर रही है।
  • इसके बावजूद किसानों की अनाज की लागत भी सही से नहीं मिल पाती है।
  • मंडी व्यवस्था के प्रभावित होने का सीधा असर इन राज्यों के किसानों पर ही पड़ेगा।
  • दूसरे राज्यों के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पता ही नहीं।
  • नेशनल सैंपल सर्वे 2012-13: अधिकतर किसानों को एमएसपी पता ही नहीं।
  • सर्वे के अनुसार, धान से जुड़े 32.2% किसानों को एमएसपी के बारे में नहीं पता।
  • गेहूँ से जुड़े 39.2% किसानों को एमएसपी के बारे में पता नहीं है। 
  • धान से जुड़े 13.5%, गेहूँ से जुड़े 16.2% किसान ही एमएसपी का लाभ ले पाते हैं।
इस रिपोर्ट से भी साफ़ पता चलता है कि जब किसानों को एमएसपी और मंडी-व्यवस्था के बारे में जानकारी नहीं होगी तो इससे जुड़ा कुछ भी नियम-क़ानून बन जाए उसपर प्रतिक्रिया शायद ही हो पाए। और शायद यही वजह है कि इन नये कृषि क़ानूनों पर इन दोनों राज्यों के अलावा किसी दूसरे राज्य में इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं हुई है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

पंजाब से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें