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कांग्रेस के लिए मुसीबत बनेगा राजस्थान का घमासान?

राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा है कि कांग्रेस आलाकमान की ओर से जो कमेटी बनाई गई थी, वह मुद्दों को सुलझा पाने में फ़ेल रही है। दूसरी ओर, बीते दिनों में इस बात के संकेत मिले हैं कि राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट का सियासी युद्ध फिर से तेज़ हो सकता है। 

राजस्थान कांग्रेस में बीते साल गहलोत और पायलट के बीच हुए सियासी रण में आलाकमान कूदा था और उसने कांग्रेस नेताओं की एक कमेटी बनाई थी। उस वक़्त कहा गया था कि यह कमेटी गहलोत और पायलट खेमों की बात सुनकर अड़चनों को दूर करेगी। लेकिन पायलट कह रहे हैं कि 10 महीने बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं हुआ है। 

एचटी के मुताबिक़, पायलट ने कहा, “मुझसे कहा गया था कि कमेटी कार्रवाई करेगी लेकिन 10 महीने बाद भी मुद्दे सुलझ नहीं पाए हैं।” पायलट का साफ कहना है कि कांग्रेस आलाकमान ने जो वादे उनसे उस वक़्त किए थे, उन्हें पूरा करने में वह फ़ेल रहा है। 

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क़रीबी विधायक का इस्तीफ़ा

पायलट ने एक बार फिर से वही बात कही जो वे कई महीनों से कह रहे हैं। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके पायलट ने कहा कि जिन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए मेहनत की, उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। बीते दिनों ही पायलट के क़रीबी विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफ़ा देने के बाद कुछ बड़ा सियासी घटनाक्रम होने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा कुछ और विधायकों ने नाराज़गी के संकेत दिए हैं। 

पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते ही कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। लेकिन आज की तारीख़ में पायलट सियासी मैदान से बाहर हैं और उनके समर्थक भी नज़रअंदाज किए जाने की लगातार शिकायत करते हैं। ऐसे में सियासी वजूद को जिंदा रखने की छटपटाहट भी साफ दिखाई देती है।

कैबिनेट विस्तार को लेकर किचकिच

राजस्थान में कैबिनेट के विस्तार को लेकर पेच फंसा हुआ है। पायलट और गहलोत अपने ज़्यादा से ज़्यादा समर्थकों को कैबिनेट में शामिल करना चाहते हैं, ऐसे में ये मामला फंसा हुआ है।

पायलट के बयान को लेकर जब एचटी ने राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन से बात की तो उन्होंने कहा कि यह बात करने के लिए सही वक़्त नहीं है हालांकि राजस्थान सरकार में कुछ जगहें खाली हैं और उन्हें जल्द भरा जाएगा। 

प्रदेश कांग्रेस में मिली जगह 

राजस्थान कैबिनेट में 9 पद खाली हैं और पायलट अपने 5 समर्थकों को मंत्री बनाने पर अड़े हुए हैं। लेकिन गहलोत अपने समर्थकों के साथ ही सरकार को समर्थन देने वाले बीएसपी और निर्दलीय विधायकों की पैरवी कर रहे हैं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस में पायलट के समर्थकों को जगह दी गई है और उनकी टीम के तीन लोगों को प्रदेश महासचिव और एक को उपाध्यक्ष बनाया गया है। 

अजय माकन ने पिछले महीने कहा था कि पायलट कांग्रेस के लिए बेहद अहम हैं लेकिन पार्टी कुछ नेताओं की इच्छा के हिसाब से नहीं चल सकती। इस बयान से उन्होंने साफ किया था कि कांग्रेस आलाकमान झुकने के मूड में नहीं है। 

Rajasthan congress crisis Sachin Pilot questions on Panel  - Satya Hindi

गुजरात का प्रभारी बनाने की चर्चा

इस बीच चर्चा चली है कि पायलट को गुजरात में कांग्रेस का प्रभारी बनाया जा सकता है क्योंकि वहां के प्रभारी राजीव साटव का निधन हो चुका है। गुजरात में दिसंबर 2022 में चुनाव होने हैं और ऐसे में चुनाव में ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है। कांग्रेस आलाकमान पायलट को गुजरात का प्रभारी बनाना चाहता है लेकिन पायलट पहले अपने समर्थकों को राजस्थान कैबिनेट में एडजस्ट करवाना चाहते हैं। 

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किसान महापंचायतों में जुटाई भीड़

कुछ महीने शांत रहने के बाद इस साल जनवरी-फरवरी में पायलट ने राजस्थान में कई जगहों पर किसान महापंचायतों का आयोजन किया था। इन महापंचायतों में उन्होंने अच्छी भीड़ जुटाई थी और आलाकमान को दिखाया था कि उन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। 

क्या करें पायलट?

कांग्रेस आलाकमान पायलट की सियासी ताक़त और अहमियत को जानता है। महज 43 साल की उम्र वाले पायलट के पास लंबा सियासी वक़्त बचा है। पायलट जानते हैं कि अपने बेटे वैभव गहलोत को राजनीति में उतार चुके अशोक गहलोत उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंचने देंगे, ऐसे में उन्हें सूझ-बूझ के साथ तो काम लेना ही होगा, सियासत में ख़ुद को जिंदा भी रहना होगा। 

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गुर्जर बिरादरी का साथ 

राजस्थान में गुर्जर बिरादरी ताक़तवर है। गुर्जरों का बड़ा हिस्सा पायलट के साथ खड़ा दिखता है और सोशल मीडिया पर आए दिन पायलट के हक़ में ट्रेंड कराता रहता है। पायलट को जब प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक की गुर्जर बिरादरी ने नाराज़गी जताई थी। 

आर्थिक रूप से सक्षम यह बिरादरी सचिन पायलट में उनके पिता राजेश पायलट का चेहरा देखती है। ऐसे में यह बिरादरी कांग्रेस से नाराज़ न हो इसका भी ध्यान आलाकमान को रखना होगा। 

कांग्रेस के लिए मुश्किल

कांग्रेस की चिंता यह है कि अगर इस घमासान को रोका नहीं गया तो 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सरकार को ख़तरा पैदा हो जाएगा और तब तक अगर सरकार को चला भी लिया जाता है तो मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भीषण लड़ाई होगी, ऐसे में आलाकमान के लिए फ़ैसला कर पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि गहलोत किसी भी क़ीमत पर पायलट की सियासी ताक़त को नहीं बढ़ने देना चाहते और पायलट भी लंबे वक़्त तक बैकफ़ुट पर नहीं रह सकते। 

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क़मर वहीद नक़वी

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