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मोदी की सुनामी में उड़ गया जादूगर गहलोत का जादू

राजस्थान में पाँच महीने पहले जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तब एक नारा चर्चा में था ‘वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं’। यह नारा सच साबित हुआ!

राज्य की जनता ने पाँच महीने पहले वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंका था, लेकिन अब लोकसभा चुनाव में  राजस्थान में जादूगर अशोक गहलोत का जादू मोदी की सुनामी में उड़ गया। 67 साल में राजस्थान में लगातार दूसरी बार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने सभी 25 सीटें जीतीं। इससे पहले 2014 में भी बीजेपी ने 25 सीटें जीती थी।

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मोदी की सुनामी में राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशियों को जिताना तो दूर अपने ही गृह क्षेत्र जोधपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना वैभव नहीं बचा सके। अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत बीजेपी प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत से 2 लाख 70 हजार वोट से हार गए। जोधपुर में गहलोत के विधानसभा क्षेत्र सरदारपुरा में ही उनके बेटे वैभव पिछड़ गये। कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 200 में से 185 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ी। दो मंत्रियों को छोड़कर गहलोत, पायलट समेत सभी मंत्रियों की सीट पर भी कांग्रेस हार गई। कांग्रेस के लिए यह पराजय कितनी बड़ी है इसका अंदाज़ा इससे लगा सकते हैं कि 25 में से 21 सीटों पर 2 लाख से ज़्यादा मतों से कांग्रेस प्रत्याशी हारे।

भीलवाड़ा से बीजेपी प्रत्याशी सुभाष बहेड़िया ने क़रीब छह लाख वोटों से और राजसमंद से दीयाकुमारी ने साढ़े पाँच लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।

कांग्रेस के दिग्गज भी सीटें नहीं बचा सके

अलवर में कांग्रेस के दिग्गज और गाँधी परिवार के नज़दीकी भँवर जितेंद्र सिंह को तो बीजेपी से मैदान में उतरे एक अनाम से साधु बाबा बालकनाथ ने 3 लाख 30 हज़ार वोटों से हरा दिया। दरअसल, बीजेपी ने अलवर में रणनीतिक दाँव खेलते हुए चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए बाबा पर दाँव खेला और जितेंद्र सिंह को हरा दिया। अलवर ‘काउ पोलटिक्स’ को लेकर देशभर में लगातार चर्चा में रहा। बालकनाथ बाबा रामदेव के नज़दीकी हैं और उनको टिकट दिलाने में रामदेव का समर्थन रहा।

इसी तरह कांग्रेस के एक और दिग्गज मानवेंद्र सिंह को बाड़मेर में बीजेपी के कैलाश चौधरी ने 3 लाख 23 हज़ार वोटों से हरा दिया। मानवेंद्र पाँच महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में झालावाड़ में वसुंधरा राजे के सामने उतारा था।

जयपुर ग्रामीण सीट पर बीजेपी के दिग्गज और ओलंपियन राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के सामने कांग्रेस ने ओलंपयिन कृष्णा पूनिया को उतारा था। लेकिन कांग्रेस का दाँव खाली गया।

अब सवाल यह है कि राजस्थान में ऐसा क्या हुआ कि पाँच महीने बाद ही हवा का रुख़ इतना पलटा कि जनता ने जिस कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी, लोकसभा चुनाव में उसका ही सफ़ाया कर दिया।

कांग्रेस की हार के बड़े कारण

एक कारण तो वही है जो देशभर में रहा। राजस्थान में भी चुनाव में बीजेपी का मुद्दा भी मोदी थे, कांग्रेस का भी मोदी और जनता का भी मोदी।

दूसरी वजह यह रही कि राजस्थान की 1070 किलोमीटर लंबी सीमा पाकिस्तान से जुड़ी है। चार लोकसभा क्षेत्र की सीमा पाकिस्तान से जुड़ी है तो क़रीब सात लोकसभा क्षेत्र पाकिस्तान बॉर्डर के नज़दीक हैं। 

जब भारतीय विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में आंतकी कैंपों पर हमला किया तब उसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा औऱ राष्ट्रवाद ही इस इलाक़े में सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था।

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कांग्रेस की रणनीति कमज़ोर

कांग्रेस अगर सूबे में टिकट बँटवारे से लेकर चुनाव अभियान में रणनीतिक सूझबूझ दिखाती तो हालात इतने बुरे नहीं होते। राजस्थान में दो दशक से यह परंपरा रही है कि सूबे में जिसकी सरकार लोकसभा में भी बहुमत उसी पार्टी को। लेकिन इस बार यह परंपरा टूटी।

कांग्रेस और गहलोत से कई ऐसी चूक हुई कि कांग्रेस की हार की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। 

सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर रेस के बीच पाँच महीने पहले जब गहलोत को कुर्सी सौंपी गई थी तब ही तय हो गया था कि गुर्जर मतदाता नाराज़गी में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट कर सकते हैं। पूर्वी-दक्षिणी राजस्थान की क़रीब छह सीटों पर गुर्जर मतदाता निर्णायक है।

पायलट उप-मुख्यमंत्री होने के बावजूद न तो सरकार में सक्रिय दिखे और न ही राजस्थान में कांग्रेस के मुखिया होने के बावजूद संगठन की कमान संभालते दिखे। पायलट ने राजस्थान से अधिक फ़ोकस दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार पर किया था।

उधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बेटे की चिंता इतनी थी कि आधी से ज़्यादा रौलियाँ और रोड शो गहलोत ने बेटे के लोकसभा क्षेत्र में ही किए।

कांग्रेस ने जब टिकट बँटवारा किया तब छह सीटों पर इसलिए कमज़ोर प्रत्याशी उतारे, क्योंकि मज़बूत प्रत्याशी माने जाने वाले गहलोत मंत्रीमंडल में मंत्री हैं, वे सांसद बनने के लिए मंत्री पद दाँव पर लगाने को तैयार नहीं थे।

भीलवाड़ा से कांग्रेस सीपी जोशी को उतारना चाहती थी, लेकिन जोशी विधानसभा अध्यक्ष हैं और वह इस पद को छोड़ने के मूड में नही थे,  जोशी की सलाह पर उनके ही एक नज़दीकी रामपाल शर्मा को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। शर्मा साढ़े छह लाख वोटों से हारे।

इसी तरह अजमेर से स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा को मज़बूत चेहरा माना जा रहा था, लेकिन रघु शर्मा के तैयार नहीं होने पर एक उद्योगपति रिझू झुनझुनवाला को टिकट दे दिया। वह बुरी तरह हारे… ऐसी स्थिति कमोबेश आधा दर्जन सीटों पर रही।

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कांग्रेस की रणनीति फ़ेल

कांग्रेस की हार की वजह एक और यह रही कि कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी सरकार की उपलब्धियों या वादों पर चुनाव लड़ने के बजाय मोदी को टारगेट करना चुनाव का एजेंडा बनाया।

अशोक गहलोत हर रैली के भाषण में शुरुआत मोदी पर हमले से करते और उनका पूरा भाषण क़रीब-क़रीब मोदी पर निशाना साधने पर फोकस रहता। 

दूसरी तरफ़ मोदी की अगुवाई में राजस्थान में बीजेपी ने कांग्रेस के गेमचेंजर कर्ज़माफी के मुद्दे पर ही अटैक करती रही। कांग्रेस अपने ही मुद्दे पर हार गई।

बीजेपी की रणनीति सफल

बीजेपी ने एक रणनीतिक तैयारी के साथ वसुंधरा राजे को लोकसभा चुनाव में सूबे में प्रचार का चेहरा नहीं बनयाा। राजे की न तो टिकट बँटवारे में अहम भूमिका थी और न ही चुनाव अभियान में। राजे को पीछे कर अमित शाह ने राजस्थान में पूरी कमान अपने हाथ में ले ली थी। चेहरा सिर्फ़ मोदी का। इससे पाँच महीने राजे के विरोध में खड़ा वोट बैंक भी मोदी के साथ खड़ा हो गया। यह संदेश देने के लिए कि वसुंधरा अब चेहरा नहीं, टिकट बँटवारे में राजे की नापसंद वाले कुछ नेताओं को टिकट दे दिया। नागौर सीट उस हनुमान बेनिवाल को दे दिया जिनका मुद्दा ही वसुंधरा राजे का विरोध करना रहा। इसी तरह दौसा की सीट पर राजे की ज़िद के बावजूद उसकी पसंद के नेता को टिकट नहीं दिया गया।

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दुर्गा प्रसाद सिंह

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