शिखर धवन से तलाक के बाद आयशा मुखर्जी ने तलाक़ को लेकर जो बातें कहीं हैं वह समाज में महिलाओं के हालात को बयाँ करते हैं। वह कहती हैं कि उन्हें लगता था कि तलाक़शुदा कहा जाना ख़राब एहसास है और एक गंदा शब्द है।
भारत के शीर्ष न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत ख़राब है। ऐसे में अपनी किसी परेशानी के लिए आख़िर महिलाएँ न्याय की उम्मीद लगाएँ तो कहाँ और किससे?
कुंभ में लाइट का काम देख रहे मुज़फ़्फरनगर के मुल्ला जी महमूद आजकल ख़बरों में हैं। जूना अखाड़े के साथ उनका साथ 22 साल पुराना नाता है। मुल्ला जी कुंभ में साधुओं के तंबू रोशन कर रहे हैं।
हमारे ही समाज के बलात्कार बाँकुरों ने बलात्कार की ऐसी नयी प्रविधि खोज कर दिखा दी जो औरत की हत्या से कई गुणे दर्दनाक थी। क्या यह वही दुर्गा-काली वाला हमारा देश है?
राजनीति, मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिलाओं को अकसर किनारे लगा दिया जाता है। पुरुष नहीं चाहते कि महिलाएँ उनसे आगे निकलें क्योंकि इससे पुरुषवादी वर्चस्व का अंत हो जाएगा।
बीजेपी से जुड़े किसी शख़्स ने फ़ेसबुक पर राहुल गाँधी और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा से जुड़ी अभद्र टिप्पणी की, जिससे कांग्रेस बेहद ख़फ़ा है। पुलिस मामले की जाँच कर रही है।
क्या आज का यह नया विमर्श केवल सुविधाभोगी और ग़ुलामी का आनंद लेती महिलाओं के लिए है जो फैशनेबल कपड़ों से होता हुआ सैनिटरी नैपकिन पर विश्रमित हो बैठता है?
नसीर को डर तब लगने लगा जब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए। नसीर, बुलंदशहर हिंसा को, एक क्रूरतम अपराध की घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।
बॉलिवुड के जाने-माने कलाकार नसीरुद्दीन शाह को देश के मौजूदा हालात पर गुस्सा आता है जहाँ एक गाय की मौत को ज़्यादा अहमियत दी जाती है एक पुलिसवाले की मौत से।
जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कैलाश विजयवर्गीय ने सोनिया गाँधी के लिए किया है, उससे यही सवाल खड़ा होता है कि उनके जैसे लोग क्या हिंदू संस्कारों को समझते भी हैं?