क्या हो जब आपको किसी मोबाइल गेम को खेलने के कारण पुलिस गिरफ़्तार कर ले। क्या हो जब किसी मोबाइल गेम की वजह से व्यक्ति आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए? और अगर ऐसा है तो यह गेम कैसे है? यह तो अभिशाप है। लेकिन आजकल मोबाइल गेम खेलने के कारण आत्महत्या कर लेना, मानसिक संतुलन खोना, मर्डर करने जैसी ख़बरें आए दिन आती रहती हैं।
बढ़ती टेक्नोलॉजी के दौर में अब मोबाइल गेम खेलना भी अभिशाप साबित हो रहा है। पिछले दिनों ब्लू व्हेल गेम चर्चा में रहा था जिसको खेलने के बाद लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे थे। ब्लू व्हेल गेम में ऐसे-ऐसे टास्क करने को दिए जाते थे जिससे इसे खेलने वाले व्यक्ति के पास अंत में आत्महत्या करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता था।
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ऐसा ही एक और मोबाइल गेम चर्चा में है और इसकी लत लगने की वजह से लोग मरने-मारने पर उतारू हो गए हैं। इस गेम की लत का शिकार किशोरावस्था के बच्चे ही ज़्यादा हो रहे हैं। गेम का नाम है पबजी (PUBG- PlayerUnknown's Battleground)।
यह ऑनलाइन मोबाइल गेम मार्च 2017 में शुरू हुआ था और उसके बाद से यह पूरी दुनिया में ऑनलाइन गेम खेलने वालों के बीच ख़ासा लोकप्रिय हो गया है। भारत में भी बहुत बड़ी संख्या में लोगों को इस गेम की लत लग चुकी है।
इसके सामने चाय-कॉफी जैसी चीजों की लत तो मामूली सी लगती हैं। इस खेल ने लोगों को ऐसा पागल बनाया है कि लोग दिन-रात मोबाइल और लैपटॉप पर यही खेलते हुए नज़र आते हैं।
क्या है पबजी (PUBG)?
पबजी (PUBG) कम्प्यूटर और मोबाइल पर खेला जाने वाला ऑनलाइन मल्टीप्लेयर गेम है। जिसमें 100 लोग पैराशूट से अलग-अलग टापू पर कूदते हैं और फिर हथियार ढूँढकर विरोधी खिलाड़ियों को मारते हैं। जिसके बाद 100 लोगों में आख़िर तक ज़िंदा रहने वाला खिलाड़ी ही विजेता बनता है। जिसको पबजी की भाषा में ‘चिकन डिनर’ लाना कहते हैं।इस गेम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे खेलते वक़्त आप अपनी टीम के साथियों और यहाँ तक कि विरोधियों से भी बात कर सकते हैं। गेम के दौरान संवाद इस खेल का दिलचस्प और ज़रूरी हिस्सा है। यह खेल लगभग आधे घंटे तक चलता है जिसमें जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है युद्ध क्षेत्र (Battleground) छोटा होता जाता है और बचे हुए खिलाड़ियों को उसके भीतर ही रहकर मारना होता है।
करोड़ों के पबजी मोबाइल टूर्नामेंट्स
इस खेल का दायरा कितना बड़ा हो गया है इसका इस बात से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसके अंतराराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स तक कराए जा रहे हैं, जिनमें करोड़ों की इनामी राशि रखी जाती है। बता दें कि 2018 में दुबई में 'पबजी मोबाइल स्टार चैलेंज' इसी का एक उदाहरण है जिसमें छह महाद्वीपों से 20 टीमों ने हिस्सा लिया था। बता दें कि इसका आयोजन टेन्सेंट गेम्स और पबजी कॉर्पोरेशन ने कराया था। इसमें 6 लाख अमेरिकी डॉलर की ईनामी राशि भी रखी गई थी।
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पबजी मोबाइल गेम के दीवानों की भारत में एक बहुत बड़ी तादाद है। यह गेम लांच होने के बाद से बहुत ज़्यादा कामयाबी हासिल कर चुका है और इसे 20 करोड़ से ज़्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है। भारत में इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए टेन्सेंट गेम्स और पबजी कॉरपोरेशन ने ‘ओपो पबजी मोबाइल इंडिया सीरीज 2019’ का भी आयोजन किया था। जिसमें 1 करोड़ की ईनामी राशि रखी गई थी।
पबजी ने ‘पबजी मोबाइल क्लब ओपन 2019’ नाम से एक और अंतरारष्ट्रीय टूर्नामेंट की घोषणा कर दी है। जिसकी ईनामी राशि 2 मिलियन डॉलर रखी गई है और इसमें विश्व की 16 टीमें भाग लेंगी।
जानलेवा साबित हो रहा गेम
इस गेम की लत बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। भारत में इसके खेलने वालों में लगभग 40 फीसदी 8वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र हैं। जिनकी पढ़ाई पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। यह खेल डरावना तब लगने लगता है जब इस खेल के एडिक्शन के कारण देश के कई कोनों से बच्चों की आत्महत्या करने की ख़बरें आती हैं।मुंबई के कुर्ला के नेहरू नगर इलाक़े के एक 18 वर्षीय लड़के ने पबजी खेलने के लिए परिवार के द्वारा मोबाइल न दिलाए जाने के बाद घर में छत के पंखे से फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
ऐसी ही आत्महत्या की ख़बर गुजरात के राजकोट से भी आई थी। जहाँ 15 साल के एक बच्चे ने घरवालों के पबजी खेलने से रोकने के कारण आत्महत्या कर ली थी। इसके साथ ही इस खेल के कारण बच्चे स्कूल जाने से भी कतराने लगे हैं। वे स्कूल न जाकर इस खेल को ही दिन-रात खेलते रहते हैं। जिससे उनकी पढ़ाई पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
गेम के कारण पहुँचाना पड़ा अस्पताल
इसके कारण बच्चों को नींद न आने की समस्या भी सामने आ रही है। वे इस गेम में इस क़दर रम गए गए हैं कि समाज से पूरी तरीके़ से कटने लगे हैं। इस गेम के कारण उनमें आक्रामकता भी बढ़ रही है। आँखों की रोशनी प्रभावित होने के साथ-साथ मोटापा और ब्लड प्रेशर की बीमारियों की वजह भी यह खेल बन रहा है।बच्चे तो बच्चे इस गेम की चपेट में बड़े भी आ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के एक फ़िजिकल ट्रेनर को इस गेम की ऐसी लत लगी कि उसको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उसे इस गेम की इतनी बुरी लत लगी कि वह लगातार 10 दिन तक इस गेम को खेलता रहा और अपना मानसिक संतुलन खो बैठा। 10 दिन खेलने के बाद वह गेम के लास्ट राउंड तक तो पहुँच गया लेकिन इसे पूरा करने के बाद वह अपने आप को चोट पहुँचाने लगा। जिसके बाद उसको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
गुजरात में लगा गेम पर प्रतिबंध
इस मोबाइल गेम की इस कदर लोकप्रियता और जानलेवा साबित होने के कारण गुजरात सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा राज्य के शिक्षा विभाग ने स्कूलों को आदेश जारी किया है कि अगर कोई बच्चा पबजी या इस तरीके़ के कोई और गेम खेलते हुए पाया जाए तो उसको तुरंत इसके नुक़सान बताकर उसकी आदत को छुड़ाया जाए।10वीं और 12वीं परीक्षा के कारण जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट बोर्ड ने भी गवर्नर सतपाल मलिक से इस गेम पर प्रतिबंध लगाने की माँग की थी। इसके अलावा गोवा के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रोहन खाउंटे ने भी इस गेम पर राज्य में रोक लगाने के लिए क़ानून बनाने की ज़रूरत बताई। खाउंटे ने कहा कि इस गेम ने राक्षस का रूप ले लिया है, छात्र इसे खेलने में व्यस्त हैं और पढ़ाई से मन हट रहा है।
पबजी खेलने पर होगी गिरफ़्तारी
गुजरात के राजकोट में पबजी खेलते हुए 10 युवाओं को सार्वजनिक जगहों से गिरफ़्तार किया गया है। जिनको बाद में जमानत पर छोड़ भी दिया गया। बता दें कि पाँच दिन पहले स्थानीय पुलिस ने इस गेम को बैन करने का नोटिस जारी किया था। जिसके बाद से पबजी खेलते हुए किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने का आदेश है। इस गेम को लेकर राज्य सरकार ने जनवरी में ही निर्देश जारी कर दिए थे।ग़ौरतलब है कि इस बैन के दौरान PUBG खेलने वाले किसी भी यूज़र के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी और दोषी पाए जाने पर आईपीसी की धारा 188 के तहत जेल भी जाना पड़ सकता है। मालूम हो कि आईपीसी की धारा 188 तब लगती है जब किसी क़ानूनी संस्था द्वारा जारी किए गए निर्देशों का कोई उल्लंघन करे।
पुलिस का कहना है कि यह गेम युवाओं में आक्रामकता को तो जन्म देता ही है, साथ में उनके विकास पर भी रोक लगा देता है। इससे बच्चों की मानसिकता और उनकी पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है।
पीएम ने भी किया था जिक़्र
29 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ‘परीक्षा पे चर्चा’ में हज़ारों बच्चों को संबोधित किया था, जिसमें बच्चों के माता-पिता भी शामिल थे। इस दौरान एक बच्चे की माँ ने प्रधानमंत्री से पूछा कि उनका बच्चा पहले पढ़ाई में अच्छा था लेकिन ऑनलाइन गेम खेलने के चलते वह पढ़ाई में कमज़ोर हो गया है। इस पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा था कि ‘ये पबजी वाला है क्या?’ जिसके बाद पूरा स्टेडियम ठहाकों और तालियों की आवाज़ से गूँज उठा था।चीन में हैं अलग नियम
ऑनलाइन गेम्स की बीमारी से भारत ही नहीं दुनिया के और देश भी जूझ रहे हैं। मगर चीन ने इससे निपटने के लिए भारत से कहीं बेहतर तरीका अपनाया और ऑनलाइन गेम बनाने वाली कंपनियों को उनके देश के लिए नियम बदलने को मजबूर किया। चीन ने अपने यहाँ एक ऑनलाइन एथिक्स रिव्यू कमेटी का गठन किया है। जिसका काम ऑनलाइन खेलों पर नज़र रखकर यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी खेल उनके सामाजिक और नैतिक नियमों का उल्लंघन न करे।चीन में 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए पबजी ने एक ‘एज लॉक’ का फ़ीचर दिया है। जिससे वह गेम खेलने वाले बच्चे के चेहरे को डिटेक्ट कर उसकी उम्र की पहचान कर लेता है।
यह फ़ीचर अभी चीन के 12 शहरों में ही लागू है। इसके अलावा अगर इस उम्र के बच्चे सीमित समय से ज़्यादा गेम खेलना चाहते हैं तो उनको अपने अभिभावकों में से किसी की आईडी से ‘साइन इन’ करना होगा। ग़ौरतलब है कि यह इस उम्र के बच्चों को इस गेम की लत से बचाने का अच्छा तरीक़ा है।
मनोरोग की श्रेणी में किया शामिल
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने गेम खेलने की लत को मनोरोग की श्रेणी में डाला है और ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ शब्द को 11वें अंतराराष्ट्रीय रोगों के वर्गीकरण में भी शामिल किया है। ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ अख़बार में छपी ख़बर के मुताबिक़, डॉ. जिनी का कहना है कि पबजी की लत ड्रग्स और अल्कोहल जैसी है। वह कहते हैं इसकी ज़द में वे बच्चे ज़्यादा आते हैं जो अपने सहपाठियों से घुल-मिल नहीं पाते हैं। यह खेल उनको समाज की ज़रूरत से दूर कर देता है। वे अपने आप में ही रहने लगते हैं।डॉ. जिनी ने बताया कि उनके पास पबजी से संबंधित एक मामला आया था जिसमें एक बच्चे ने नहाना, ब्रश करना और स्कूल जाना तक छोड़ दिया था। कुछ और मनोचिकित्सकों की मानें तो इस गेम को खेलने के बाद बच्चों में आक्रामकता और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। बच्चे की स्मरण शक्ति पर भी असर पड़ता है। इसके साथ ही वे मोबाइल को दूर किए जाने पर उग्र होने लगते हैं।
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