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अब तेलुगू राज्यों में भी 'ऑपरेशन लोटस' चलाएगी बीजेपी?

कर्नाटक में 'ऑपरेशन लोटस' सफल होने के बाद बीजेपी ने दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए एक ख़ास रणनीति बनाई है। कई कोशिशों के बावजूद बीजेपी दक्षिण भारत के ज़्यादातर राज्यों में अपनी स्थिति मज़बूत करने में नाकामयाब रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी कर्नाटक और तेलंगाना को छोड़ दक्षिण के किसी अन्य राज्य में कुछ भी हासिल नहीं कर पायी थी। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में उसे एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली। यानी दक्षिण के तीन राज्यों में मोदी लहर बेअसर थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बीजेपी के रणनीतिकारों ने दक्षिण के सभी राज्यों में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए एक ख़ास रणनीति बनायी है। तो क्या बीजेपी कर्नाटक की तरह दूसरे तेलुगू राज्यों में ऑपरेशन लोटस शुरू करेगी? 

बता दें कि 'ऑपरेशन लोटस' बीजेपी के अभियान का एक फ़ॉर्मूला है। दरअसल, कर्नाटक में 2008 में बीजेपी 110 सीटें पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन बहुमत से तीन सीटें पीछे रह गई थी। बहुमत पाने के लिए बीजेपी ने तब 'ऑपरेशन लोटस' फ़ॉर्मूले को अपनाया था। हालाँकि शुरुआत में 'ऑपरेशन लोटस' बीजेपी के चुनाव प्रचार का हिस्सा था, लेकिन बाद में इसका नाम जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने से जुड़ गया।

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सूत्रों के मुताबिक़, आंध्र प्रदेश में बीजेपी की नज़र तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और कांग्रेस के उन नेताओं पर है जो अपनी जाति, अपने ज़िला या निर्वाचन क्षेत्र पर ख़ासी पकड़ रखते हैं। आंध्र प्रदेश में हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में टीडीपी की क़रारी हार हुई थी। आंध्र की 175 विधानसभा सीटों में से टीडीपी सिर्फ़ 23 सीट ही जीत पायी। 36 साल पुरानी इस पार्टी के इतिहास में यह सबसे बुरी हार है। लोकसभा चुनाव में भी टीडीपी का प्रदर्शन काफ़ी ख़राब रहा। आंध्र की 25 लोकसभा सीटों में से टीडीपी सिर्फ़ 3 सीटें ही जीत पायी। लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और सत्ता में भी आयी।

चुनाव में टीडीपी के कई दिग्गज नेताओं की हार हुई। बीजेपी की नज़र टीडीपी के उन बड़े नेताओं पर है जो चंद्रबाबू नायडू से नाराज़ हैं।

टीडीपी में कई नेता ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि चंद्रबाबू नायडू की ग़लतियों की वजह से ही टीडीपी की शर्मनाक हार हुई। कई नेता मानते हैं कि चंद्रबाबू ने एनडीए से बाहर आकर सबसे बड़ी ग़लती की। इसके बाद चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश में पार्टी संगठन और चुनाव की तैयारियों पर पूरा ध्यान देने के बजाय केंद्र में मोदी विरोधी मोर्चा बनाने पर ध्यान दिया। इतना ही नहीं, चंद्रबाबू नायडू ख़ुद पर लग रहे परिवारवाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देने में भी पूरी तरह से विफल रहे। इसी तरह की कई ग़लतियाँ चंद्रबाबू ने कीं और उन्हें इसका ख़ामियाज़ा चुनाव में क़रारी हार के रूप में भुगतना पड़ा। 

चंद्रबाबू पार्टी की कमान बेटे को देंगे?

इस समय चंद्रबाबू नायडू की उम्र 69 साल है। अगले विधानसभा चुनाव तक वह 74 साल के हो जाएँगे। ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए पार्टी की कमान अपने बेटे नारा लोकेश को सौंप देंगे। टीडीपी के कई नेताओं को नारा लोकेश के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है, क्योंकि अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में वे हार गए, वह भी मंत्री रहते हुए।

बीजेपी के लिए मौक़ा

शुरुआत से ही टीडीपी के साथ रहे इन नेताओं को अब नये नेता और नयी पार्टी की तलाश है। चूँकि ये नेता वाईएसआर कांग्रेस में जा नहीं सकते, इनमें से ज़्यादातर की नज़र बीजेपी पर है। बीजेपी की भी नज़र इन्हीं नेताओं पर है। लेकिन बीजेपी टीडीपी से आने वाले हर नेता को अपने में शामिल नहीं करना चाहती है। मज़बूत जनाधार वाले नेताओं को ही बीजेपी लेना चाहती है। बीजेपी की प्राथमिकता कापू जाति के असरदार नेताओं पर है। आंध्र में कापू जाति की जनसंख्या 18 फ़ीसदी है। कापू जाति से संबंधित दो फ़िल्मस्टार भाइयों - चिरंजीवी और पवन कल्याण ने अपनी-अपनी पार्टी बनायी थी। लेकिन दोनों पार्टियाँ - प्रजा राज्यम और जन सेना फ्लॉप रहीं। चिरंजीवी ने अपनी पार्टी प्रजा राज्यम कांग्रेस में विलय कर दी थी। 

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ऐसे पैर पसार सकती है बीजेपी 

राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, कापू जाति के लोगों को ऐसी पार्टी की तलाश है जो उन्हें नेतृत्व करने का मौक़ा दे सके। इन लोगों को फ़िलहाल बीजेपी में ही उम्मीद नज़र आ रही है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कांग्रेस छोड़ने वाले कापू जाति के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री कन्ना लक्ष्मी नारायण को पार्टी की आंध्र प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया था। कापू जाति के अलावा बीजेपी की नज़र टीडीपी और कांग्रेस के उन नेताओं पर है जो ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय में आने वाली जातियों से हैं। टीडीपी और कांग्रेस के कई नेताओं को लगता है कि आंध्र प्रदेश में टीडीपी और कांग्रेस को फिर से अपना जनाधार बढ़ाने में सालों लग जाएँगे। ऐसे में इनके लिए बीजेपी ही सबसे अच्छा विकल्प है। बीजेपी को भी इन नेताओं में ही अपना भविष्य नज़र आता है। 

आंध्र प्रदेश में बीजेपी को मज़बूत करने और 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक सत्ता की दावेदार बनाने की ज़िम्मेदारी राम माधव, जी. वी. एल. नरसिम्हा राव को दी गई है। नरसिम्हा राव अमित शाह के क़रीबी हैं और राम माधव आरएसएस से जुड़े हैं और उनकी संगठनात्मक कुशलता पर सभी को यक़ीन है।

तेलंगाना के लिए भी रणनीति

तेलंगाना में भी बीजेपी की नज़र कांग्रेस और टीडीपी के ऐसे नेताओं पर है जो पार्टी में नाखुश हैं। बीजेपी की नज़र तेलंगाना में रेड्डी जाति के अलावा दलितों और अन्य पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर है। सूत्रों के मुताबिक़, बीजेपी को लगता है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की 'मुसलिम तुष्टिकरण' की नीति से हिन्दू वोटबैंक उसकी तरफ़ लामबंद होगा। लेकिन चुनाव में तगड़े उम्मीदवार होने ज़रूरी हैं। इसी वजह से बीजेपी की नज़र टीडीपी और कांग्रेस के दमदार नेताओं पर है। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर दमदार नेता आते हैं तो उनके साथ कार्यकर्ता आएँगे और एक बार बड़ी संख्या में कार्यकर्ता आये तो तेलंगाना में बीजेपी का जनाधार काफ़ी बढ़ेगा।

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अरविंद यादव

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