पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार के ख़िलाफ़ वहां की सरकारों ने सख़्ती दिखाई है लेकिन भारत इस मामले में पीछे क्यों दिखता है।
राहुल गांधी ने हिंदुत्व का सवाल खड़ा कर एक बहस को जन्म दिया है। आखिर क्या है हिंदुत्व? क्या हिंदुत्व और हिंदू धर्म एक ही है? या दोनों में फ़र्क़ है? आशुतोष ने जानने की कोशिश की प्रो अपूर्वानद से।
महात्मा गांधी का इस्तेमाल क्या सरकारों ने अपने-अपने तरीक़े से नहीं किया है? राज्यों ने क्या गांधी की एक ऐसी सरलीकृत छवि निर्मित नहीं की है जो किसी के लिए असुविधाजनक नहीं रहे?
किस तरह के सकारात्मक रवैए की अपेक्षा की जाती है? प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर एक दिन में 2.5 करोड़ टीके लगने से पहले और बाद में 50-60 लाख ही टीके लगाया जाना कैसी सकारात्मकता है और केरल में ईसाई-मुसलमान सद्भाव की बात करना कैसी सकारात्मकता?
इमा राडुकानू की यूएस ओपन में जीत पर चार-चार मुल्कों में तालियाँ बज रही हैं। इमा आप्रवासी हैं। उन्होंने ब्रिटेन को 44 साल बाद यह ट्रॉफी दिलाई है। यह जीत ऐसे समय में आई है जब इंग्लैंड की गृह मंत्री आप्रवासियों को वापस धकेलने की बात कह रही हैं।
नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों को संदेश दिया। उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम और दुनिया के बाक़ी हिस्सों के इस्लाम के बीच फर्क बताया है। आख़िर उनके बयान पर विवाद क्यों है?
हज़ारों अफ़ग़ानिस्तानी अपना देश छोड़ कर कहीं और पनाह लेना चाहते हैं। अभी जब अफ़ग़ानिस्तान के लोग त्राहिमाम करते हुए पूरी दुनिया से शरण मांग रहे हैं तो उसकी प्रतिक्रिया क्या है?
तालिबान के पहले बयानों में जनतंत्र को ठुकरा दिया गया है। हम जो न तो राज्य हैं, न विशेषज्ञ, हम तालिबान को जनतांत्रिक, मानव अधिकार के उसूलों की कसौटी पर ही परखेंगे।
एनएसओ का कहना है कि वह पेगासस सिर्फ़ सरकारों या उनकी संस्थाओं को बेचती है। तो क्या भारत में भारत सरकार यह कर रही है? या कोई और सरकार इसके ज़रिए भारत के पूरे तंत्र की जासूसी कर रही है? दोनों ही गंभीर चिंता का विषय हैं।
दानिश सिद्दीकी की तसवीरें खोयी इंसानियत को तलाश करने की अपील हैं। तालिबान अपने अफ़सोस की रस्म से निकलकर यह असली काम कर पाएँगे या भारत में या पूरी दुनिया में हिंसा और युद्ध को ही जीवन बना देनेवाले इस अपील को सुन पाएँगे, पूछ रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
क्या भारत में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव होता है? उत्तर हम सब जानते हैं। लेकिन अगर प्यू रिपोर्ट पर यक़ीन करें तो अधिकतर भारतीयों ने अपने जीवन में किसी प्रकार के जातिगत और धर्म-आधारित भेदभाव का सामना नहीं किया है। ऐसा क्यों है?
श्मशान खाली हैं और कब्रों की खुदाई करनेवालों के हाथों को कुछ आराम है। हस्पतालों में भी बिस्तर अब मिल जाएँगे। तो क्या हम इसे प्राकृतिक चक्र मानकर बैठ जाएँ? कितने लोग इस बीच गुज़र गए, उनके बारे में सोचने की जहमत कौन ले?
क्या आपको उत्तर प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों के बाद की हिंसा और उसमें हुई हत्याओं के बारे में कुछ मालूम है? अगर नहीं तो क्यों, यह आपको पूछना चाहिए।