वैचारिक विचारधारा से इतर जातियों की गिनती कर अपनी पार्टी से जोड़ने का यह फ़ॉर्मूला बीएसपी को नुक़सान पहुँचा रहा है और वह लगातार अपने जनाधार गँवा रही है।
2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई वादे किए थे। सरकार को लगभग 5 साल पूरे हो चुके हैं, ऐसे में यह जवाब माँगा जा रहा है कि उन वादों का क्या हुआ।
उत्तर भारत में विपक्ष ने मोदी जी के समक्ष हथियार डाल दिये हैं। अब निहत्थे अवाम को अपनी लाज ख़ुद अपने हाथों से बचानी होगी क्योंकि मीडिया उसके वस्त्र लेकर पहले ही पेड़ पर चढ़ गया है।
‘आप’ और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा या नहीं, इसे लेकर चर्चाएँ जोरों पर हैं। इस पूरे मुद्दे पर नज़र डालें तो पता चलता है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेस कंफ़्यूज़्ड है।
एजीपी के साथ पुनर्मिनल से बीजेपी को क्या लाभ मिलेगा? इस पर फ़िलहाल तो कुछ कहा नहीं जा सकता है पर यह तय है कि विपक्षी कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ में घमासान मचेगा।
पुरानी अदावत भुला कर मैनपुरी में बसपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के लिए रैली करेंगी तो मुज़फ़्फ़रनगर में अखिलेश यादव राष्ट्रीय लोकदल मुखिया अजित सिंह के लिए वोट माँगेंगे।
जिस देश की 60 फ़ीसदी आबादी रोजाना तीन डॉलर यानी 210 रुपये से कम की आमदनी में अपना गुजारा करती है, वहाँ एक अनुमान के मुताबिक़ 2019 के आम चुनाव में प्रति वोटर आठ डॉलर यानी 560 रुपये ख़र्च होने जा रहा है।
आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली न सही हरियाणा में ही कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी से चुनावी गठबंधन हो जाए।
महागठबंधन की काट, प्रियंका फ़ैक्टर से निपटने और एंटी इनकंबेंसी को रोकने के लिए बीजेपी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर अपने मौजूदा सांसदों के टिकट काटने जा रही है।