पश्चिम बंगाल में असम की तरह एनआरसी लागू नहीं है, लेकिन इसकी दहशत उससे कम भी नहीं है। ऐसी अफ़रातफ़री है कि कई लोगों की मौत के दावे किए गए हैं। तो क्यों है इतनी दहशत कि स्थिति मौत तक पहुँच जा रही है?
एनआरसी में दिल्ली में घमासान क्यों मचा है? एनआरसी पर क्यों अरविंद केजरीवाल और मनोज भिड़ गए। क्या दिल्ली में बाहर से आकर रहने वालों को डराया जा रहा है? देखिए, क्या है राजनीतिक दलों की रणनीति 'शैलेश की रिपोर्ट' में।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महमूद मदनी गुट ने केंद्र की मोदी सरकार को देश भर में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण लागू करने की चुनौती दी है। महमूद मदनी ने कहा है पता तो चले कि देश भर में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं।
क्या बीजेपी अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर कर देगी? अमित शाह ने एक बार फिर से क्यों जोर देकर कहा है कि उनकी सरकार घुसपैठियों को चुन-चुनकर देश से बाहर करेगी? क्या यह राजनीतिक बयानबाज़ी है? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
क्या राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) अब बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गले की फांस बन गया है। यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि संघ ने मोदी सरकार से कहा है कि वह नागरिकता संशोधन विधेयक को दिसंबर में एक बार फिर संसद में पेश करे।
एनआरसी को लेकर अख़बार के पहले पन्ने पर सुर्खी के तौर पर यह संख्या नाटकीय लगती है। यह संख्या कैसे हासिल हुई और इसके क्या मायने हैं? गणित का सवाल होगा, कितने में कितना घटाने से यह 19,06,657 की संख्या मिलेगी?
एनआरसी के अंतिम सूची से कोई ख़ुश है क्या? छात्र से लेकर संगठनों के नेता, बीजेपी की सहयोगी पार्टी और सरकार के मंत्री तक खफा हैं। एनआरसी लाने वाले लोग ही नाराज़ क्यों है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस की सूची जारी कर दी गई है और 19 लाख उससे बाहर रह गए हैं। तो क्या ये सारे लोग विदेशी हैं? और क्या यह खेल पूरे देश में दुहराया जाएगा?
जिस बीजेपी ने एनआरसी को सबसे बड़ा च़ुनावी मुद्दा बनाया था और पूरे राज्य में इसकी लहर फैला दी थी, वह अब नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस का विरोध भला क्यों कर रही है?
एनआरसी की सूची से बाहर रह गए 19 लाख लोगों के पास क्या विकल्प हैं? उनके साथ क्या सलूक किया जाएगा और वे अंत में कहाँ जाएंगे, इस पर अलग अलग तरह की बातें कही जा रही हैं।