अफ़ग़ानिस्तान पर भारत की विदेश नीति क्या है? शांघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान में सर्वसमावेशी सरकार और आतंक-मुक्ति की बात पर जोर दिया। लेकिन इसमें नया क्या है?
अमेरिकी वापसी के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में शांति की उम्मीद कम क्यों दिखाई देती है? कई गुटों में भिड़ंत की आशंका है। हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, वह कई नए हिंसक गुट पैदा कर देगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जो विधेयक प्रस्तावित किया है, उसकी आलोचना विपक्षी दल इस आधार पर कर रहे हैं कि यह मुसलिम विरोधी है।
भारत की विदेश नीति कैसी है? अफ़ग़ानिस्तान में भारत की हालत अजीब-सी हो गई है। तीन अरब डॉलर वहाँ खपानेवाला और अपने कर्मचारियों की जान कुर्बान करनेवाला भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में मांग की थी कि कोरोना के टीके का एकाधिकार ख़त्म किया जाए और दुनिया का जो भी देश यह टीका बना सके, उसे यह छूट दे दी जाए।
बंगाल में दर्जन भर कार्यकर्ता आपस में लड़ मरे, वह नेताओं के लिए पहला राष्ट्रीय संकट बन गया लेकिन चार हजार लोग कोरोना से मर गए, इसकी कोई चिंता उन्हें दिखाई नहीं पड़ी।
यह संतोष का विषय है कि भारत में कोरोना मरीजों के लिए नए-नए तात्कालिक अस्पताल दनादन खुल रहे हैं, ऑक्सीजन एक्सप्रेस रेलें चल पड़ी हैं, कई राज्यों ने मुफ्त टीके की घोषणा कर दी है, कुछ राज्यों में कोरोना का प्रकोप घटा भी है।
ऑक्सीजन की कमी के कारण नाशिक के अस्पताल में हुई 24 लोगों की मौत दिल दहलानेवाली ख़बर है। ऑक्सीजन की कमी की ख़बरें देश के कई शहरों से आ रही हैं। लेकिन बंगाल में उनका चुनाव अभियान पूरी बेशर्मी से जारी है।
यह प्रसन्नता की बात है कि हरिद्वार में चल रहे कुंभ-मेले को स्थगित किया जा रहा है। यहाँ पहले शाही स्नान पर 35 लाख लोग जुटे थे। 27 अप्रैल तक चलनेवाले इस कुंभ में अभी लाखों लोग और भी जुटते यानी हज़ारों-लाखों लोग कोरोना के नए मरीज बनते।