डीके शिवकुमार
कांग्रेस - कनकपुरा
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क्या उत्तर प्रदेश बीजेपी में चेहरे को लेकर किसी तरह का कन्फ्यूजन है?, इस सवाल का जवाब हां में है। क्योंकि कुछ ही दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि अगर आप 2024 में नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं तो 2022 में योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाएं। लेकिन रविवार को प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शाह के उलट बयान दिया है।
मौर्य से जब पत्रकारों ने पूछा कि बीजेपी किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी तो मौर्य ने साफ कहा कि बीजेपी कमल के फूल के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। मौर्य के बयान पर वहां मौजूद पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर ख़ुशी जाहिर की।
मौर्य 2017 में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और तब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे भी थे। हालांकि तब वह मन मसोसकर रह गए थे। उस वक़्त योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में बड़ा हाथ अमित शाह का ही माना गया था। ख़ुद शाह इस बात को कह चुके हैं कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्होंने बहुत लोगों से लड़ाई लड़ी है।
लेकिन बीते दिनों में जातीय जनगणना की मांग ने जिस तरह जोर पकड़ा, उससे एक बार फिर किसी ओबीसी चेहरे को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बहस छिड़ गई। बीजेपी से भी सवाल पूछे गए।
बीजेपी ने ओबीसी समुदाय पर फ़ोकस करते हुए इस समुदाय के नेताओं को मोदी और योगी कैबिनेट के विस्तार में अहमियत भी दी और समुदाय के हक़ में कई बड़े फ़ैसले भी लिए। इसके बाद माना जा रहा था कि बीजेपी मौर्य का मुख्यमंत्री बनने का सपना 2022 में पूरा कर सकती है।
अमित शाह के बयान के बाद मौर्य के समर्थकों की उम्मीदों को तो झटका लगा है लेकिन मौर्य ने ताज़ा बयान देकर यह साफ करने की कोशिश की है कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं और कोई भी नेता इस चुनाव में चेहरा नहीं है।
मौर्य उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ी जाति के बड़े चेहरे हैं। वह पहले भी इस बात को कह चुके हैं कि यह चुनाव के बाद ही तय होगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। बीजेपी अगड़े समुदाय से मुख्यमंत्री बनाएगी या पिछड़े से, इसको लेकर काफ़ी बहस उत्तर प्रदेश की राजनीति में चल रही है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर अमित शाह सक्रिय हो गए हैं। प्रदेश बीजेपी के पदाधिकारियों के साथ बैठक के अलावा हाल ही में उन्होंने लखनऊ में पार्टी का मेगा सदस्यता अभियान शुरू किया था। ये अमित शाह ही हैं जिन्होंने बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जोरदार जीत दिलाई थी और विपक्षी दलों का लगभग सूपड़ा साफ़ कर दिया था। तब अमित शाह पार्टी के महासचिव होने के साथ ही उत्तर प्रदेश के प्रभारी भी थे।
इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए शाह ने सालों तक उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रही बीजेपी की 2017 के चुनाव में सत्ता में धमाकेदार वापसी कराई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत में शाह के योगदान को लेकर उनकी सार्वाजनिक रूप से तारीफ़ कर चुके हैं। इसलिए इस बार भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अमित शाह की अहम भूमिका रहेगी, इस बात से क़तई इनकार नहीं किया जा सकता है।
ऐसे में शाह और मौर्य के अलग-अलग बयानों का क्या मतलब समझा जाए। यह माना जाए कि बीजेपी के अंदर पिछड़े वर्ग के नेता इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा ठोकेंगे। ऐसे में बीजेपी का चुनावी चेहरा कौन होगा, इसे लेकर घमासान तेज़ होने के आसार हैं।
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