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मायावती पर सीबीआई की कार्रवाई का कहीं राजनीतिक मक़सद तो नहीं?

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए 21 सरकारी चीनी मिलों की बिक्री में हुई कथित गड़बड़ियों की जाँच शुरू कर दी है। आरोपों के मुताबिक़, 2011-12 में मायावती की अगुवाई वाली सरकार ने 21 सरकारी चीनी मिलों को बाज़ार दर से कम पर बेचा था, जिसके कारण सरकारी खजाने को कथित तौर पर 1,179 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। सीबीआई ने इन कथित गड़बड़ियों की जाँच के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की है और छह शुरुआती जाँच (पीई) भी शुरू की हैं। 
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सीबीआई के अफ़सरों के मुताबिक़, राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 21 चीनी मिलों की बिक्री और देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर), हरदोई, रामकोला, चिट्टौनी और बाराबंकी में बंद पड़ी सात मिलों की ख़रीद में फ़र्जीवाड़े और धोखाधड़ी की सीबीआई जाँच कराने की माँग की थी। इससे पहले लखनऊ पुलिस इस मामले में जाँच कर रही थी। ख़बरों के मुताबिक़, सीबीआई ने उन सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की मिलों की ख़रीद के दौरान फ़र्जी दस्तावेज़ जमा किए थे। 

चीनी मिल घोटाले में तत्कालीन मायावती सरकार के कई नेता व अफ़सर जाँच के घेरे में होंगे। मिलों की बिक्री की प्रकिया में शामिल रहे नेता व अधिकारियों पर सीबीआई जल्द शिकंजा कस सकती है। 

इससे पहले उत्तर प्रदेश में गोमती रिवर फ़्रंट व खनन घोटाले को लेकर भी एजेंसियाँ कार्रवाई कर चुकी हैं। कुछ महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय ने भी मायावती सरकार के दौरान हुए कथित स्मारक निर्माण घोटाले में कई जगहों पर छापेमारी की थी।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में चुनाव के ऐन मौक़े पर हो रही इन कार्रवाइयों को लेकर यह सवाल उठ रहा है कि कहीं केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के इशारे पर राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने के मक़सद से तो ये कार्रवाई नहीं की जा रही हैं?

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ मिलकर लड़ने के कारण बीजेपी को ख़ासी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

लोकसभा चुनाव से पहले हुए कई सर्वेक्षणों में इस बात का दावा किया गया था कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 35 से 40 सीटें मिल सकती हैं जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को 73 सीटें मिली थीं। 

एसपी-बीएसपी का कहना है कि दोनों दलों का गठबंधन होने से केंद्र की बीजेपी सरकार घबरा गई है और राजनीतिक साज़िश के तहत सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल कर छापेमारी की जा रही है।

हाल ही में कर विभाग की ओर से दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंत्री कैलाश गहलोत और विधायक नरेश बालियान के ठिकानों पर भी छापा मारा गया था। पिछले महीने मायावती के क़रीबी अफ़सर नेतराम के ठिकानों पर भी छापेमारी की कार्रवाई हुई थी।

ग़ौरतलब है कि 2012 से 2016 के बीच राज्य में हुए कथित खनन घोटाला मामले में सीबीआई ने हाल ही में लखनऊ में आईएएस अफ़सर बी. चंद्रकला के घर पर भी छापेमारी की थी। सीबीआई ने बुंदेलखंड में अवैध खनन के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर चंद्रकला समेत 11 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया था। 

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में हाल में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, पिछले छह महीने में, आयकर विभाग की ओर से 15 बार विपक्षी नेताओं और उनके सहयोगियों के घरों पर छापेमारी की कार्रवाई की गई है।

मोदी सरकार की हुई आलोचना 

विपक्षी नेताओं के यहाँ डाले जा रहे इन अंधाधुंध छापों को लेकर मोदी सरकार की ख़ासी आलोचना भी हुई। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने तंज कसते हुए कहा था, ‘प्रधानमंत्री मोदी आयकर विभाग के जरिये विपक्षी नेताओं के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रहे हैं। चुनाव के मौक़े पर सरकारी मशीनरी का इस तरह दुरुपयोग किया जाना बेहद चिंताजनक है।’ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी इस तरह की कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था।

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अगस्त 2017 में गुजरात से राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल उम्मीदवार थे, तब कर्नाटक सरकार के एक मंत्री जो गुजरात के कांग्रेस विधायकों का प्रबंधन कर रहे थे, उनके यहाँ आयकर विभाग ने छापे मारे थे। तब यह आरोप लगा था कि मोदी और अमित शाह के इशारे पर छापे मारने की कार्रवाई हुई है। 

कुछ महीने पहले ही कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अखिलेश यादव के क़रीबियों, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं, पी. चिदंबरम और लालू यादव के परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ सीबीआई ने छापेमारी की कार्रवाई की थी।

जवाब किसी के पास नहीं

देश में हमेशा से ही सीबीआई, आयकर विभाग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर बहस होती रही है। हर सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने विरोधियों को डराने-धमकाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करती है। हाल में विपक्षी नेताओं के ठिकानों पर हुई ताबड़तोड़ छापेमारी की इन कार्रवाइयों से यह बात साबित भी होती है। लेकिन चुनाव के दौरान ही इस तरह की कार्रवाइयाँ क्यों की जा रही हैं, इसे लेकर सवाल उठना लाज़िमी है और शायद इसका जवाब न इन एजेंसियों के पास है और न ही केंद्र की मोदी सरकार के पास। 
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क़मर वहीद नक़वी

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