कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही किसान महापंचायतों ने इस इलाक़े में राजनीतिक ज़मीन खो चुकी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को जिंदा होने का मौक़ा दे दिया है। मुज़फ्फरनगर से लेकर बाग़पत और बिजनौर से लेकर मथुरा तक इन महापंचायतों में बड़ी संख्या में लोग उमड़े हैं। लेकिन शुक्रवार को शामली में हुई महापंचायत इन सबसे अलग थी क्योंकि इसे प्रशासन की मंजूरी नहीं मिली थी। बावजूद इसके महापंचायत हुई और इसमें बड़ी संख्या में लोग भी जुटे।
आरएलडी का आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही है और चौधरी चरण सिंह के यहां से निकलकर देश का प्रधानमंत्री बनने के कारण लोग उन्हें इस इलाक़े का गौरव बताते हैं। उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे उनके बेटे चौधरी अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी के लिए साल 2013 तक सब ठीक था।
दंगों के बाद बदला माहौल
2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को यहां से 4 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी लेकिन 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदू मतों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ और जाट और मुसलमान दोनों आरएलडी से दूर हो गए। नतीजा यह हुआ कि अजित और जयंत दोनों चुनाव हार गए। लेकिन किसान आंदोलन में जिस तरह जयंत चौधरी की सक्रियता दिख रही है और लोग महापंचायतों में उमड़ रहे हैं, उससे लगता है कि आरएलडी अपनी ख़त्म हो चुकी राजनीतिक ज़मीन को फिर से हासिल कर सकती है।
बीजेपी के खेमे में हलचल
राकेश टिकैत के भावुक होने के बाद अब तक हुई लगभग सभी महापंचायतों में जयंत चौधरी ने शिरकत की है। इनमें वे बीजेपी पर हमलावर होते हैं और आने वाले चुनावों में उसे सबक सिखाने की अपील करते हैं। ये साफ दिखाई देता है कि जाट और मुसलिम फिर से नज़दीक आ रहे हैं और इससे बीजेपी के खेमे में जबरदस्त हलचल है।
शामली की महापंचायत में जयंत ने कहा कि बीजेपी और कंगना रनौत किसानों को आतंकवादी कहते हैं और लोग आगे से इस अभिनेत्री की फ़िल्म न देखें। जयंत कहते हैं, ‘अगर कोई किसान पर लाठी चलाएगा, उंगली उठाएगा तो हम उस उंगली को तोड़ने का काम करेंगे और हम उन्हें धमकी देना चाहते हैं।’
योगी सरकार को चुनौती
जयंत योगी सरकार को चुनौती देते हुए कहते हैं कि जो मर्जी धारा लगा लो। मथुरा से सांसद रह चुके जयंत ने कहा, ‘योगी जी आपका माथा बहुत बड़ा है, धारा 144 उस पर छपवा लो। हम तो नहीं रुके, ना आगे रुकेंगे, रोक लो अगर रोक सको तो।’
शामली के जिला प्रशासन ने इस इलाक़े में धारा 144 लगा दी थी और 3 अप्रैल तक जिले में किसी भी बड़ी सभा को करने पर रोक लगा दी है। लेकिन इसके बाद भी महापंचायत का होना साफ दिखाता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब किसान आरएलडी के बैनर तले एकजुट हो रहे हैं।
आरएलडी ने कहा है कि वह भारतीय किसान यूनियन के साथ मिलकर कृषि क़ानूनों के विरोध में उत्तर प्रदेश में 5 फ़रवरी से लेकर 18 फ़रवरी तक लगातार बैठकें करेगी। ऐसे में योगी सरकार के प्रशासन और किसानों के बीच टकराव हो सकता है।
2019 के लोकसभा चुनाव की तरह 2022 के विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी और समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अगर किसान आंदोलन लंबा चलता है और जाट-मुसलिम आरएलडी के पक्ष में एकजुट होते हैं तो बीजेपी को यहां जबरदस्त सियासी नुक़सान हो सकता है।
लामबंद हो रहे जाट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही इन किसान महापंचायतों में एक ख़ास बात और है। वह यह कि इनमें जाट समुदाय की अच्छी भागीदारी देखने को मिल रही है, उनमें भी नौजवानों की संख्या ज़्यादा है। मुज़फ्फरनगर की महापंचायत में नरेश टिकैत ने कहा कि चौधरी अजित सिंह को हराना भूल थी। इससे यह साफ होता है कि आरएलडी के पक्ष में एक बार फिर जाटों के भीतर सहानुभूति है। राकेश टिकैत के भावुक होने के बाद इस इलाके के जाट बहुल गांवों से लोग दिल्ली के लिए निकल पड़े थे।
राकेश टिकैत ख़ुद आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। इस आंदोलन ने टिकैत की किसानों के साथ ही जाट बिरादरी के बीच में भी पकड़ मजबूत की है।
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