उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार हाई कोर्ट के आदेशों को भी स्वीकार नहीं करती, यह बात किसी आम आदमी, किसी राजनेता ने नहीं कही है बल्कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस गोविंद माथुर ने कही है।
वकालत की ख़बरों को कवर करने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच को दिए इंटरव्यू में जस्टिस माथुर से पूछा गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य में आंशिक लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था, क्या जस्टिस माथुर मानते हैं कि हाई कोर्ट का यह आदेश न्यायिक अतिक्रमण था या ऐसा आदेश उस वक़्त की ज़रूरत था।
बता दें कि राज्य सरकार इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
जवाब में जस्टिस माथुर कहते हैं, “मुझे यह नहीं समझ आया कि आख़िर उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक सही आदेश का पालन क्यों नहीं किया।”
जस्टिस माथुर कहते हैं, “आख़िर क्यों राज्य सरकार न्यायपालिका को अपना दुश्मन समझती है। न्यायपालिका भी राज्य का एक चेहरा है। हाई कोर्ट का वह आदेश किसी भी तरह से अतिक्रमण नहीं था, यह पूरी तरह सही था और आदेश में सब कुछ साफ लिखा गया था।”
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में पांच ऐसे शहरों को चिन्हित किया था जहां पर कोरोनो को लेकर हालात हर दिन बिगड़ रहे थे। जस्टिस माथुर ने कहा कि उत्तर प्रदेश की नौकरशाही हाई कोर्ट के आदेशों को स्वीकार नहीं करती।
लगभग तीन साल तक चीफ़ जस्टिस रहे जस्टिस माथुर ने अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम फ़ैसले दिए। उन्होंने योगी सरकार को आदेश दिया था कि वह सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले लोगों के जो पोस्टर्स सड़कों पर लगाए गए थे, उन्हें हटाए। जस्टिस माथुर ने कई मामलों में स्वत: संज्ञान भी लिया था।
अपनी राय बतायें