'यह कोरोना टेस्ट के सैम्पल नहीं थे बल्कि कोरोना संक्रमित मरीजों के रुटीन ब्लड चेकअप वाले सैम्पल थे और ऐसी कोई स्टडी नहीं आई है जिसमें बंदरों में कोरोना फैलने की बात सामने आई हो।'
ये दोनों बयान इस पत्रकार के नहीं हैं बल्कि मेरठ स्थित लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के हैं। किसी पत्रकार को इतने बड़े डॉक्टर/प्रोफेसर/प्रिंसिपल के शब्दों या बयान का खंडन करने का अधिकार तो नहीं लेकिन सवाल उठाने का लोकतांत्रिक अधिकार ज़रूर है। आगे बढ़ने से पहले आपको मामला क्या है, ये बता देते हैं।
शुक्रवार को मेरठ स्थित मेडिकल कॉलेज परिसर में बंदरों का एक समूह तीन रोगियों के ब्लड सैम्पल छीन कर भाग गया। एक स्वास्थ्यकर्मी ये ब्लड सैम्पल जांच के लिए परिसर में ही स्थित बायोकैमिस्ट्री लैब में लेकर जा रहा था। अब आप इस ख़बर की शुरुआत में लिखे गए पहले कथन को एक बार फिर पढ़ लीजिए।
लाल लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एस.के.गर्ग का कहना है कि ये कोरोना टेस्ट के सैम्पल नहीं थे बल्कि उन मरीजों के रुटीन ब्लड चेकअप वाले सैम्पल थे। भले ही ये सैम्पल कोरोना के परीक्षण के लिए नहीं थे लेकिन कोरोना के उन रोगियों के थे जिनका वहां इलाज चल रहा है।
गौरतलब है कि मेरठ में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज ही अकेला संस्थान है, जिसमें मेरठ जोन के कई जिलों के रोगी भर्ती हैं। यहां कोरोना के अलावा बाक़ी सभी तरह के उपचार और ओपीडी बंद हैं। ऐसे में क्या रक्त में कोरोना संक्रमण से इनकार किया जा सकता है। फिर लापरवाही को छिपाने और अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह कहना कहाँ तक जायज है कि ये सैम्पल कोरोना के टेस्ट के नहीं बल्कि रुटीन जांच के थे।
वायरल वीडियो से सामने आई घटना
यह मामला सामने भी नहीं आता, अगर वहां मौजूद एक शख्स ने इस घटना का अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर न किया होता। इस वीडियो में पेड़ पर बैठे बंदर टेस्टिंग किट चबाते नजर आ रहे थे और मेडिकल कॉलेज परिसर भी दिख रहा था। वीडियो वायरल हुआ तो मीडियाकर्मी ख़बर के सत्यापन के लिए मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के पास पहुंच गए। उन्होंने यह तो स्वीकार किया कि मामला मेडिकल कॉलेज का ही है लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से बचने की पूरी कोशिश की।
इसी क्रम में उन्होंने एक सवाल के जवाब में यह भी कहा कि ऐसी कोई स्टडी नहीं आई है जिसमें बंदरों में कोरोना फैलने की बात सामने आई हो। प्रिंसिपल साहब के इस कथन के विषय में तो विशेषज्ञ ही बता सकते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। लेकिन सामान्य ज्ञान की बात यही है कि मनुष्य का पूर्वज है बंदर और अधिकांश परीक्षण मनुष्य पर प्रयोग करने से पूर्व बंदरों पर ही किए जाते रहे हैं, इसलिए यह कहना हास्यास्पद या गैर जिम्मेदाराना ही कहा जाएगा कि चमगादड़ से मनुष्य तक पहुंचे वायरस की बंदरों में होने की अभी कोई स्टडी नहीं आई है।
मेडिकल कॉलेज परिसर में लंबे समय से बंदरों का आतंक है। आए दिन बंदरों के समूह वार्डों में घुसकर उत्पात मचाते देखे जाते हैं। मरीजों के बेड पर बंदरों का बैठ जाना आम घटना है। मरीजों के साथ आए तीमारदारों से खाने-पीने का सामान झपट्टा मारकर ले जाना भी आम बात है।
कोरोना महामारी के दौर में मेडिकल कॉलेज की एक के बाद एक अव्यवस्थाएं सामने आ रही हैं। स्वास्थ्यकर्मियों की लापरवाही, कुप्रबंधन और मरीजों से दुर्व्यवहार के आरोपों की वजह से शासन ने कुछ दिन पहले ही पूर्व प्रिंसिपल आर.सी. गुप्ता को निलंबित कर दिया था।
बंदरों का तकनीशियन के हाथ से ब्लड सैम्पल्स को किट सहित छीन कर ले जाना भी लापरवाही की गंभीर घटना है जिससे पता चलता है कि मेडिकल कॉलेज और चिकित्सालय का प्रशासन घोर लापरवाह है और अब भी सिर्फ अपना बचाव करने और कागजी खानापूर्ति में लगा है।
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