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निर्वेंद्र मिश्रा की हत्या: अपराध क्यों बढ़ते जा रहे हैं उत्तर प्रदेश में?

पूरे 'प्रदेश' का अगर नक्शा खींचा जाए तो दर्जनों ज़िले हर दिन हिंसा, हत्या और बलात्कार के अपराधों के दरया में बुरी तरह डूबे मिलेंगे। चोरी, छिनैती, डकैती और अपहरण की घटनाओं की तो गिनती ही अलग है। क्या मुख्यमंत्री अपराध से निबटने की किसी नई योजना को लेकर जनता-जनार्दन के बीच में आने वाले हैं या वह अपने पुराने अपराध निबटाऊ मन्त्र-एनकाउंटर की नीतियों से ही काम चलाएँगे?
अनिल शुक्ल

लखीमपुर खीरी में बीते रविवार दिनदहाड़े हुई पूर्व विधायक निर्वेंद्र मिश्रा 'मुन्ना' की हत्या ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'निर्भय प्रदेश' के कथित दावों पर एक और तमाचा जड़ दिया है। इसी ज़िले में गुज़रे एक सप्ताह में अलग-अलग घटनाओं में लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या की 2 वारदातें हो चुकी हैं। लखीमपुर 'प्रदेश' का अकेला ज़िला नहीं है जहाँ हत्या और बलात्कार की घटनाएँ हो रही हैं। वस्तुतः अपराध की ऐसी वारदातें आज पूरे प्रदेश का रोना है।

लखीमपुर की घटना बड़ी लोमहर्षक है जो यह सवाल खड़ा करती है कि जहाँ बेख़ौफ़ भीड़ एक पूर्व विधायक को सरेआम लात घूँसों से मार डालने में कोई गुरेज़ नहीं करती वहाँ एक सामान्य व्यक्ति कैसे स्वयं को सुरक्षित मान कर चल सकता है। 

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पालिया तहसील के त्रिकोलीया पडुआ क्षेत्र की जिस एक एकड़ ज़मीन के लिए यह हिंसा हुई उस पर पूर्व विधायक का क़ब्ज़ा था जबकि वह विरोधी गुट के समीर गुप्ता के नाम से थी। इस बाबत स्थानीय सिविल कोर्ट में मुक़दमा भी चल रहा था। स्थानीय चौकी प्रभारी रामबरन गुप्ता पर आरोप है कि वह लगातार समीर गुप्ता आदि का समर्थन करते आ रहे थे। 6 सितम्बर को जब पूर्व विधायक को ख़बर मिली कि समीर गुप्ता एक बड़े हथियारबंद दल-बल के साथ उक्त ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने पहुँचा है तो उन्होंने पहले पुलिस चौकी को सूचना दी। पुलिस द्वारा एक्शन लेने में ना-नुकुर करने पर वह अपने पुत्र के साथ घटना स्थल पर जा पहुँचे।  वहाँ मौजूद भीड़ ने पिता-पुत्र की जमकर पिटाई की जिसके चलते श्री मिश्रा बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़े जबकि उनका पुत्र संजीव मिश्रा गंभीर रूप से घायल हो गया। ख़बर मिलने पर जब उनके समर्थक वहाँ पहुँचे तो दोनों घायलों को अस्पताल में ले गए जहाँ डॉक्टरों ने पूर्व विधायक को मृत घोषित कर दिया। बेटे को आईसीयू में रखा गया है।

इस घटना की आम जन में बड़ी व्यापक प्रतिक्रिया हुई और देर रात तक श्री मिश्रा के अनुयायी सड़क पर उनका शव लेकर जाम लगाए बैठे रहे। बाद में वरिष्ठ अधिकारियों के समझने-बुझाने से लोगों ने जाम खोला। श्री मिश्रा का रात में ही पोस्ट मार्टम किया गया। यद्यपि सोमवार अपराह्न श्री मिश्रा के अंतिम संस्कार स्थल पर मौजूद सपा के राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सांसद रविप्रकाश वर्मा ने 'सत्य हिंदी' से बातचीत में कहा, ‘यह भूमाफिया और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से की गई हिंसक कारगुज़ारी है और अब प्रशासन अपने अधिकारियों को बचाने की कोशिश कर रहा है।’ उन्होंने बताया कि वह ‘इस पूरे मुद्दे को संसद में उठाएँगे। साथ ही बहुत जल्द लखनऊ से ज़िम्मेदार लोगों का एक 'जन आयोग' लखीमपुर आएगा।’

यहाँ पहुँची लखनऊ रेंज की आईजी लक्ष्मी सिंह ने सम्बंधित क्षेत्रीय वृत्त अधिकारी को ज़िला मुख्यालय से अटैच कर दिया (यह कोई पनिशमेंट नहीं) और सम्बद्ध पुलिस चौकी इंचार्ज और 2 सिपाहियों को निलंबित कर दिया। नामजद 5 में से 2 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया, 3 नामजद सहित अनेक अज्ञात लोगों की तलाश जारी है।

पूरे 'प्रदेश' का अगर नक्शा खींचा जाए तो दर्जनों ज़िले हर दिन हिंसा, हत्या और बलात्कार के अपराधों के दरया में बुरी तरह डूबे मिलेंगे। चोरी, छिनैती, डकैती और अपहरण की घटनाओं की तो गिनती ही अलग है। तभी 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के गुज़रे साल का यूपी में हत्या का रिकॉर्ड का प्रतिदिन 12 हत्याओं का औसत का आँकड़ा देख कर कोई ताज्जुब नहीं होता। ताज्जुब सिर्फ़ इस बात का होता है कि कैसे मुख्यमंत्री आए दिन बिना किसी अपराध बोध के ‘प्रदेश’ को 'अपराध मुक्त' होने का दावा जताते रहते हैं और कैसे प्रधानमंत्री गाहे-बगाहे योगी आदित्यनाथ को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश को देश का सबसे बेहतरीन प्रदेश 'डिक्लियर' करते रहते हैं।

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प्रदेश में अपराध की बढ़ती दशा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सपा सांसद ने कहा, ‘यह मठ चलाने वाले लोग हैं जिन्हें गवर्नेंस की एबीसी नहीं आती। सबसे बड़ी दिक़्क़त यह है कि थाने और चौकियाँ बिकी हुई हैं। सवाल यह है कि इनसे होने वाली कमाई का पैसा ऊपर कहाँ जा रहा है।’

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पिछले दिनों लखनऊ में हुई बैठक में कोरोना और लॉकडाउन की ख़ातिर तेज़ी से गिरती अर्थव्यवस्था के चपेट में आने से जिस तरह से यूपी में अपराध बढ़ रहे हैं और इन अपराधों में पुराने पेशेवर अपराधियों के साथ-साथ नए ग़ैर पेशेवर भी अपराध की दुनिया में प्रविष्ट हो रहे हैं, उस पर गंभीर चिंता प्रकट की गई? सवाल यह है कि क्या 'प्रदेश' सरकार के पास इस प्रकार की चिंता से निबटने का कोई थिंक टैंक है? क्या मुख्यमंत्री अपराध से निबटने की किसी नई योजना को लेकर जनता-जनार्दन के बीच में आने वाले हैं या वह अपने पुराने अपराध निबटाऊ मन्त्र-एनकाउंटर की नीतियों से ही काम चलाएँगे?

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अनिल शुक्ल

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