आगामी 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे। यह मंदिर उसी जगह बनेगा, जहाँ 6 दिसंबर 1992 तक बाबरी मसजिद हुआ करती थी।
उस दिन ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच कारसेवकों के जत्थों ने सदियों पुरानी मसजिद को नेस्तनाबूद कर दिया। 2019 में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच ने पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर हिन्दुओं के मालिकाना हक़ को जायज़ मानते हुए उनके पक्ष में फैसला दे दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि मुसलिम पक्षकारों को अयोध्या में ही किसी प्रमुख स्थान पर मसजिद के लिए 5 एकड़ ज़मीन दी जाए। सभी मुसलमान सुप्रीम के फैसले से संतुष्ट नहीं थे।
फ़ैसले के बाद
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड फ़ैसले को चुनौती देने के पक्ष में था और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड पुनर्विचार याचिका दायर करने के खिलाफ। वक़्फ़ बोर्ड की दलील थी कि जब वह यह पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें उच्चतम न्यायालय का फैसला मंज़ूर होगा तो अब उसे चुनौती देना वाजिब नहीं होगा।पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़फ़रयाब जिलानी कहते हैं कि बोर्ड फ़ैसले का एहतराम करता है, लेकिन इत्तेफाक नहीं। सुन्नी बोर्ड के निर्णय के बाद पर्सनल लॉ बोर्ड ने फ़ेसले को चुनौती देने का विचार त्याग दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला नवम्बर 2019 मे सुनाया। लेकिन एक साल पहले 2018 में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने फ़ैजाबाद ज़िला ख़त्म कर अयोध्या को ही नया ज़िला घोषित कर दिया था।
सरकार की चाल?
पहले अयोध्या ज़िला फ़ैजाबाद का हिस्सा हुआ करता था। ज़िला घोषित करने से पहले अयोध्या को नगर निगम का स्तर दिया गया। इसी से जुड़ा प्रदेश सरकार का एक महत्वपूर्ण आदेश दिसंबर 2019 में आया। कैबिनेट ने 41 गाँवों को अयोध्या नगर निगम में जोड़ कर शहर की सीमा का विस्तार कर दिया।इस फ़ैसले से सरकार को जो ज़मीन राम जन्मभूमि के आस-पास देनी पड़ती, वह अब कहीं भी दी जा सकती थी। फ़ैसले में ‘प्रमुख स्थान’ को परिभाषित नहीं किया गया और उसका निर्णय केंद्र और राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया था।
कहाँ बनेगी मसजिद?
अंत में मुसलमानों को मसजिद के लिए जो ज़मीन मिली, वह राम मंदिर से लगभग 30 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गाँव में लखनऊ-फैजाबाद हाईवे पर स्थित है।ज़मीन को लेकर भी मुसलमानों में मतभेद है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष ज़फर अहमद फ़ारूकी सरकार द्वारा दी गई ज़मीन लेने के लिए राजी हो गए। पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुसलिम संगठनों ने ज़मीन लेने से साफ़ इनकार कर दिया। बोर्ड के एग्जीक्यूटिव के वरिष्ठ सदस्य मौलाना यासीन उस्मानी ने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड हिंदुस्तान के सारे मुसलमानों की नुमाइंदगी नहीं करता है।
इतनी दूर मसजिद?
पर्सनल लॉ बोर्ड एक और सदस्य ने कहा कि देश का 99 फ़ीसदी मुसलमान कोर्ट के फ़ैसले और देश के क़ानून की इज्ज़त करता है, लेकिन आहत है, विशेषकर ज़मीन इतनी दूर दिए जाने पर। उस ज़मीन पर मसजिद कबसे बननी शुरू होगी, पूछने पर जवाब मिला कि इसके बारे में ‘वह (वक्फ बोर्ड) बेहतर बता सकते हैं।’सरकार के अधीन बोर्ड
कोई सीधा आरोप लगाए बग़ैर पर्सनल लॉ बोर्ड के मेम्बर ने कहा कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने 15-सदस्यीय इंडो-इसलामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट बनाकर जो नौ सदस्य नामित किये उसमे चार श्री श्री रविशंकर की मध्यस्थता के प्रयास में शामिल थे।फिलहाल कोरोना के बावजूद राम मंदिर बनाने की तैय्यारी पूरे जोर पर है। मसजिद कब बनेगी, इसपर कोई बात नहीं हो रही है, शायद कोरोना की वजह से।
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