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बाबरी पर फ़ैसला देने वाले सेवानिवृत्त जज बने यूपी के उप लोकायुक्त

एक समय देश को झकझोर देने वाले बाबरी मसजिद विध्वंस मामले में पिछले साल फ़ैसला देने वाले जज (अब सेवानिवृत्त) सुरेंद्र कुमार यादव को उत्तर प्रदेश में उप लोकायुक्त बनाया गया है। उन्होंने सोमवार को उप लोकायुक्त पद की शपथ ली। लोकायुक्त और इसमें शामिल तीन उप लोकायुक्त भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने का काम करते हैं।

आधिकारिक तौर पर जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि सुरेंद्र कुमार यादव को 6 अप्रैल को राज्यपाल द्वारा तीसरा उप लोकायुक्त नियुक्त किया गया था। कई वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में लोकायुक्त संजय मिश्रा द्वारा सोमवार को यादव को शपथ दिलाई गई। 

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उप लोकायुक्त आठ साल तक पद पर रह सकते हैं। लोकायुक्त एक ग़ैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से होता है और एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है जिसमें मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, सरकारी कुप्रबंधन, या लोक सेवकों या मंत्रियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग से संबंधित मामले आते हैं। 

बता दें कि सुरेंद्र कुमार यादव ने लखनऊ स्थित विशेष न्यायालय (अयोध्या मामला) के पीठासीन अधिकारी रहते हुए बाबरी मसजिद विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया था। बरी होने वालों में  मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह भी शामिल थे। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मसजिद को ढहा दिया गया था।

उन्होंने अपने फ़ैसले में कहा था कि मसजिद का ढाँचा अभियुक्तों ने नहीं, बल्कि शरारती तत्वों ने गिराया। उन्होंने यह भी कहा था कि इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं है। 

जज सुरेंद्र कुमार यादव ने अपने फ़ैसले में यह भी कहा था कि अदालत में सबूत के तौर पर जो वीडियो पेश किए गए उनसे छेड़छाड़ हुई थी।

तब अदालत ने कहा था कि विश्व हिंदू परिषद या संघ परिवार का ढांचा गिराने में कोई योगदान नहीं था और कुछ अराजक तत्वों ने मसजिद को गिरा दिया। अदालत ने कहा कि ये लोग साजिश में शामिल नहीं थे और उग्र भीड़ को रोकने की कोशिश कर रहे थे।

सीबीआई की विशेष अदालत के जज यादव ने कहा था, ‘बारह बजे तक सब सामान्य था। फिर अचानक पीछे की तरफ से मसजिद पर हमला हुआ, जो ढांचा गिरा, वो कुछ अराजक तत्वों, शरारती तत्वों के द्वारा गिराया गया।’ अदालत ने यह भी कहा कि फोटो से कोई आरोपी नहीं हो जाता।

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विशेष सीबीआई अदालत ने भले ही सबूतों के अभाव में बाबरी मसजिद विध्वंस में साज़िश से इनकार किया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, लेकिन जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान का कुछ और ही कहना है। लिब्रहान आयोग के अध्यक्ष रहे मनमोहन सिंह लिब्रहान का कहना है कि बाबरी मसजिद विध्वंस एक साज़िश थी और मुझे अब भी इस पर भरोसा है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मसजिद विध्वंस के मामले की जाँच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया था। 

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के ही कम से कम दो आदेशों में बाबरी विध्वंस मामले में साज़िश की बात कही गई थी। इसमें से एक आदेश तो नवंबर 2019 का ही है जब अयोध्या टाइटल सूट पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था। और दूसरा आदेश 2017 का था।

सुप्रीम कोर्ट के इन दो आदेशों में क्या कहा गया है, इससे पहले यह जान लें कि जस्टिस लिब्रहान क्या मानते हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में जस्टिस लिब्रहान ने कहा था, 'मैंने पाया कि यह एक साज़िश थी, मुझे अभी भी इस पर विश्वास है। मेरे सामने पेश किए गए सभी साक्ष्यों से यह साफ़ था कि बाबरी मसजिद विध्वंस की सुनियोजित योजना बनाई गई थी... मुझे याद है कि उमा भारती ने स्पष्ट रूप से इसकी ज़िम्मेदारी ली थी। यह कोई एक अनदेखी ताक़त नहीं थी जिसने मसजिद को ध्वस्त किया बल्कि वो इनसान थे।' उन्होंने आगे कहा था कि मेरे निष्कर्ष सही, ईमानदार और भय या किसी अन्य पूर्वाग्रह से मुक्त थे।

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साज़िश की ऐसी बात सुप्रीम कोर्ट ने भी की थी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ जब 9 नवंबर 2019 को राम जन्मभूमि के टाइटल सूट को लेकर फ़ैसला सुना रही थी तब इसने कहा था कि बाबरी मसजिद विध्वंस 'सोची-समझी कार्रवाई' थी। बेंच में शामिल तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और एस ए नज़ीर ने कहा था, 'विवाद के लंबित रहने के दौरान सोच-समझकर सार्वजनिक पूजा स्थल को तहस नहस करते हुए मसजिद के ढाँच को गिराया गया था। मुसलमानों को ग़लत तरीके से एक मसजिद से वंचित किया गया है, जिसे 450 साल से भी पहले बनाया गया था।' 
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क़मर वहीद नक़वी

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