कभी गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से मरते बच्चों तो कभी बिहार में चमकी बुखार से पीड़ित नवजातों का इलाज करने से मशहूर हुए डॉ. कफ़ील खान इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार की नजरों में देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन चुके हैं।
महज एक भाषण देने के आरोप में बीते छह महीनों से मथुरा जेल में बंद डॉ. कफ़ील पर लगाई गयी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) की मियाद को योगी सरकार ने फिर बढ़ा दिया है। डॉ. कफ़ील को अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ छात्रों के एक मजमे में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में इसी साल फरवरी में मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया था।
उस सभा में जाने-माने सामाजिक चिंतक योगेंद्र यादव भी मौजूद थे और उन्होंने कई बार साफ किया है कि डॉ. कफ़ील ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा था जो देश की सुरक्षा, अखंडता व संविधान के ख़िलाफ़ हो। इस सबके बाद भी डॉ. कफ़ील पर यूपी सरकार ने रासुका लगाई और अब तक उसकी मियाद दो बार बढ़ाई जा चुकी है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से लेकर कई विपक्षी नेताओं ने बार-बार डॉ. कफ़ील की रिहाई की मांग उठाई है। यूपी कांग्रेस इन दिनों डॉ. कफ़ील की रिहाई के लिए प्रदेश भर में हस्ताक्षर अभियान भी चला रही है।
नवंबर तक जेल में रहेंगे कफ़ील
इसी महीने 10 अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में डॉ. कफ़ील की जमानत याचिका पर सुनवाई वाले दिन जारी अपने एक आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है, ‘फरवरी, 2020 में डॉ. कफ़ील पर अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने रासुका लगाने की संस्तुति की थी और रासुका की अवधि तीन-तीन महीने बढ़ाई जाती रही है। अब प्रदेश सरकार ने पाया है कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए फिर से ऐसा करना ज़रूरी हो गया है।’
रासुका के मामलों पर विचार करने के लिए गठित यूपी की राज्य परामर्शदात्री समिति की रिपोर्ट और जिलाधिकारी अलीगढ़ की आख्या पर राज्यपाल ने डॉ. कफ़ील को रासुका में निरुद्ध किए जाने की अवधि 3 महीने बढ़ा दी है। यानी यह अवधि अब 9 महीने हो गई है।
रिहा होते ही लगा दी थी रासुका
फरवरी में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में छात्रों के एक कार्यक्रम में भाषण देने के बाद डॉ. कफ़ील पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया था। उन्हें गिरफ्तार कर मथुरा जेल भेज दिया था। गिरफ्तारी के तीन दिनों के भीतर डॉ. कफ़ील को मथुरा की एक अदालत ने जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया था। जमानत का आदेश आने के बाद रिहाई होने के ठीक पहले उन पर रासुका लगाकर फिर से जेल में डाल दिया गया।
डॉ. कफ़ील की मां ने बेटे की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की, जहां से उच्च न्यायालय को इस मामले का जल्दी निपटारा करने को कहा गया। उच्च न्यायालय का कोई फैसला आने से पहले उन पर रासुका की मियाद बढ़ाकर 9 महीने कर दी गयी।
बच्चों का किया इलाज
डॉ. कफ़ील उस समय चर्चा में आए जब साल 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने पर बड़े पैमाने पर गोरखपुर मेडिकल कालेज में दिमागी बुखार से पीड़ित बच्चों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई। उस समय डॉ. कफ़ील ने अपने संसाधनों से प्रयास कर ऑक्सीजन का प्रबंध किया और रात भर बच्चों का इलाज किया। इसको लेकर अखबारों-चैनलों में डॉ. कफ़ील की तारीफें छपीं।
मिली क्लीन चिट
इससे कुपित यूपी सरकार ने बाद में उन्हीं पर कदाचार से लेकर तमाम आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया और जेल में डाल दिया। बाद में डॉ. कफ़ील को क्लीन चिट भी मिली पर आज तक उनको गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बहाल नहीं किया गया। बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की मौत होने पर भी डॉ. कफ़ील वहां बाढ़ प्रभावित इलाकों में बच्चों का इलाज करने पहुंचे। बहरहाल, सरकार को डॉ. कफ़ील की तेजी रास नहीं आयी।
कांग्रेस ने बनाया मुद्दा
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निर्देश पर यूपी कांग्रेस ने बीते दो हफ्तों से डॉ. कफ़ील की रिहाई के लिए हस्ताक्षर अभियान छेड़ रखा है। प्रदेश कांग्रेस का अल्पसंख्यक विभाग इस मुहिम की अगुवाई कर रहा है। बीते हफ्ते अल्पसंख्यक कांग्रेस के अध्यक्ष शहनवाज आलम गोरखपुर में डॉ. कफ़ील के घरवालों से भी मिले और रिहाई अभियान की जानकारी दी।
शहनवाज का कहना है कि प्रदेश के हर जिले में अभियान चल रहा है और अब तक लाखों लोग इसमें हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने खुद डॉ. कफ़ील की रिहाई के लिए जनता को जागरूक करने के लिए अब तक दर्जनों जिलों का दौरा कर लोगों को प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही प्रताड़ना की जानकारी दी है।
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