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हाथरस: आख़िर पीड़िता के गांव में पत्रकारों को क्यों नहीं जाने दे रही यूपी पुलिस?

हाथरस में दलित युवती के साथ हुई हैवानियत के बाद योगी सरकार और पुलिस पर सबूतों को छुपाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि आख़िर वह क्यों सच को सामने नहीं आने देना चाहती और इसी कड़ी में पीड़िता के गांव जाने की कोशिश कर रहे पत्रकारों को पुलिस ताकत के बल पर रोक रही है। 

सोशल मीडिया पर कुछ न्यूज़ चैनलों के पत्रकारों के वीडियो वायरल हो रहे हैं। इन वीडियो में पत्रकार पुलिस से कह रहे हैं कि वे अपना काम करने यानी सच का पता लगाने के लिए पीड़िता के गांव में जाना चाहते हैं। पीड़िता के परिजनों से बात करना चाहते हैं। लेकिन पुलिस उन्हें अंदर नहीं जाने दे रही है। 

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वीडियो में दिखता है कि पुलिस ने पूरा जोर लगा दिया है कि पत्रकार किसी भी सूरत में पीड़िता के गांव में न जा पाएं। पुलिस पत्रकारों के साथ बदसलूकी कर रही है और उनको गांव में न जाने देने पर आमादा है। 

पत्रकार पुलिस से कहते हैं कि इतनी बड़ी फ़ोर्स उन्हें रोकने के लिए तैनात की गई है, अगर ऐसी फ़ोर्स गांव में पहले लगी होती तो उस युवती के साथ इतनी जघन्य वारदात नहीं होती। इसी तरह एक महिला पत्रकार को भी गांव में नहीं घुसने दिया गया। 

पत्रकार पुलिस अफ़सरों से कहते हैं, ‘हम लद्दाख से होकर आ रहे हैं, वे प्रतिबंधित इलाक़े हैं, वहां भी ऐसा नहीं होता। तो हाथरस में इतने प्रतिबंध क्यों हैं, यहां से क्या एलओसी, एलएसी जाती है।’ 

एबीपी न्यूज़ की पत्रकार प्रतिमा मिश्रा भी पुलिस अफ़सरों से पूछती हैं कि आख़िर पुलिस क्यों डर रही है और वह उन्हें पीड़िता के घर क्यों नहीं जाने दे रही है। 

एक अन्य वीडियो में दिख रहा है कि न्यूज़ चैनल भारत समाचार की पत्रकार प्रज्ञा मिश्रा से हाथरस के एडीएम बेहद बदतमीजी से बात कर रहे हैं। 

पुलिस की जबरदस्त तैनाती

गांव में पुलिस की इतनी जबरदस्त तैनाती है कि कोई भी शख़्स पुलिस की इजाजत के बिना वहां नहीं पहुंच सकता। लेकिन आख़िर ऐसा क्यों किया जा रहा है। 

पुलिस ऐसा क्यों कर रही है, यह हाथरस के जिलाधिकारी के वायरल वीडियो से साफ हो जाता है जिसमें वे पीड़िता के परिवार वालों को धमकी दे रहे हैं। डीएम कहते हैं- ये मीडिया वाले आज आधे चले गए हैं, कल सुबह तक आधे और निकल जाएंगे। सिर्फ हम आपके साथ रहेंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप बयान बदलें या नहीं। कल हम भी बदल सकते हैं।'

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पुलिसिया तानाशाही चरम पर 

पुलिस ने 14 सितंबर को उस दलित युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार को मानने से मना कर दिया है। अपनी सरकारी रिपोर्ट में उसने अभियुक्तों की पिटाई के कारण लकवाग्रस्त हो चुकी दलित युवती को लगी चोटों का जिक्र नहीं किया। रात में सफदरजंग से शव को हाथरस पहुंचा दिया, परिजनों की लाख मनुहार के बाद उनकी बेटी का चेहरा उन्हें नहीं देखने दिया और युवती का दाह संस्कार कर दिया। 

इसके बाद पुलिस ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को पीड़िता के गांव में नहीं पहुंचने दिया। पीड़िता के परिवार वाले लगातार कह रहे हैं कि उन पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है, डीएम दबाव बना रहे हैं और उन्हें मीडिया से बात नहीं करने दी जा रही है। 

पीड़िता की भाभी ने रोते हुए एक न्यूज़ चैनल से कहा- ‘हमसे कह रहे हैं कि तुम्हारी लड़की अगर कोरोना से मर जाती तो क्या मुआवज़ा मिल जाता। पापा को धमकियां मिल रही हैं। अब ये लोग हमें यहां नहीं रहने देंगे। डीएम चालबाजी कर रहे हैं और हम पर दबाव बना रहे हैं।’

योगी सरकार न जाने क्यों हाथरस के सच को छुपाने में लगी है। वह आख़िर क्यों मीडिया को वहां नहीं जाने दे रही। क्यों उसके आला अफ़सर बार-बार कह रहे हैं कि पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं हुआ जबकि पीड़िता के कई वीडियो हैं, जिसमें उसने बलात्कार की बात कबूली है। डीएम ने हाथरस जिले में धारा 144 लगा दी है और 31 अक्टूबर तक बॉर्डर्स को सील कर दिया गया है। 

पीड़िता के परिवार को क्यों धमका रही है योगी सरकार?, देखिए चर्चा- 

अदालत से ही है आस

इस पुलिसिया तानाशाही या योगी सरकार की दादागिरी के लिए क्या कहा जाए। जंगलराज जैसे हालातों से गुजर रहे उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए अंतिम आस अब माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ही है। जिसने इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया है और बेहद सख़्त रवैया दिखाया है। 

अदालत ने 12 अक्टूबर को यानी सुनवाई वाले दिन पीड़िता के परिवार को बुलाया है और जिला प्रशासन से कहा है कि परिवार पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाए। लेकिन गुंडागर्दी पर उतारू उत्तर प्रदेश पुलिस लोगों की आवाज़ को कुचलने पर आमादा है। लेकिन पीड़िता के परिवार और लाखों लोगों को उम्मीद है कि अदालत उन्हें ज़रूर न्याय दिलाएगी। 

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क़मर वहीद नक़वी

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