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दंगों पर क्यों झूठ बोल रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री?

योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर कहा है कि उनके दो साल के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के दो साल पूरे होने पर मंगलवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित कर रहे थे। 

योगी आदित्यनाथ ने इस मौक़े पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकारों पर हमला बोलते हुए कहा कि इन दोनों की सरकारों में बहुत दंगे हुए। इससे पहले जनवरी 2019 में भी योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कहा था कि उनकी सरकार के शासन में कोई दंगा नहीं हुआ है। 

why yogi adityanath telling lie on communal violence - Satya Hindi
इसके उलट विपक्षी दल मुख्यमंत्री के इस दावे पर सवाल उठाते रहे हैं और उत्तर प्रदेश में हुई कई घटनाओं का जिक्र करते हैं। सरकारी आँकड़े भी योगी आदित्यनाथ के दावे पर सवाल उठाते हैं। आइए जानते हैं कि मुख्यमंत्री का उत्तर प्रदेश में कोई दंगा न होने का दावा किस तरह झूठा है। 

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने दिसंबर 2018 में लोकसभा में बताया था कि 2017 में देश भर में उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हुई थीं। 

अहीर ने बताया था कि 2017 में पूरे भारत में कुल सांप्रदायिक हिंसा की कुल 822 घटनाएँ हुईं थी और इनमें से उत्तर प्रदेश में 195 घटनाएँ हुई थीं। इस हिसाब से 2017 में भारत में हुई कुल सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में से 23 फ़ीसदी घटनाएँ अकेले उत्तर प्रदेश में हुई हैं। दंगों में उत्तर प्रदेश में 44 लोगों की मौत हुई थी और 542 लोग घायल हुए थे। 
यह तो हुई सरकारी आँकड़ों की बात। अब बात करते हैं उन दंगों या सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की जिन्हें उत्तर प्रदेश और देश का हर वह आम शख़्स जानता है जो थोड़ा-बहुत भी जागरूक है। इन घटनाओं को पढ़कर यह पूरी तरह पता चल जाएगा कि योगी आदित्यनाथ का दावा पूरी तरह ग़लत है। 
  • योगी आदित्यनाथ मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बने और मई में सहारनपुर के शब्बीरपुर में दो समुदायों के बीच जातीय हिंसा हुई थी। इसमें दो समुदायों के बीच जमकर हिंसा हुई और कई लोग घायल हुए थे। इस घटना में दलितों के घरों में आग लगा दी गई थी और इसे लेकर ख़ासा हंगामा हुआ था। इसके बाद इसी इलाक़े के चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था और भीम आर्मी बनाई थी। 
  • जनवरी 2018 में कासगंज में गणतंत्र दिवस के मौक़े पर दो समुदायों में बवाल हुआ था। इस दौरान दोनों ओर से ईंट-पत्थर चले थे और फ़ायरिंग हुई थी। इस घटना में गोली लगने से एक युवक चंदन गुप्ता की मौत हो गई थी और कासगंज शहर में कई दिन तक तनाव का माहौल रहा था। 
  • अगस्त में मेरठ के उल्देपुर गाँव में कांवड़ यात्रा के दौरान हुए विवाद में दो समुदायों में जमकर जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे और इलाक़े में लंबे समय तक तनाव रहा था। 
  • दिसंबर 2018 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में गोकशी के नाम पर हुई हिंसा में एक पुलिस इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक स्थानीय युवक की मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर ख़ासा बवाल हो गया था। हद तो तब हो गई थी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना को महज दुर्घटना बताया था। 
  • दिसंबर 2018 में ही ग़ाज़ीपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद हिंसा हुई थी और इसमें एक पुलिस वाले की मौत हो गई थी।
इसके अलावा भी प्रदेश में कई जगहों पर जातीय संघर्ष और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होने की ख़बरें सामने आती रही हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ का यह दावा कि उनके शासन काल में उत्तर प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है, पूरी तरह ग़लत है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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