29 जनवरी को उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक प्रयागराज के कुंभ मेला परिसर में हुई। प्रदेश के राजनैतिक इतिहास में पहली बार कैबिनेट की बैठक राजधानी लखनऊ के बाहर की गई। राजधानी के बाहर कैबिनेट की बैठक होना नया नहीं था क्योंकि 11 फ़रवरी 2014 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उत्तर कन्या में पहली बार ऐसी बैठक की थी।
लेकिन कुंभ मेला क्षेत्र में हुई उत्तर प्रदेश की कैबिनेट बैठक इससे थोड़ा अलग थी। बैठक से ऐसा लगा कि विकास से ज्यादा हिंदुत्व की राजनीति को मज़बूत करना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुख्य उद्देश्य था।
संगम पर स्नान ज़्यादा ज़रूरी
मंत्रिमंडल के सदस्यों के लिए संगम पर स्नान ज़्यादा ज़रूरी था। मंत्रियों को संगम स्थल तक ले जाने के लिए भारतीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा कोलकाता से एक छोटा जहाज मंगाया गया था। समाचार पत्रों में छपी तस्वीरों में योगी के साथ कैबिनेट के मंत्रीगण नदी में डुबकी लगाने की तैयारी में ठिठोली करते नज़र आ रहे थे। इसे देखकर ऐसा लग रहा था कि संविधान की धर्म निरपेक्षता और उससे जुड़े सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को तिलांजलि देने का पर्व मनाया जा रहा है।
राजनीति और धर्म को मिला नहीं सकते
एस. आर. बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म निरपेक्षता धर्म और राजनीति के बीच की दीवार है। एक आध्यात्मिक गतिविधि है और दूसरी सांसारिक। दोनों को मिलाया नहीं जाता। राजनीतिक दल को किसी धर्म से जुड़ा नहीं होना चाहिए, नहीं तो उस दल के धर्म को राष्ट्र का धर्म समझा जाता है।
पहले नहीं हुआ कभी ऐसा
प्रयागराज में धर्म और राजनीति का जो मिश्रण हुआ वह पहले कभी नहीं देखा गया। सिर्फ़ प्रयागराज में कैबिनेट बैठक ही नहीं बल्कि ऐसे कई कार्य किए गए हैं जो संवैधानिक नहीं कहे जा सकते। जैसे कैबिनेट ने फ़ैसला किया कि प्रयागराज और चित्रकूट के बीच पहाड़ी नामक स्थान पर महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा लगाई जाएगी और आश्रम का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा।
लगेंगी प्रतिमाएँ, होगा सौंदर्यीकरण
कैबिनेट के एक अन्य फ़ैसले के अनुसार प्रयागराज के निकट श्रृंगवेरपुर में भगवान राम और निषाद राज के मिलन की विशाल प्रतिमा लगाई जाएगी। ऋषि श्रृंगी और उनकी पत्नी शांता की इस भूमि का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा। कैबिनेट ने महर्षि भारद्वाज के आश्रम के सौंदर्यीकरण का भी निर्णय लिया। इसके अलावा अयोध्या में राम की विशालकाय प्रतिमा लगाने का पहले ही फ़ैसला लिया जा चुका है।
मूर्तियाँ लगाने के मामले में तो योगी आदित्यनाथ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से भी आगे निकलने की होड़ में हैं। गोरखपुर में महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ और लखनऊ में स्वामी विवेकानंद तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा लगाने की योजना है।
पिछड़े क्षेत्रों का क्या होगा?
यहाँ बात मूर्तियाँ लगाने की नहीं बल्कि प्रदेश में हिंदुत्व को प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक दर्ज़ा देने के असंवैधानिक प्रयास की है। कुंभ मेले में कैबिनेट बैठक को करना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह बैठक बलिया, बस्ती, कानपुर, हमीरपुर और बाँदा जैसे जिलों में होती तो यह यहाँ की समस्याएँ दूर करने का प्रयास माना जाता। शायद पिछड़े क्षेत्रों का विकास मुख्यमंत्री की प्राथमिकता नहीं है। प्रदेश को लाखों-करोड़ों के निवेश की अभी भी प्रतीक्षा है। निवेश के लिए किया जाना दूसरा भूमि पूजन खटाई में पड़ा है लेकिन गोरखपुर के मठाधीश प्रदेश को भी मठ की तरह ही चला रहे हैं।
समस्याओं पर नहीं है ध्यान
जब, सब कुछ केवल वादों तक सीमित है तो धर्म का ही सहारा लेना पड़ेगा। वर्तमान सरकार वही कर रही है। गाय के नाम पर बढ़ रही समस्याएँ एक अलग चुनौती बनी हुई हैं। पुलिस में सिपाहियों की कमी और रोज़ हो रही हत्या, बलात्कार, चोरी, लूट की घटनाओं के बावजूद गायों की ज़िम्मेदारी भी उन्हें ही सौंप दी गई है।
वैसे तो सभी राजनैतिक दल बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश में हैं परन्तु बीजेपी के लिए कुंभ हिंदू वोटों को साधने का एक बड़ा मौक़ा है और योगी आदित्यनाथ इसे खोना नहीं चाहते हैं।
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