अब से ठीक एक महीना पहले (9 जुलाई को) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यूपी की पीठ ठोकते हुए कहा था कि "24 करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश ने बड़ी बहादुरी से कोरोना का मुक़ाबला किया है और उसे फैलने से पूरी तरह रोका है", तब उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि महीना पूरा होने से पहले ही राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य, प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठतम नेता और उनकी पार्टी के विधायक उनके बयान की हवा निकालने वाले हैं।
वस्तुतः उत्तर प्रदेश देश का एक मात्र प्रदेश है जहाँ पिछले सप्ताह इस महामारी ने एक कैबिनेट मंत्री (कमला रानी वरुण) के प्राण हर लिए। इतना ही नहीं, इसी सप्ताह प्रदेश के क़ानून मंत्री ब्रजेश पाठक कोविड पॉज़िटिव पाए गए। इस महीने पॉज़िटिव होने वाले अन्य मंत्रियों में महेंद्र सिंह, चेतन चौहान, राजेंद्र प्रताप सिंह और धर्मवीर सिंह शामिल हैं।
कोरोना का हमला प्रदेश बीजेपी कार्यालय पर भी हुआ। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी इसी सप्ताह 'भर्ती' हुए हैं। बीजेपी विधायक योगेंद्र उपाध्याय भी कोरोना रोगियों में शुमार हैं।
मंत्रियों और विधायकों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के परिजनों के 'बीमारों' की सूची तो ख़ासी लम्बी है ही, महीने भर के भीतर ही प्रदेश में 'पॉज़िटिव' होने वाले कनिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की लिस्ट भी कोई छोटी-मोटी नहीं।
खोखली स्वास्थ्य तैयारियां
शुक्रवार को हुई मौतों पर अस्पतालों में होने वाली गंभीर लापरवाहियों को लेकर जिस तरह से मीडिया में मृतकों के परिजनों की प्रतिक्रियाएं आईं, उन्होंने वाराणसी के सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र सहित 'बीएचयू मेडिकल कॉलेज' की उन कथित तैयारियों की पोल खोल कर रख दी जिनका गुणगान पीएम अपने वक्तव्य में कर रहे थे।
सीएम द्वारा चिन्हित बाक़ी 3 शहरों में कानपुर नगर, प्रयागराज और झांसी हैं। कानपुर में शुक्रवार को कोविड संक्रमितों की संख्या 393, इससे होने वाली मौतों की संख्या 10 तक पहुँच गयी थी। कानपुर के सभी मंदिरों, मसजिदों और चर्च को शुक्रवार से अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है।
लखनऊ में हाहाकार
बीते गुरुवार और शुक्रवार प्रदेश के लिए बहुत भारी गुज़रे। गुरुवार को कुल कोरोना रोगियों की संख्या 4,658 थी जो अभी तक का प्रदेश का सबसे उच्चतम आंकड़ा है। इस दिन मृतकों की संख्या 63 थी। इनमें सर्वाधिक तादाद जौनपुर (16) की है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हाहाकार मचा हुआ है। बीते शुक्रवार को यहाँ रजिस्टर्ड हुए कुल कोविड मरीज़ों की संख्या 707 थी जो अभी तक सर्वाधिक है। लखनऊ में कुल मृत्यु संख्या 138 है।
प्रदेश में 2 सत्य सर्वविदित हैं। पहला- सैंपल उन्हीं के लिये जा रहे हैं जो अपनी बीमारी पर जांच का बहुत हो-हल्ला मचा लें और दूसरा- जिसकी शिकायत बड़े पैमाने पर पड़ोसी कर दें, अन्यथा ज़्यादातर मामलों में थर्मल स्कैनिंग से ही संभावित मामलों को टरका दिया जाता है।
जिन शहरों में संक्रमितों का ग्राफ बढ़ने की ख़बरें आती हैं, वहां बाद में ग्राफ़ नीचे चले जाने का मतलब 'प्रशासनिक कोशिशों द्वारा किया गया नियंत्रण' न माना जाए। असलियत यह है कि सैंपल दरें गिरा दी जाती हैं।
अज़ब हाल है!
आगरा में कोविड नियंत्रण से जुड़े एक वरिष्ठ मेडिकल अधिकारी ने 'सत्य हिन्दी' को बताया "जब आंकड़े बहुत बढ़ गए थे तब डीएम ने मीटिंग करके हम लोगों से कहा कि सीएम साहब बहुत नाराज़ हैं। वह कह रहे हैं कि क्या ज़रूरी है कि जो आये आप उसी की जांच करने लग जाएंगे? क्या थर्मल स्कैनिंग से काम नहीं चला सकते हैं? बस उसके बाद से सैंपलिंग कम हो गयी और आंकड़े घट गए।
गाँवों में हालात ख़राब
दूसरा सत्य गाँवों से जुड़ा है। गाँवों में जांच बिलकुल नहीं की जा रही हैं। अपवाद सिर्फ़ वहाँ हैं जहां बाहर से लौटने वाले की (यदि वह खांस-खूंस रहा है) पड़ोसी ही हो-हल्ला मचा कर शिकायत कर दें। पूर्व विधायक और पेशे से चिकित्सक डॉ. अनिल चौधरी कहते हैं, "गाँव में तो सब कुछ भगवान भरोसे है। कहीं कोई अध्ययन नहीं है कि स्थिति कितनी भयावह है। जो अपने इम्यून सिस्टम से ठीक हो गया सो हो गया वरना मर-खप जाता है और घर वाले चुपचाप फूंक आते हैं।"
भारत सरकार के गृह मंत्रालय से जुड़े एक कनिष्ठ अधिकारी ने यूपी के क्वारेंटीन केंद्रों का जो अपना अनुभव 'सत्य हिन्दी' को सुनाया, वह रोंगटे खड़े करने वाला था। उन्होंने बताया कि 'वर्क फ्रॉम होम' का आदेश जारी होने पर वह सपरिवार पूर्वांचल में अपने गृह ज़िले चले गए।
यूपी का भयावह सच
अधिकारी ने बताया, "वहां पहुँचते ही हमें क्वारेंटीन सेंटर में रख दिया गया। बहुत गन्दा और बेतरतीब था यह सेंटर। खाने को दोनों टाइम बड़ी रद्दी सी खिचड़ी मिलती। डॉक्टरों का कहीं दूर-दूर तक पता नहीं। वहाँ मौजूद सारे लोग जांच की मांग पर हो-हल्ला कर रहे थे। जब कई दिन गुज़र गए तो स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी आए। उन्होंने हम सभी के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि हम प्रति व्यक्ति 5 हज़ार रुपये की दर से उन्हें भुगतान कर दें तो वे बिना जांच के ही हमारी 'नेगेटिव रिपोर्ट' ला सकते हैं। मैंने अपने और पत्नी के और दो बच्चों के 20 हज़ार रुपये दिए और 'नेगेटिव रिपोर्ट' लेकर किसी तरह से पिंड छुड़ा कर भागा। कुछ और लोगों ने भी ऐसा ही किया था।"
सितंबर में बिगड़ेंगे हालात?
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, स्थितियां नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं। शहरों और गाँवों, दोनों जगह एक ज्वालामुखी है जो तेजी से सुलग रहा है। चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञों का मानना है कि सितंबर महीने की शुरुआत होते-होते यह ज्वालामुखी फट सकता है। जिस तरह का जर्जर पब्लिक हेल्थ सिस्टम है, उससे इस सामर्थ्य की अपेक्षा करना ही व्यर्थ होगा कि इस ज्वालामुखी के फटने की दशा में वह कहीं से कारगर साबित हो पायेगा।
‘नेगेटिव वीडियो नहीं दिखने चाहिए’
बीते शुक्रवार को ही बरेली के अपने दौरे के समय स्थितियों को सुधारने की बाबत अधिकारियों को धमकाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा "नेगेटिव वीडियो बिलकुल नहीं दिखने चाहिए।" प्रदेश भर के सरकारी अधिकारियों के स्तर पर इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि मीडिया में दिखने वाली स्थितियों की भयावहता को पूरी ताकत से रोका जाना चाहिए।
अपनी राय बतायें