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जानिए, नारद स्टिंग ऑपरेशन क्या है, सीबीआई के निशाने पर कौन

2021 के बंगाल चुनाव के बाद जिस नारद स्टिंग मामले में ममता सरकार के मंत्रियों को आज गिरफ़्तार किया गया है वह मामला 2016 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आया था। कहा जाता है कि इस स्टिंग को 2014 में ही तैयार किया गया था। यानी जो स्टिंग ऑपरेशन क़रीब 7 साल पहले किया गया था वह अभी भी तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के लिए मुसीबत कैसे बना हुआ है? आख़िर यह नारद स्टिंग ऑपरेशन क्या था और इसमें इतना बड़ा क्या मामला हुआ था? 

सबसे पहले यह नारद स्टिंग ऑपरेशन नाम 2016 के मार्च महीने में विधानसभा चुनावों के ठीक पहले सामने आया था। इस स्टिंग के टेप नारद न्यूज़ की वेबसाइट पर जारी किए गये थे। इस वेबसाइट को मैथ्यू सैमुएल ने बनाया था। मैथ्यू सैमुएल पहले तहलका नाम की पत्रिका में कार्यरत थे और वह संस्था के मैनेजिंग एडिटर थे। बाद में उन्होंने तहलका से इस्तीफ़ा दे दिया था। कहा जाता है कि इस स्टिंग को 2014 में अंजाम दिया गया था, लेकिन तब इसे जारी नहीं किया जा सका था। तब एक रिपोर्ट के अनुसार मैथ्यू सैमुएल ने क़रीब 52 घंटे का फुटेज बनाया था। इस फुटेज में तत्कालीन सरकार के कई मंत्रियों के होने का दावा किया गया था।

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जब नारद न्यूज़ पर 2016 में चुनाव से पहले स्टिंग के वीडियो जारी हुए तो बंगाल की राजनीति में हलचल मच गई थी। इन वीडियो में मैथ्यू सैमुएल एक कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के तत्कालीन कई सांसदों, कई मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम के तत्कालीन मेयर शोभन चटर्जी के साथ दिखे थे। इस स्टिंग में दावा किया गया था कि कंपनी के प्रतिनीतिध काम कराने के एवज़ में उन्हें मोटी रकम देते नज़र आ रहे थे। 

उस स्टिंग के वीडियो में नज़र आने वाले बड़े नेताओं में मुकुल राय (अब बीजेपी में शामिल), सुब्रत मुखर्जी, सुल्तान अहमद, शुभेंदु अधिकारी (अब बीजेपी में शामिल), काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी, शोभन चटर्जी, मदन मित्र, इक़बाल अहमद और फिरहाद हकीम शामिल थे। उनके अलावा कथित तौर पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एम.एच. अहदम मिर्ज़ा को भी पैसे लेते दिखाया गया था।

क्योंकि चुनाव से पहले उस स्टिंग को जारी किया गया था तो हंगामा भी ख़ूब मचा। तृणमूल कांग्रेस ने शुरू में स्टिंग ऑपरेशन के साथ किसी भी संबंध से इनकार किया और आरोप लगाया कि यह राजनीतिक साज़िश का नतीजा है और वीडियो पूरी तरह से फर्जी है। इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सीपीआईएम और बीजेपी ने वीडियो में दिखने वाले नेताओं के इस्तीफे की माँग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए।

विपक्ष ने 2016 के बंगाल विधानसभा चुनावों में इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। बावजूद इसके तृणमूल बहुमत से सरकार में लौटी। चुनावी जीत के बाद ममता बनर्जी ने दावा किया था कि बंगाल की जनता ने साफ़ कर दिया है कि तृणमूल की सरकार पर लाँछन लगाए गए और भ्रष्टाचार के आरोप बेबुनियाद हैं।

बता दें कि बाद में तृणमूल कांग्रेस यह भी दावा करती रही है कि प्राप्त धन चंदा यानी दान के रूप में था। 

तब वीडियो को फ़र्ज़ी और इस पूरे मामले को साज़िश क़रार देने वाली ममता सरकार ने उल्टे मैथ्यू के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज कर उनको पूछताछ के लिए समन भेज दिया। बाद में कोलकाता हाईकोर्ट से मैथ्यू को राहत मिली थी। फोरेंसिक जाँच में उस वीडियो को सही पाया गया था। पहले हाई कोर्ट और फिर बाद में सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई जाँच की बात कही गई।

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इसके बाद इस नारद स्टिंग वाले पूरे मामले में सीबीआई जाँच कर रही है। अप्रैल 2017 में सीबीआई ने आपराधिक साज़िश के लिए 12 तृणमूल नेताओं के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की थी। पिछले सात सालों में चुनावों से पहले कई बार हलचल हुई, लेकिन सीबीआई ने अब इस मामले में गिरफ़्तारी की है। 

इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय भी समानांतर जांच चला रहा है। इसने भ्रष्टाचार-विरोधी-अधिनियम के तहत सरकारी धन के दुरुपयोग के बारे में एक मामला दर्ज किया है और आरोपियों व सैमुअल को भी कई समन जारी किए हैं। 

जब 2016 में पहली बार नारद स्टिंग का यह मामला सामने आया था तब बीजेपी ने तो तृणमूल नेता मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त मोर्चा खोला था।

बता दें कि तब दोनों नेता तृणमूल और बीजेपी के ख़ास सिपहसालार थे। बीजेपी के हमले इन दोनों नेताओं पर तब तक ही जारी रहे जब तक दोनों बीजेपी में शामिल नहीं हो गए। ये दोनों नेता फ़िलहाल पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रमुख आधार हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन में कैमरे में कथित तौर पर कैद हुए मुकुल रॉय ने साल 2017 में बीजेपी का दामन थाम लिया था। तृणमूल के दूसरे बड़े नेता शुभेंदु अधिकारी तो 2021 के चुनाव से पहले दिसंबर 2020 में बीजेपी में शामिल हुए। 

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इस चुनाव में शुभेंदु अधिकारी इन्हीं कारणों से बेहद चर्चा में रहे। नारद स्टिंग के जिस वीडियो में कथित तौर पर शुभेंदु दिख रहे थे उसको बीजेपी ने अपने पेज पर पहले शेयर किया हुआ था जिसे शुभेंदु के बीजेपी में शामिल होने के बाद हटा लिया गया। मीडिया में इस पर काफ़ी बहस भी हुई।

अब बीजेपी पर यह आरोप लगते रहे हैं कि सीबीआई या ईडी की जाँच उन लोगों के ख़िलाफ़ चल रही है जो तृणमूल में बने हुए हैं और जो तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं उनके ख़िलाफ़ न तो नोटिस जारी होता है और न ही गिरफ़्तारी या किसी तरह की जाँच जारी है।

अब सीबीआई गिरफ़्तारी के बाद फिर जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। लगता है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच तनातनी बढ़ेगी ही।

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क़मर वहीद नक़वी

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