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क्या ओवैसी के बंगाल में आने से परेशान हैं ममता बनर्जी?

पश्चिम बंगाल में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले क्या राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हैदराबाद के सांसद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) की पार्टी से कोई ख़तरा है। क्या ममता को लगता है कि एआईएमआईएम उनके मुसलिम वोटों में सेंधमारी कर सकती है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि ममता बनर्जी ने एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा है। 

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी सोमवार को कूच बिहार इलाक़े में आयोजित एक रैली को संबोधित कर रही थीं। रैली में ममता ने एआईएमआईएम या असदुद्दीन ओवैसी का नाम लिये बिना कहा, 'मैं देख रही हूं कि अल्पसंख्यकों के बीच कुछ कट्टरपंथी हैं। कुछ लोग भेदभाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। अल्पसंख्यक ऐसे लोगों पर भरोसा करने की भूल नहीं करें।’ ममता ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों का आधार हैदराबाद में है। इस दौरान ममता ने लोगों को हिंदू कट्टरपंथी ताक़तों को लेकर भी चेताया। ममता ने जैसे ही हैदराबाद का जिक्र किया तो यह साफ़ हो गया कि ओवैसी ही उनके निशाने पर थे और ओवैसी ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। 

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ओवैसी ने मंगलवार को ट्वीट कर कहा कि बंगाली मुसलमानों का अल्पसंख्यकों के किसी भी मानव विकास सूचकांक में सबसे ख़राब स्थिति होने की बात कहना धार्मिक कट्टरता नहीं है। ओवैसी ने कहा कि अगर दीदी हम कुछ हैदराबादियों से इतना डरती हैं तो उन्हें इस बात का जवाब देना चाहिए कि बीजेपी को बंगाल में 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत कैसे मिली। 

काफी समय से यह देखा गया है कि ओवैसी को मीडिया इस तरह से दिखाता है कि वह देश में कट्टरपंथी मुसलमानों के नेता हैं। दक्षिणपंथी संगठनों ने भी ओवैसी की छवि को ऐसा बना दिया है कि वह हिंदू विरोधी हैं। ऐसे में ओवैसी अगर बंगाल में आधार बढ़ाएंगे तो भले ही उन्हें मुसलिम वोट मिलें या न मिलें लेकिन दक्षिणपंथी संगठन उनके ख़िलाफ़ प्रचार कर हिंदू वोटों को भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे। इसका फ़ायदा बीजेपी को होगा और ममता को इससे सियासी नुक़सान होगा। 

ममता का ‘अल्पसंंख्यक कट्टरता’ वाला बयान हिंदुओं को यह संदेश देने की भी कोशिश है कि वह सिर्फ़ मुसलमानों की समर्थक नहीं हैं क्योंकि उनकी भी छवि दक्षिणपंथी संगठनों ने सिर्फ़ मुसलमान समर्थक और हिंदू विरोधी की बना रखी है और दिन-रात सोशल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ कुप्रचार जारी है। ऐसे में ममता ने ‘अल्पसंंख्यक कट्टरता’ का सवाल उठाकर दक्षिणपंथी संगठनों के कुप्रचार का भी जवाब देने की कोशिश की है।  

माना जा रहा है कि बंगाल में इस बार ममता बनर्जी की पार्टी को बीजेपी की ओर से कड़ी चुनौती मिल सकती है। राज्य में हुए लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है। बंगाल के मुसलमानों में ममता बनर्जी का अच्छा आधार माना जाता है। अभी जब विधानसभा चुनाव में काफ़ी समय बचा हुआ है तो सवाल यह है कि ममता ने अभी से ओवैसी पर हमला क्यों किया है। क्या ममता को लगता है कि राज्य के मुसलमान ओवैसी की ओर जा सकते हैं। 

बीजेपी की बढ़ती ताक़त से परेशानी

इसका एक कारण और है और वह है राज्य में बीजेपी की बढ़ती सियासी ताक़त। बीजेपी की नज़र 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव को जीतने पर है और लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही वह काफ़ी उत्साहित है। इस बार उसे 18 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2014 में वह सिर्फ़ 2 सीटों पर जीती थी। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस 2014 में 34 सीटों पर जीती थी और इस बार उसकी सीटें घटकर 22 हो गई हैं। इसी जीत से उत्साहित होकर बीजेपी ने इस बार राज्य में 288 में से 250 सीटें जीतने का प्लान बनाया है। 

बीजेपी ने वोट शेयर में भी लंबी छलांग लगाते हुए 2014 में मिले 23.23% वोट के मुक़ाबले इस बार 40.25% वोट हासिल किए हैं। जबकि तृणमूल का वोट शेयर पिछली बार के मुक़ाबले (39.79%) थोड़ा सा बढ़ा है और उसे 43.28% वोट मिले हैं।
ममता बनर्जी को पता है कि ओवैसी के राज्य में आने से मुसलिम मतों का बंटवारा होगा और इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान उन्हीं को होगा क्योंकि राज्य में कांग्रेस और वाम दल सत्ता हासिल करने की दौड़ से लगभग बाहर हो चुके हैं और तृणमूल का सीधा मुक़ाबला बीजेपी से है।

यह तय माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस में काँटे की टक्कर होगी। बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों ही दलों की तैयारी पूरी है और इसमें ओवैसी के द्वारा बंगाल में अपना आधार बढ़ाने से शायद ममता बनर्जी परेशान हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी

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