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बंगाल: दूसरे चरण में नंदीग्राम सीट पर घमासान, ममता-शुभेंदु में टक्कर

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण का मतदान 1 अप्रैल को होना है। इस चरण के लिए चुनाव प्रचार आज शाम 5 बजे ख़त्म हो जाएगा। इस चरण में 30 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। पहले चरण की तरह दूसरे चरण के चुनाव प्रचार में भी बीजेपी और टीएमसी ने पूरी ताक़त झोंकी। बंगाल में 8 चरणों में मतदान होगा और 2 मई को नतीजे आएंगे। इस दिन बाक़ी चार चुनावी राज्यों के भी नतीजे आएंगे। 

पश्चिम बंगाल में पहले चरण में भारी मतदान हुआ था। इस चरण में 30 सीटों के लिए वोट डाले गए थे। बड़ी संख्या में मतदाता घरों से बाहर निकले थे और 80 फ़ीसदी मतदान हुआ था। 

दूसरे चरण में नंदीग्राम सीट पर भी मतदान होना है। इस सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार में मंत्री रहे और अब बीजेपी के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी आमने-सामने हैं। इस सीट पर राजनीतिक विश्लेषकों की भी पैनी निगाह है। शुभेंदु ने यहां से ममता बनर्जी को हराने का दावा किया था। 
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ममता ने सोमवार को नंदीग्राम में व्हील चेयर पर कई किमी. लंबा रोड शो किया और लोगों से वोट मांगे। दूसरी ओर, शुभेंदु अधिकारी ने भी जमकर चुनाव प्रचार किया और मंगलवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 30 मार्च को यहां पहुंचेंगे और उनके समर्थन में जनसभा करेंगे। 
Polling for Second phase of West Bengal assembly elections 2021 - Satya Hindi

शुभेंदु  को 2016 के चुनाव में 67.20 फ़ीसदी वोट मिले थे। शुभेंदु और उनके परिवार का पूर्वी मेदिनीपुर जिले में अच्छा खासा जनाधार है। इसी जिले में नंदीग्राम सीट पड़ती है। शुभेंदु ने ख़ुद को भूमि पुत्र बताया है और बीजेपी यहां ममता बनर्जी को बाहरी बता रही है। जबकि टीएमसी का कहना है कि शुभेंदु को 2016 में जो वोट मिले थे, वह ममता बनर्जी की वजह से मिले थे। 

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किसानों ने भी किया था प्रचार

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार को लाल आंखें दिखा रहे किसान नेताओं ने भी नंदीग्राम में चुनावी सभाएं की थीं। किसान नेताओं ने कहा था कि बंगाल के लोग जिसे मर्जी वोट दें लेकिन बीजेपी को वोट न दें। बंगाल के अलावा बाक़ी चुनावी राज्यों में भी किसानों ने प्रचार के लिए टीमें भेजी थीं। 

ये वही नंदीग्राम है, जहां वाम मोर्चा की सरकार के दौरान 2007 में जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ हिंसक आंदोलन हुआ था और इसी ने टीएमसी के सत्ता में पहुंचने का रास्ता साफ किया था। निश्चित रूप से नंदीग्राम बंगाल के चुनावी घमासान का केंद्र बना रहा।

टीएमसी के लिए क्यों अहम है नंदीग्राम?

भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन के बाद टीएमसी को 2008 में हुए पंचायत चुनाव, 2009 के लोकसभा चुनाव और 2010 के नगर निगम चुनाव में भी बड़ी जीत मिली थी। इसके बाद 2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 34 साल से सत्ता में बैठी वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका था। तब शुभेंदु ही ममता के साथ नंदीग्राम आंदोलन के अहम चेहरे थे। नंदीग्राम आंदोलन के कारण टीएमसी को वाम मोर्चा के गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी मिदनापुर, पुरूलिया और बांकुरा में विस्तार करने में मदद मिली थी। 

ममता के नंदीग्राम सीट से लड़ने पर देखिए विश्लेषण- 

नंदीग्राम सीट पर 70 फ़ीसदी हिंदू और 30 फ़ीसदी मुसलिम मतदाता हैं। बीजेपी की कोशिश पूरे बंगाल में हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की है और ममता इस बात को अच्छी तरह जानती हैं। इस सीट से विधायक रहे शुभेंदु ने ममता को चुनौती दी थी कि वह ममता बनर्जी को 50 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराएंगे वरना राजनीति छोड़ देंगे। ममता ने भी उनकी चुनौती को स्वीकार कर इसी सीट से ताल ठोकी। 

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क़मर वहीद नक़वी

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