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बंगाल के चुनाव में ममता 'दीदी' नहीं, 'बंगाल की बेटी' क्यों?

ममता बनर्जी क्या अब 'दीदी' कहा जाना पसंद नहीं करती हैं? आख़िर उन्होंने अब 'बंगाल की बेटी' का नारा क्यों दिया है? ममता के समर्थक और उनकी पार्टी के नेता नये नारे- 'बंगला निजेर मयेके छै' यानी 'बंगाल अपनी ही बेटी चाहता है' को सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। क्या 'दीदी' शब्द में वो ताक़त नहीं बची है, क्योंकि बीजेपी नेता सहित उनके विरोधी भी उन पर 'ममता दीदी' कहकर हमला और तंज कसते हैं? या फिर उन्हें लगता है कि दीदी से ज़्यादा 'बंगाल की बेटी' लोगों को उनसे ज़्यादा जुड़ाव महसूस कराएगा?

वैसे, ममता का यह नया नारा 'बंगाल अपनी ही बेटी चाहता है' तब चर्चा में आया है जब पश्चिम बंगाल में बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार राज्य का होगा या बाहरी, इस पर बीजेपी की सफ़ाई आई है। 

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तृणमूल के इस नया नारा दिए जाने से एक दिन पहले ही सफ़ाई में कहा है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बाहरी व्यक्ति नहीं होगा। 

अब अमित शाह के बयान को पढ़िए। उन्होंने कहा है कि टीएमसी ने बंगाल में बाहरी लोगों के बारे में एक ग़लत अभियान शुरू किया है। क्या ममता बनर्जी बंगाल को ऐसा बनाने की कोशिश कर रही हैं, जहाँ देश के किसी भी हिस्से से कोई नहीं आ सकता है? उन्होंने कहा, 'मैंने 25 बार कहा है कि अगला मुख्यमंत्री बंगाल की मिट्टी का ही होगा। अगर ममता बनर्जी बाहरी मुद्दे पर लोगों को विभाजित करने की कोशिश करती हैं तो मुझे कहना होगा कि वह बंगालियों को नहीं जानती हैं। हमारी पार्टी के संसदीय बोर्ड ने अभी तक मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तय नहीं किया है।'

जाहिर है यदि बीजेपी के इतने बड़े नेता की सफ़ाई इस तरह आ रही है तो इसका मतलब है कि पार्टी को भी अंदाजा है कि उसे इस मुद्दे पर घेरा जा रहा है और यह राज्य में मुद्दा बनता दिख रहा है। 
तृणमूल कांग्रेस ने शनिवार को जो अपना नया नारा जारी किया है उसे भी 'अंदरूनी-बाहरी' की बहस को उछालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

'बंगाल अपनी ही बेटी चाहता है' में दो बातों पर जोर दिया गया है। एक तो ममता को बंगाल की बेटी बताया गया है और दूसरा बंगाल को राज्य का ही नेता चाहिए। तृणमूल बंगाल की बेटी बताकर ममता को हर घर से जोड़ने की कोशिश कर रही है। बंगाल का ही नेता होने पर जोर देकर तृणमूल शायद यह संदेश देना चाह रही है कि विपक्षी दल बाहरी लोगों को सत्ता के ऊँच पद पर बिठाना चाह रहे हैं।

यही कारण है कि इस नारे को शनिवार को जारी होने के तुरंत बाद मंत्रियों ने ममता बनर्जी की तसवीर के साथ नए पोस्टर को अपने सोशल मीडिया खातों पर साझा किया।

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तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी ने ट्वीट किया, 'संदेश पूरी तरह साफ़ है- उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक - केवल एक ही नाम बंगाल भर में गूँजता है: ममता बनर्जी। वह जो अपने लोगों के लिए जी-जान से लड़ती हैं, सभी का उत्थान करती हैं और कमज़ोरों के लिए खड़ा होती हैं। केवल एक ही हैं जो बंगाल को आगे ले जाएँगी...।' इसके साथ उन्होंने 'बंगला निजेर मयेके छै' का हैशटैग भी ट्वीट किया है।

पार्टी के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने भी नये नारों वाली कई तसवीरों और वीडियो को रिट्वीट किया है। 

ब्रत्य बसु ने ट्वीट किया, 'पिछले 10 वर्षों में ममता बनर्जी ने सुनिश्चित किया है कि बंगाल दुनिया भर में चमके! आज कन्याश्री और दुवारे सरकार जैसी पहलों ने पश्चिम बंगाल के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है और आने वाले दिनों में वैसे ही विकास और समृद्धि आएँगे।' 

उन्होंने 'बंगला निजेर मयेके छै' का हैशटैग भी ट्वीट किया है।

बता दें कि माँ-माटी-मानुष के नारे के सहारने तृणमूल कांग्रेस 2011 में सत्ता में आई थी। प्रशांत किशोर द्वारा संचालित इस साल तृणमूल के अभियान का फोकस ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी

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