तीन दिन पहले ही तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को पार्टी ने उपाध्यक्ष जैसे बड़े पद से नवाज़ा है। टीएमसी ने सिन्हा को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य भी बनाया है। लंबे वक़्त तक बीजेपी में उपेक्षित रहने के बाद सिन्हा ने नयी राजनीतिक पारी शुरू की है और पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी अगर जीत जाती हैं तो सिन्हा को उनके इस क़दम का राजनीतिक नफ़ा भी हो सकता है। हाल ही में टीएमसी छोड़कर गए राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी की सीट खाली हुई है, ऐसे में यशवंत सिन्हा के इस सीट पर चुने जाने की राजनीतिक संभावनाएं बन सकती हैं। बीते कुछ सालों में सिन्हा ने मोदी सरकार के कई फ़ैसलों की खुलकर आलोचना की है।
हालांकि यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा बीजेपी में ही हैं और झारखंड के हजारीबाग सीट से सांसद हैं। जयंत मोदी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री जैसा आला ओहदा संभाल चुके सिन्हा ने कहा है कि ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में हुए हमले की घटना ने उन्हें फिर से सक्रिय राजनीति में आने को मजबूर कर दिया। ममता पर हुए हमले को लेकर पूरे बंगाल की सियासत बेहद खौल रही है और ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर ही प्रचार करने निकल पड़ी हैं।
ममता नंदीग्राम सीट से चुनाव मैदान में हैं और यहां उनका मुक़ाबला उन्हीं की सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी से हो रहा है। बंगाल के चुनाव में नंदीग्राम में जोरदार रण हो रहा है और टीएमसी और बीजेपी के कारकूनों ने जीत के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है।
टीएमसी में शामिल होने के बाद यशवंत सिन्हा ने ममता बनर्जी की शान में कसीदे पढ़े थे और उन्हें फ़ाइटर बताया था। सिन्हा ने यहां तक कहा था कि जब कंधार में आतंकवादियों ने जहाज का अपहरण कर लिया था तो ममता बनर्जी ने कैबिनेट की एक बैठक में कहा था कि अगर आतंकवादी जहाज के बंधक यात्रियों को छोड़ दें तो बदले में वह ख़ुद उनके पास चली जाएंगी।
83 साल के यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार पर हमला बोला था और कहा था कि मुल्क़ में लोकतंत्र ख़त्म हो रहा है और ऐसे वक़्त में टीएमसी को जीतना बेहद ज़रूरी है।
बंगाल के चुनावी समर में बीजेपी से दो-दो हाथ कर रहीं ममता बनर्जी को यशवंत सिन्हा के आने से कुछ मजबूती मिल सकती है। यशवंत के पास राजनीतिक अनुभव तो है ही, वे नौकरशाह भी रहे हैं। बंगाल झारखंड से लगता प्रदेश है, ऐसे में वे थोड़ा बहुत राजनीतिक फायदा भी टीएमसी को सीमावर्ती जिलों में दिला सकते हैं।
यशवंत सिन्हा ने पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कहा था कि वे एक गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ेंगे लेकिन बाद में वे पीछे हट गए थे। बिहार चुनाव के नतीजों के बाद यशवंत ने ट्वीट कर कहा था कि बीजेपी दुश्मनों को तब तक निचोड़ती है जब तक वे बेजान नहीं हो जाते और ऐसा ही वह अपने दोस्तों के लिए भी करती है। उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार इसकी ताज़ा मिसाल हैं, नीतीश सीएम होंगे लेकिन सिर्फ़ नाम के।
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