पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।
अमेरिका, यूरोप कोरोना से ठीक से क्यो नहीं लड़ पा रहे हैं ? क्या कोरोना के बाद दुनिया बदल जाएगी? इस वक़्त अमेरिका में रह रहे प्रो. पुरूषोत्तम अग्रवाल से बेबाक़ बातचीत।
अर्नब की गिरफ्तारी नहीं हो लेकिन भारतीय मीडिया क्यों प्रधानमंत्री/सरकार की जवाबदेही नहीं तय करता? ट्रंप से अमेरिकी मीडिया सवाल पूछता है, भारतीय मीडिया मोदी से क्यों नहीं ?
खाड़ी के देशों की तल्ख़ी के बाद भारत सरकार को क्यों बयान देना पड़ा? कोरोना की आड़ में कौन लोग इस्लामोफोबिया फैला रहे हैं? मीडिया के एक वर्ग को कब शर्म आयेगी?
मुरादाबाद, इंदौर और तब्लीग़ के बहाने मुसलमानों पर निशाना क्या सही है? और क्या रासुका लगा कर मज़हबी पागलपन पर क़ाबू पाया जा सकता है? आशुतोष के साथ चर्चा में - ज़फ़र सरेसवाला, पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह और आलोक जोशी।
लॉकडाउन बढ़ाने का मोदी का फ़ैसला सही या ग़लत? आखिर क्यों बढ़ाना पड़ा लॉकडाउन? क्या ग़रीब बे-बीमारी नहीं मारा जायेगा? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी, रामदत्त त्रिपाठी।
कब बढ़ेगा लॉकडाउन? क्या कम्यूनिटी ट्रांसमिशन के चरण में पहुँच गया कोरोना? और क्यों निजी लैब नहीं करना चाहती मुफ़्त में कोरोना टेस्ट? देखिए आशुतोष की बात।
कोरोना का संकट तो देर-सबेर टल ही जाएगा। हो सकता है लाखों या फिर करोड़ों लोगों की जान लेकर ही कोरोना देवी का ग़ुस्सा शांत हो। लेकिन क्या कोरोना के बाद की दुनिया वैसे ही रहेगी जैसी कोरोना के पहले थी?
एक बार फिर मॉब लिंचिंग। दिल्ली में एक मुसलिम लड़के पर जानलेवा हमला। कोरोना फैलाने की साज़िश का आरोप लगाया। तब्लीग़ी की आड़ में जिस तरह से मुसलिम समुदाय पर निशाना दक्षिणपंथी तबक़ा और मीडिया कर रहा है, क्या ये उसकी नतीजा है? देखिए आशुतोष की बात।
पिछले महीने मोदी ने देश से 21 दिन माँगे थे कोरोना को हराने के लिये। पर क्या 21 दिन में वो कोरोना को हरा पाये? क्यों नहीं हरा पाये? क्यों कोरोना को रोकने के लिये लॉकडाउन को बढ़ाना पड़ेगा? देखिए आशुतोष की बात।