डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
देश में 45 साल पहले इंदिरा गाँधी आपातकाल लगा चुकी थीं। शास्त्री भवन में बैठे एक मलयाली अफ़सर को दिखाए बिना किसी अख़बार का संपादकीय छप ही नहीं सकता था। बड़े-बड़े तीसरमारखां संपादक नवनीत-लेपन विशारद सिद्ध हो रहे थे।
सुरक्षा परिषद में भारत आठ साल बाद फिर आठवीं बार पहुँचा है। सुरक्षा परिषद का सदस्य चुने जाने के बाद 21वीं सदी की दुनिया को भारत चाहे तो नई दिशा दिखाने की कोशिश कर सकता है।
भारत और चीन के सैनिकों की बीच हुई मुठभेड़ और उसके कारण हताहतों की ख़बर ने देश के कान खड़े कर दिए। इस मुठभेड़ में 20 भारतीय फ़ौजी मारे गए और माना जा रहा है कि चीन के चार या पाँच फ़ौजी मारे गए।
हांगकांग के चीन के साथ रहते हुए भी स्वायत्त रहने की व्यवस्था 2047 तक थी लेकिन चीन हांगकांग को ख़ुद के अधीन बनाने पर तुला हुआ है। इसे लेकर जबरदस्त विरोध हो रहा है।
सरकार ने ऐसी घोषणा की है जिसे तालाबंदी का ख़ात्मा भी समझा जा सकता है और जिसे किसी न किसी रूप में तालाबंदी का जारी रहना भी माना जा सकता है। सरकारें और जनता, दोनों दुविधा में पड़े हैं कि अब तालाबंदी हट गई है या जारी है?
कुछ दिनों की तल्खियों के बाद चीन और नेपाल ने ने सीमा-विवाद के मामले में अपना रवैया नरम किया है। इन दोनों देशों के प्रति भारत सरकार का रवैया दृढ़ लेकिन संयमपूर्ण रहा है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने आग में घी डालने का काम किया है। उसने भारत-चीन सीमा को लेकर ऐसा भड़काऊ बयान दे दिया है कि यदि भारत उस पर अमल करने लगे तो दोनों पड़ोसी देश शीघ्र ही आपस में लड़ मरें।
यह कितने दुख और आश्चर्य की बात है कि अफ़ग़ानिस्तान भारत का पड़ोसी है और उसके भविष्य के निर्णय करने का काम अमेरिका कर रहा है? भारत की कोई राजनीतिक भूमिका ही नहीं है।
भारत की विदेश नीति के सामने एक बड़ी दुविधा आ फँसी है। भारत शीघ्र ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का अध्यक्ष बननेवाला है। यहाँ भारत के लिए सवाल यह है कि इस मुद्दे पर वह किसका समर्थन करे, चीन का या ताइवान का?
कोरोना संकट का दंश भारत में रहने वाले ग़रीब-मजदूर झेल रहे हैं। जबकि संपन्न वर्ग के लोगों पर इसका ज़्यादा असर नहीं हुआ है और वे आराम से घरों में बैठे हैं।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहते हैं कि मुझे दर्जनों नेताओं ने फ़ोन किए, उनमें भाजपाई भी शामिल हैं कि प्रधानमंत्री का भाषण इतना उबाऊ और अप्रासंगिक था कि 20-25 मिनट बाद उन्होंने उसे बंद करके अपना भोजन करना ज़्यादा ठीक समझा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के भोजन-सुरक्षा विशेषज्ञ पीटर एंवारेक ने कहा है कि मांसाहार से कोरोना के फैलने का ख़तरा ज़रूर है लेकिन हम लोगों को यह कैसे कहें कि आप मांस, मछली, अंडे मत खाइए?
विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्रा, मुफ्त का खाना और भारत पहुँचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएँ भी दी गई हैं। लेकिन इनके मुक़ाबले हमारे नंगे-भूखे मज़दूरों से सरकार रेल-किराया वसूल कर रही है।