डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आरक्षण देना राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर करेगा। सभी राज्य और केंद्र सरकारों को इस फ़ैसले पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
यूरोपीय संघ की संसद में लाये गये प्रस्तावों में नागरिकता क़ानून और कश्मीर के विलय की कड़ी आलोचना की गई है। इन प्रस्तावों से कहीं भारत और यूरोपीय देशों के बीच संबंध तो ख़राब नहीं होंगे।
ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है। सारी दुनिया के हिसाब से देखें तो हाल और भी बुरा है।
केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के साथ ‘इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस’ के अधिवेशन में जो बर्ताव किया गया, क्या वह इतिहासकारों और विद्वानों के लिए शोभनीय है?
भारत की जनता ने महाराष्ट्र, हरियाणा के चुनाव परिणाम से देश की सरकार को सबक सिखाया है कि अगर सरकार ने अपना ढर्रा नहीं बदला तो वह बग़ावती तेवर अख़्तियार कर लेगी।
सऊदी अरब पर यमन के बाग़ियों ने जो हमला किया है, उससे सारी दुनिया में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगी हैं क्योंकि दुनिया के देशों को सबसे ज़्यादा तेल देनेवाला देश यही है। लेकिन भारत क्यों तमाशबीन बना हुआ है?
राजस्थान की पुलिस ने अदालत के सामने सारा मामला इतने लचर-पचर ढंग से पेश किया कि सभी अभियुक्त बरी हो गए यानि पहलू ख़ान को किसी ने नहीं मारा। वह अपने आप मर गया।
यदि तालिबान से अमेरिका और पाकिस्तान बात कर रहे हैं तो वह बात इसीलिए हो रही है कि काबुल की सत्ता उन्हें कैसे सौंपी जाए? यदि सत्ता उन्हें ही सौंपी जानी है तो चुनाव का ढोंग किसलिए किया जा रहा है?
आनंद ने यदि यह भ्रष्टाचार किया है तो किसके दम पर किया है? देश में सैकड़ों मायावतियाँ हैं और हजारों आनंद हैं? क्या देश में एक भी नेता ऐसा है, जो कह सके कि मेरा दामन साफ़ है?
कर्नाटक और गोवा में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने नेताओं की कार्यशैली को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दल-बदलू विधायकों के संबंध में सख़्त क़ानून बनाया जाना चाहिए।