सरदार वल्लभभाई पटेल की आज पुण्यतिथि है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 'किसान नेता' सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति नर्मदा के तट पर स्थापित कराई। लेकिन वह आज किसानों की बात क्यों नहीं सुनते?
किसान आंदोलन के कारण सोनिया गाँधी ने अपना जन्मदिन मनाने से इनकार कर दिया था। उस दिन सोनिया गाँधी को ट्विटर पर टारगेट किया गया। पूरे दिन ट्विटर पर 'बार डाँसर' ट्रेंड करता रहा।
अगले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव बहुत दिलचस्प होने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 से भगवा फहराने की तैयारी में बीजेपी क्या बंगाल में कमल खिला सकेगी? यह बहुत मौजूँ सवाल है।
बाबा साहब आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। वह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से जीवन भर जूझते रहे।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 को नवंबर के आख़िरी सप्ताह में राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है। लेकिन धर्मांतरण विरोधी इस क़ानून में लव जिहाद शब्द का प्रयोग भी नहीं हुआ है।
क्या है मायावती की बदली हुई राजनीति? लंबे समय तक लगभग अज्ञातवास में रहने के बाद मायावती इधर फिर सक्रिय हुई हैं। सक्रिय होने से मुराद, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से है।
संविधान और लोकतंत्र पर सत्तापक्ष और हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जितना ही खुलकर हमला हो रहा है उतना ही डॉ. आंबेडकर और उनकी वैचारिकता की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का आज जन्मदिन है। पढ़िए छात्र राजनीति से राजनीति की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह का कैसा रहा है राजनीतिक जीवन...
लव जिहाद बीजेपी और हिंदुत्ववादी संगठनों का नया प्रोपेगेंडा है। लव जिहाद हिन्दुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने का नया पैंतरा है। इसीलिए योगी आदित्यनाथ सहित बीजेपी के कई नेता इसको आगे बढ़ा रहे हैं।
बिहार में सांप्रदायिकता के बरक्स रोज़गार और विकास का काउंटर नैरेटिव खड़ा किया गया। तेजस्वी ने बीजेपी और नीतीश को अपने एजेंडे पर आने के लिए मजबूर किया। चुनाव के नतीजे कुछ भी रहे हों क्या आगे की राजनीति बदलेगी?
बिहार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने तेजस्वी को ‘जंगलराज का युवराज’ कहा। वह क्यों इशारों में लालू यादव के शासन को जंगलराज कह रहे थे? यदि वह अगड़ी जाति से होते तो क्या ‘जंगलराज’ कहा जाता?
मजबूत संगठन और जुझारू कार्यकर्ताओं वाली समाजवादी पार्टी (एसपी) आज वैचारिक स्तर पर जूझ रही है। पार्टी के एजेंडे में अनवरत होने वाले परिवर्तन इसकी गवाही देते हैं।
हिन्दू धर्म त्यागने के ऐलान के बाद डा. आंबेडकर ने विकल्प के तौर पर विभिन्न धर्मों पर विचार किया। एक अस्पृश्य हिन्दू के रूप में जन्मे बाबा साहब के लिए स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों के साथ दलित समाज के उत्थान का सवाल सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के प्रति आरएसएस का प्रेम वास्तवकि है या हिन्दुत्व के तहत सभी हिन्दुओं को एकजुट करने में वह उन्हें एक टूल के रूप में इस्तेमाल कर रही है?
यह सर्वविदित है कि आरएसएस में ब्राह्मणों का वर्चस्व है जबकि योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी में ठाकुरों का दबदबा है। हाल की घटनाओं से ऐसा लगता है जैसे संघ और योगी के दरम्यान शह और मात का खेल चल रहा है।
गांधी के अनुयायियों ने उन्हें अलौकिक और देवदूत के रूप में प्रचारित किया था। गांधी जी को महात्मा और संत जैसी उपाधियाँ दी गयीं। इसका व्यापक प्रभाव भी हुआ।
ब्राह्मणों के उत्पीड़न और योगी सरकार से उनकी नाराज़गी को समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेताओं ने भुनाने की जुगत में पूरे प्रदेश में परशुराम और मंगल पाण्डेय की प्रतिमाएँ लगाने की घोषणा की।
आज क्रांतिकारी उधम सिंह की शहादत का दिन है। आज ही के दिन यानी 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फाँसी की सज़ा हुई थी। उधम सिंह का जीवन और उनकी शहादत कई मायने में अलग है। उनकी ज़िंदगी रूमानियत में डूबी कहानी है।
यूपी में पिछले चार-पाँच माह में क़रीब पाँच दर्जन ब्राह्मणों की हत्या हो चुकी है। जाहिर है कि इस नाराज़गी का असर यूपी की राजनीति और राजनीतिक दलों पर पड़ना स्वाभाविक है।