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चारा घोटाला में लालू यादव फँसे या फँसाए गए?

बिहार के चारा घोटाले की शुरुआत पशुपालन विभाग के छोटे स्तर के कर्मचारियों ने की, जिन्होंने कुछ फर्जी फंड ट्रांसफर दिखाए। उस समय बिहार और झारखंड अलग नहीं थे। मामला 1985 में पहली बार सामने आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।

लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। इसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा। इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगाँठ का पता चला।

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इसके बाद लालू प्रसाद सरकार ने अलग-अलग एक सदस्यीय जाँच आयोग का गठन किया। पहले आयोग के अध्यक्ष राज्य विकास आयुक्त फूलचंद सिंह थे, जिसका गठन 30 जनवरी, 1996 को किया गया। बहरहाल, जब सिंह का नाम भी चार्जशीट में लिया जाने लगा तो इस आयोग को भंग कर दिया गया। दूसरे आयोग का गठन जस्टिस सरवर अली की अध्यक्षता में 10 मार्च, 1996 को किया गया।

इस बीच बीजेपी के तत्कालीन राज्य अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने पटना उच्च न्यायालय में सीबीआई जाँच की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर कर दी। न्यायालय ने मामले की सुनवाई करने के बाद मामले को सीबीआई को सौंप दिया। यहीं से लालू प्रसाद के बुरे दिन शुरू हो गए। लालू प्रसाद न सिर्फ़ बिहार में प्रभावशाली थे, बल्कि केंद्र में भी किंगमेकर थे। उन्हीं की सहमति से केंद्र में एचडी देवगौड़ा की सरकार बनी थी। देवगौड़ा व लालू प्रसाद के आपसी अहम टकराने लगे थे और कहा जाता है कि लालू के मुँहफट स्वभाव के कारण देवगौड़ा से मतभेद बनने शुरू हुए थे। साथ ही विभिन्न जांच मामलों को लेकर देवगौड़ा के साथ कांग्रेस के सीताराम केसरी और पीबी नरसिंहराव में खींचतान चल रही थी। 

लालू प्रसाद ने कवायद की कि सीबीआई के निदेशक पद पर एसएन सिंह की नियुक्ति हो जाए, जिन्हें राव का भी समर्थन हासिल था। आख़िरकार देवगौड़ा ने कर्नाटक कैडर के आईपीएस जोगिंदर सिंह को सीबीआई निदेशक बना दिया। उसके बाद खींचतान इतनी बढ़ी कि कांग्रेस ने देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए। 

जोगिंदर सिंह ने जब पद से हटाए जाने की संभावना देखी तो उन्होंने चारा घोटाला मामले में आनन फानन में चार्जशीट दाखिल कर दिया। जुलाई, 1997 में दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद एवं उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को भी आरोपी बनाया गया।

अनुमानित रूप से चारा घोटाला मामला 900 करोड़ रुपये का माना जाता है। इसमें 64 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 53 याचिकाएँ रांची में दायर की गईं। सीबीआई ने 23 जून, 1997 को दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद और 55 अन्य लोगों को आरोपी बनाया और आईपीसी की धाराओं 420 (धोखाधड़ी) और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 बी में मुक़दमे दर्ज हुए।

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लालू प्रसाद को केंद्र और सीबीआई के माध्मम से घेरने की कहानी दिलचस्प है और धीरे-धीरे यह दिलचस्प होती गई। राज्य का मुखिया होने के कारण लालू प्रसाद को हर ज़िले के हर मामले में हुए आर्थिक हेरफेर के लिए जवाबदेह बनाया गया। सीबीआई न्यायालय ने 5 अप्रैल, 2000 को लालू प्रसाद के साथ उनकी पत्नी राबड़ी देवी को भी सह अभियुक्त बनाया, जो राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री थीं। इसके अलावा आयकर विभाग ने 1998 में लालू और राबड़ी देवी को आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में आरोपी बनाया, जिसमें उन्हें दिसंबर 2006 में बरी कर दिया गया। इस मामले में आयकर विभाग का आरोप था कि लालू ने कोषागार से हुई निकासी में से 46 लाख रुपये लिए हैं।  

राँची में सीबीआई के विशेष न्यायालय ने जून, 2007 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद के दो भतीजों सहित 58 लोगों को ढाई साल से 6 साल तक की सजा सुनाई, जो चाईबासा ट्रेजरी से 1990 में 48 करोड़ रुपये निकाले जाने को लेकर थी।

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इसके बाद मार्च, 2012 में सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्रा के ख़िलाफ़ आरोप तय किए, जो बांका और भागलपुर ज़िलों के कोषागार से 1995-96 में ग़लत तरीक़े से 47 करोड़ रुपये निकाले जाने के मामले से जुड़ा था। सितंबर, 2013 में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने प्रसाद और मिश्रा के साथ 45 अन्य लोगों को दोषी क़रार दिया। लालू प्रसाद की लोक सभा की सदस्यता ख़त्म हो गई और सज़ा ख़त्म होने के 6 साल बाद तक के लिए उनके ऊपर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लग गया।

कुल मिलाकर 900 करोड़ रुपये के कथित चारा घोटाला मामले में आयकर विभाग ने पाया कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने इसमें से 46 लाख रुपये लिए। लेकिन उस मामले से भी उच्चतम न्यायालय ने लालू प्रसाद को बरी कर दिया। लेकिन सीबीआई और उसकी विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को अच्छे से रगड़ा। चारा घोटाला मामले को एक यूनिट न मानकर अलग अलग मामलों में लालू प्रसाद को अलग अलग सजाएँ सुनाई गईं, जिसे लालू प्रसाद को अलग-अलग सज़ा भुगतने के आदेश दिए गए।

चाईबासा मामले में 5 साल की सज़ा, देवघर मामले में साढ़े तीन साल की सज़ा और दुमका कोषागार मामले में 7 साल की सज़ा। उच्च न्यायालय ने भी लालू प्रसाद को कोई ढील देने से मना कर दिया।

आयकर विभाग ने पाया कि उनके आय से अधिक 46 लाख रुपये हैं, जो चारा घोटाले में सरकारी ट्रेजरी से आए और उससे भी सुप्रीम कोर्ट ने लालू को बरी कर दिया। झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले शनिवार को लालू प्रसाद को जमानत दे दी। वह आधी सज़ा जेल में काट चुके हैं। हाईकोर्ट ने उन्हें जेल से बाहर आने के लिए 10 लाख रुपये मुचलका भरने का आदेश दिया है।

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तीन दशक की जाँच की कवायदों के दौरान तमाम आरोपियों की मौत हो चुकी है। चारा घोटाले के 900 करोड़ रुपये किसके पास गए, किस खाते में गए, किसने उस धन से कितनी संपत्ति बनाई और उसे कोषागार में कैसे जमा कराया जाए, इस पर कुछ हुआ नज़र नहीं आता। अगर नज़र आता है तो सिर्फ़ इतना कि बिहार में जनता के मसीहा बन चुके लालू प्रसाद की मसीहाई कमज़ोर पड़ गई। सबसे ज़्यादा सज़ा लालू प्रसाद को भुगतनी पड़ी, जिनके मुख्यमंत्री रहते चारा घोटाला मामले में जांच की त्वरित कार्रवाई हुई, जांच आयोगों का गठन किया गया। इस पूरे प्रकरण के लाभार्थी बिहार में नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी हुए और 2014 में नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के पहले तक केंद्र में लालू प्रसाद कांग्रेस को समर्थन बनाए रखने के लिए मजबूर बने रहे।
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प्रीति सिंह

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