लोकसभा चुनाव में बिहार और झारखंड में कुछ अलग माहौल दिखाई पड़ रहा है। इन दोनों राज्यों में लालू प्रसाद यादव की अपनी अलग पहचान है और चुनाव के समय में तो लालू पूरे इलाक़े में अपनी अलग छाप से जाने जाते हैं। लेकिन देश के चर्चित घोटालों में से एक चारा घोटाले के मामले में सजायाफ़्ता लालू प्रसाद यादव अपने सबसे मुश्किल समय से गुजर रहे हैं।
पिछले कुछ दशकों के बाद पहली बार बिहार और झारखंड में वोटरों को लालू यादव के चुटीले अंदाज में भाषण सुनने को नहीं मिल पा रहा है, जो देश के लगभग हर एक व्यक्ति तक को गुदगुदा जाता था।
कम नहीं हो रहीं लालू की मुश्किलें
इधर, लालू यादव की मुश्किलें कम होती नज़र नहीं आ रही हैं। लालू यादव रिम्स के पेइंग वार्ड में अपना सबसे बुरा समय काटने को मजबूर हैं। बीता शनिवार एक बार और उनके जीवन में कठोर अनुभव दे गया, जब बेटे तेजस्वी यादव को उनसे नहीं मिलने दिया गया। हालाँकि तेजस्वी के नहीं मिल पाने के पीछे जेल प्रशासन का अपना तर्क है कि निर्धारित समय पर तेजस्वी यादव रिम्स नहीं पहुँच पाए। वैसे लालू से मिलने के लिए शनिवार का ही दिन निर्धारित है।
पिता से नहीं मिल पाने के बाद तेजस्वी यादव ने साफ़ तौर पर आरोप लगाया कि उनके परिवार को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। शनिवार को काफ़ी मशक्कत के बाद भी तेजस्वी को लालू प्रसाद यादव से मिलने नहीं दिया गया। तेजस्वी ने कहा कि लालू प्रसाद यादव एक विचार हैं, उनके चुनावी मैदान में नहीं रहने के बाद भी लोग उनके समर्थन में हैं और इसका प्रभाव चुनाव में दिखाई पड़ेगा।
तेजस्वी ने न सिर्फ़ राजनीतिक प्रताड़ना का आरोप लगाया बल्कि यह भी कहा कि उनके पिता का इलाज ठीक से नहीं किया जा रहा है। पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ भी उन्होंने नाराज़गी जताई।
कई कारणों से चर्चित रहे लालू
लालू प्रसाद यादव अपने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में कई कारणों से चर्चा में बने रहे। लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा तब हुई जब 23 सितंबर 1990 को राम रथ यात्रा के दौरान उनके आदेश पर लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ़्तार कर लिया गया।
इसके अलावा बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने, बिहार से झारखंड को अलग करने के विषय पर अपनी लाश पर राज्य का बँटवारा करने, लालकृष्ण आडवाणी को अंतराष्ट्रीय फ़रार बताने के साथ-साथ, इसलामिक पोषाक धारण कर एमवाई (मुसलिम-यादव) समीकरण को फ़िट बैठाने को लेकर लालू हमेशा चर्चा में रहे।
क्या है चारा घोटाला
अविभाजित बिहार के समय हुए 900 करोड़ रुपये के चारा घोटाले को लेकर 1996 में जानकारी सामने आई थी। चाइबासा के तत्कालीन डीसी अमित खरे ने जब पशुपालन विभाग के कार्यालयों में छापा मारा तो पता चला कि चारा आपूर्ति करने के बहाने कई फ़र्जी कंपनियाँ काम कर रही हैं और इसमें बड़ी राशि की हेरा-फेरी की जा रही है।
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