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अमित शाह की रैली में नागरिकता क़ानून का विरोध करने पर महिलाओं को घर से निकाला

गृह मंत्री अमित शाह की रैली में दो महिलाओं द्वारा नागरिकता क़ानून के विरोध वाला बैनर दिखाने पर उनको घर से निकाल दिया गया। वे किराए के घर में रहते थे। यह मामला कहीं और नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में हुआ। दोनों में से एक महिला ने दावा किया कि जब उन्होंने विरोध किया तो भीड़ ने उनके घर में घुसने का प्रयास किया, दरवाज़ा तोड़ने की धमकी दी और जब पुलिस पहुँची तब वे वहाँ से हटे।

दरअसल, अमित शाह ने पाँच जनवरी को लाजपत नगर में रैली की थी। उसी दौरान दो महिलाओं ने नागरिकता क़ानून का विरोध किया था। इस दौरान हुई इस घटना की रिपोर्ट 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने की है। रिपोर्ट के अनुसार, एक बयान में दोनों में से एक महिला सूर्या राजप्पन ने लिखा, 'जब हमें पता चला कि शाह नागरिकता क़ानून के समर्थन में रैली कर रहे हैं तो हमने अपने संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए इसका विरोध किया। एक आम नागरिक के तौर पर यह मेरे लिए बिल्कुल सही मौक़ा था कि गृह मंत्री के सामने विरोध दर्ज किया जाए। मुझे लगता है कि यदि मैं ऐसा करने में विफल होती तो मेरा ज़मीर विफल होता।'

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बता दें कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगहों पर हिंसा भी हुई है। हिंसा की शुरुआत हुई थी असम में। वहाँ पाँच लोग मारे गए। उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसा में कम से कम 19 लोग मारे गए। दक्षिण भारत में भी कई जगहों पर हिंसा हुई और कम से कम दो लोग मारे गए। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इसलामिया विश्वविद्यायल और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में भी हिंसा हुई और पुलिस ने बल का प्रयोग किया। इसके बाद देश भर के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शन हुए। दिल्ली के शाहीन बाग़ में महिलाएँ अभी भी प्रदर्शन कर रही हैं। माना जा रहा है कि नागरिकता क़ानून और एनआरसी से सबसे ज़्यादा महिलाएँ ही प्रभावित होंगी क्योंकि एक तो ज़्यादातर महिलाओं के नाम से ज़मीन जायदाद के कागजात नहीं होते हैं और दूसरे ससुराल आने पर उनके अपने माँ-बाप के कागजात जुटाने में ज़्यादा दिक्कतें भी आएँगी। 

लाजपत नगर में जिन्होंने अमित शाह की रैली में विरोध किया वे भी महिलाएँ ही थीं। उन दोनों महिलाओं में से एक सूर्या राजप्पन ने बयान में लिखा, “जब शाह के नेतृत्व में रैली हमारी गली से गुज़र रही थी तब मेरे फ्लैटमेट और मैंने अपनी बालकनी से एक बैनर दिखाया था। बैनर पर लिखा था: शर्म; सीएए (नागरिकता क़ानून) और एनआरसी, हद पार कर दी; जय हिन्द; आज़ादी और #NotInMyName। यह सुनिश्चित करने के लिए हमारी ओर से सावधानीपूर्वक निर्णय लिया गया था कि अपमानजनक शब्द या वाक्य नहीं हो।’

उन्होंने लिखा, 'हमारे विरोध को देखते हुए, रैली के सदस्य आग-बबूला हो गए, आक्रामक हो गए और धमकी दी व अपमानजनक/ग़लत टिप्पणी कर हमें डराने के लिए आगे बढ़े। हमारे अपार्टमेंट के नीचे सड़क पर क़रीब 150 लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। उन्होंने विरोध वाले बैनर को फाड़ दिया और वे उसे ले गए। एक समूह सीढ़ियों से हमारे कमरे की ओर रुख किया और धमकी दी कि अगर हमने उन्हें अंदर नहीं आने दिया तो वे दरवाज़ा को तोड़ देंगे। ऐसी उग्र और हिंसक प्रतिक्रिया की आशंका नहीं थी। हमने अपनी जान और सुरक्षा को लेकर डर लगा और ख़ुद को हमारे घर में बंद कर लिया। जबकि वे हिंसक रूप से हमारे दरवाज़े पर पीटते रहे और जब तक पुलिस ने हस्तक्षेप नहीं किया तब तक वे चिल्लाते रहे।’ 

सूर्या ने लिखा कि हालाँकि, हमारी प्रताड़ना यहीं ख़त्म नहीं हुई। उन्होंने कहा कि हमारे घर की सीढ़ी की ओर जाने वाले सामान्य प्रवेश द्वार को हमारे मकान मालिक द्वारा बंद कर दिया गया था, जो उस ग़ुस्से वाली भीड़ का हिस्सा था।

उन्होंने लिखा, ‘हम घर में फँस गए थे और बाहर निकलने में असमर्थ थे। हम आतंकित थे और हमने अपने दोस्तों को हमारी मदद के लिए बुलाया। जब वे मौक़े पर पहुँचे तो भीड़ ने उन्हें और अधिक शारीरिक हिंसा की धमकी दी और उन्हें घर में घुसने से रोक दिया। 3-4 घंटे तक हम अंदर फँसे रहे। इस बीच, हमारे मकान मालिक ने हमें कहा कि हमें मकान से निकाल दिया गया है।’

उन्होंने यह भी लिखा कि पुलिस और हमारे दोस्तों द्वारा लंबे समय और बार-बार प्रयास के बाद मेरे पिता को पुलिस अधिकारी के साथ प्रवेश करने दिया गया। उन्होंने लिखा, ‘पुलिस ने भीड़ के आपराधिक व्यवहार के ख़िलाफ़ हमारी शिकायत दर्ज की। सात घंटे के बाद सीढ़ी के दरवाज़े को खोला गया और हमें पुलिस के संरक्षण में छोड़ दिया गया। हमने अपनी ज़रूरी चीजें पैक कीं और जगह छोड़ दी।’ 

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‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, जब उनके मकान मालिक से संपर्क किया गया तो उन्होंने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘अमित शाह की रैली के दौरान सीएए के ख़िलाफ़ बैनर दिखाए जाने के बाद उसी दिन वे (महिलाएँ) छोड़ कर चली गईं। वे अपने माता-पिता के साथ चले गए और मुझे कुछ भी पता नहीं है कि वे कहाँ हैं। उससे सभी को असुविधा हुई थी।’ यह पूछे जाने पर कि उन्होंने उन्हें क्यों निकाला, उन्होंने कहा- ‘मुझे उन्हें अपना किरायेदार बनाना ही नहीं चाहिए था’।

यह अजीबोगरीब मामला है जिसमें संवैधानिक रूप से विरोध करने पर किसी को घर से निकाल दिया गया हो।

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क़मर वहीद नक़वी

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