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जामिया-जेएनयू जाँच से जुड़े रहे पुलिस अफ़सर करेंगे दिल्ली हिंसा की जाँच

दिल्ली दंगे पर काबू पाने में पुलिस का रवैया हैरान करने वाला रहा है। अब इस इस मामले की जाँच के लिए जो दो विशेष जाँच टीमें यानी एसआईटी बनी हैं, वह भी कम हैरान करने वाली नहीं हैं। दोनों में से हर एसआईटी का नेतृत्व डीसीपी राजेश देव और जॉय टिर्की करेंगे। ये दोनों अफ़सर वही हैं जो जामिया मिल्लिया इसलामिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंसा के मामलों की जाँच की निगरानी करते रहे हैं। ये दोनों ऐसे मामले हैं जिनमें सीसीटीवी फुटेज मौजूद हैं। जेएनयू में कई हमलावरों की पहचान भी गई, जामिया में ख़ुद पुलिस फँसती दिखी। लेकिन इन दोनों मामलों में क़रीब दो महीने में नतीजा क्या निकला? क्या यह हैरान करने का मामला नहीं है?

दिल्ली दंगे की जाँच करने के लिए इन दोनों के नेतृत्व में बनी एसआईटी की जाँच कैसी होगी? क्या भड़काऊ भाषण देने वालों की गिरफ़्तारी होगी? दंगे के साज़िशकर्ताओं तक पुलिस पहुँचेगी? इन सवालों के जवाब उन दोनों अफ़सरों के ट्रैक रिकॉर्ड से ही मिलेंगे।

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चुनाव आयोग ने की थी देव पर कार्रवाई

डीसीपी राजेश देव वह अधिकारी हैं जिनको चुनाव आयोग ने पिछले महीने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ड्यूटी से हटा दिया था। उन्होंने शाहीन बाग़ इलाक़े में फ़ायरिंग करने के आरोपी कपिल बैसाला का संबंध आम आदमी पार्टी से बताया था। तब चुनाव आयोग ने कहा था कि जब राजधानी में चुनाव होने वाले हैं फिर ऐसे समय में किसी जाँच में राजनीतिक पार्टी का ज़िक्र करना अनुचित है। आयोग ने साफ़-साफ़ कहा था कि राजेश देव के बयान से चुनाव की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है। शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ दो महीने से ज़्यादा समय से प्रदर्शन चल रहा है और उसी दौरान क्षेत्र में कपिल ने फ़ायरिंग की थी। 

जामिया की जाँच

हाल के दिनों में सबसे चर्चित मामलों में से एक जामिया के मामले में अभी तक पुलिस की तरफ़ से ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। यह वही मामला है जिसमें दिसंबर महीने में जामिया के छात्रों ने प्रदर्शन किया था और उस दौरान वहाँ हिंसा हुई थी। छात्रों ने हिंसा में हाथ होने से इनकार किया था। लेकिन पुलिस ने विश्वविद्यालय कैंपस में घुसकर कार्रवाई की थी। उस हिंसा के मामले में पुलिस ने इसी महीने चार्जशीट दाखिल की है। इसमें दावा किया गया है कि जामिया में उस रात छात्र इसलिए घायल हुए थे क्योंकि भगदड़ मची थी और पत्थरबाज़ी की घटनाएँ हुई थीं। हालाँकि अब यूनिवर्सिटी के जो सीसीटीवी फुटेज आए हैं उनमें दिख रहा है कि पुलिस लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों की पिटाई कर रही है। पुलिसकर्मी सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ते हुए दिखाई देते हैं। यह पुलिस के उस दावे के उलट है जिसमें पहले उसने लाइब्रेरी में घुसने के आरोपों से साफ़ इनकार किया था। 

इस पूरे मामले में कुछ ख़ास कार्रवाई नहीं हुई है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में दर्जनों नकाबपोशों का हमला हुआ तो इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इसके बावजूद इस मामले में अब तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है। ऐसा तब है जब हमलावरों के ख़िलाफ़ दर्जनों सबूत मीडिया में आ गए हैं।

पुलिस का यह काफ़ी अजीब रवैया है। वह भी तब जब हिंसा को हुए क़रीब दो महीने होने को आए। जेएनयू में दर्जनों नकाबपोश घुसे थे। हमले में 34 घायल हुए थे। हिंसा की तसवीरें और वीडियो सामने आए। हमले की योजना बनाने वाली जानकारी वाले वाट्सऐप के स्क्रीनशॉट भी आए। इनमें कई की पहचान भी हो गई। कई लोगों के तार बीजेपी-संघ की छात्र ईकाई एबीवीपी से जुड़े होने की रिपोर्टें आईं। बाद में ख़ुद पुलिस ने भी कुछ तसवीरें जारी कीं।

इस बीच पुलिस ने हिंसा करने वालों पर कार्रवाई नहीं की। इसने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की जिनपर हमला हुआ था। उसमें छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष को तीन और चार जनवरी को कथित तोड़फोड़ के लिए आरोपी बनाया गया।

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जबकि कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि उस हिंसा के दौरान की वीडियो फ़ुटेज और तसवीरों में दिख रहे कुछ लोग एबीवीपी से जुड़े हैं। ‘ऑल्ट न्यूज़’ और ‘इंडिया टुडे’ ने दावा किया था कि हमले करने वालों में शामिल एक लड़की का नाम कोमल शर्मा है और वह एबीवीपी की कार्यकर्ता है। ‘इंडिया टुडे’ ने स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया था कि अक्षत अवस्थी और रोहित शाह इस बात को कबूल कर रहे हैं कि जेएनयू में कैसे हमला किया गया। जब इनकी पहचान हुई तो पुलिस को सफ़ाई देनी पड़ी। तब पुलिस ने कहा था कि वह कोमल शर्मा और अक्षत अवस्थी और रोहित शाह को नोटिस भेज चुकी है। इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। 

अब जामिया और जेएनयू दोनों मामलों में सीसीटीवी, मोबाइल के वीडियो, मीडिया द्वारा पुष्ट की गई पहचान और ऐसे ही कई सबूत होने के बाद भी पुलिस की कार्रवाई न के बराबर हुई है। इनकी जाँच की निगरानी डीसीपी राजेश देव और जॉय टिर्की करते रहे हैं। अब ये अफ़सर दिल्ली दंगे की जाँच कैसे करते हैं, यह तो बाद में ही पता चलेगा। 
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क़मर वहीद नक़वी

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