loader

क्या राहुल के दादा मुसलमान थे और उन्हें दफ़नाया गया था?

सोशल मीडिया पर यह बात तेज़ी से फैलाई जा रही है कि राहुल गाँधी के दादा फ़िरोज़ जहाँगीर गाँधी मुसलमान थे। आपके पास भी ऐसा संदेश आया होगा जिसमें एक क़ब्र दिखाई जा रही है और उस पर पर लगे पत्थर पर लिखी इबारत को वायरल किया जा रहा है (देखें ऊपर की तसवीर) जिसमें फ़िरोज़ के बारे में लिखा गया है। राहुल गाँधी के पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर में ख़ुद को दत्तात्रेय गोत्र का कौल ब्राह्रमण बताए जाने के बाद यह हमला तेज़ हो गया है। तो क्या फ़िरोज़ वाक़ई मुसलमान थे? यदि ऐसा नहीं है तो उस क़ब्र का सच क्या है? यह सच है कि इलाहाबाद के ममफ़र्डगंज में बने पारसी क़ब्रिस्तान में जिस क़ब्र को फिरोज़ गाँधी की क़ब्र बताया गया है, वह वाक़ई उन्हीं की क़ब्र है। उस पर लगा पत्थर इसकी तस्दीक़ करता है।
Truth behind grave of Rahul grandfather Feroze Gandhi - Satya Hindi
पारसी क़ब्रिस्तान में बने इस क़ब्र पर लगे पत्थर पर फ़िरोज़ गाँधी के बारे में बताया गया है।
सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों का कहना है कि फ़िरोज़ मुसलमान ही थे क्योंकि पारसियों को दफ़नाया नहीं जाता है।  

‘फ़िरोज़-द फ़रगॉटन गाँधी’

स्विटज़लैंड के पत्रकार बर्टिल फ़ॉक की किताब से इस सवाल का जवाब मिलता है। उन्होंने 40 साल के गहन शोध के बाद किताब लिखी, ‘फ़िरोज-द फ़रगॉटन गाँधी’। वे लिखते हैं कि फ़िरोज़ को 7 सितंबर 1960 को दिल का दौरा पड़ा और अगले दिन वेलिंगटन अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसें लीं। इंदिरा गाँधी भूटान में थीं और फ़िरोज़ के दिल का दौरा पड़ने की ख़बर पाकर दिल्ली पहुँच गईं। वे अंतिम समय अपने पति के साथ ही थीं।

राजीव ने दी मुखाग्नि

फ़ॉक लिखते हैं कि अगले दिन यानी 9 सितंबर को निगमबोध घाट पर हिन्दू रीति रिवाजों से फ़िरोज़ की अंत्येष्टि की गई। बड़े बेटे राजीव ने उन्हें मुखाग्नि दी। वे उस समय सिर्फ़ 18 साल के थे। अंत्येष्टि में फ़िरोज़ की बहन तहमीना भी मौजूद थीं।फ़ॉक के मुताबिक़, दिल का दौरा पड़ने पर फ़िरोज़ को लगने लगा था कि वे नहीं बचेंगे, उन्होंने अपने दोस्तों से कहा था कि वे अपनी अंत्येष्टि हिन्दू तरीक़े से ही चाहेंगे।

कैसे होती है पारसी अंत्येष्टि?

पारसी रीति में शव को एकांत में ऊँचाई पर बने ‘टावर ऑव साइलंस’ में रख दिया जाता है ताकि गिद्ध उन्हें नोच कर खाएँ। इसके पीछे अवधारणा यह है कि कम से कम मरने के बाद यह शरीर किसी जीव के काम आए। लेकिन फ़िरोज़ को गिद्धों से शरीर नुचवाने का तरीका नापसंद था। फॉक यह भी लिखते हैं कि इंदिरा गाँधी ने पति के दाह संस्कार में यह सुनिश्चित किया कि कुछ पारसी रीतियों को भी शामिल कर लिया जाए। 
बर्टिल फ़ॉक ने अपनी किताब, फ़िरोज: 'द फ़रगॉटन गाँधी' में लिखा, 'जब फ़िरोज़ के शव के सामने पारसी रीति से 'गेह-सारनू' पढ़ा गया तो कमरे से इंदिरा और उनके दोनों बेटों के अलावा सब को हटा दिया गया. फ़िरोज़ के शव के मुँह पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर 'अहनावेति' का पूरा पहला अध्याय पढ़ा गया.'

कैथरीन फ़्रैंक: अस्थियाँ दफ़नाई गईं

इस किताब में यह भी कहा गया है कि दो दिन बाद फ़िरोज़ की अस्थियाँ ट्रेन से इलाहाबाद ले जाई गईं। अस्थियों का एक हिस्सा संगम में प्रवाहित किया गया और दूसरा हिस्सा पारसियों के क़ब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया।इंदिरा गाँधी की जीवनीकार कैथरीन फ़्रैंक ने अपनी किताब ‘इंदिरा’ में भी विस्तार से लिखा है कि किस तरह हिन्दू रीति-रिवाज़ों से अंतिम संस्कार किए जाने के बाद पारसी क़ब्रिस्तान में अस्थियां दफ़नाई गई थीं और एक पक्का मज़ार भी बनवाया गया। इलाहाबाद के बंद हो चुके पैलेस सिनेमा के मालिकान फ़िरोज़ गांधी के परिजन हैं। अभी हाल मे आनंद भवन ट्रस्ट की बैठक के सिलसिले में जब सोनिया और राहुल इलाहाबाद आए थे तो इकलौते इसी परिवार को बुलाया था और साथ नाश्ता किया था।कांग्रेसी हर साल फिरोज गांधी की जयंती पर उनके मजार पर जाते हैं। इलाहाबाद में 2007 मे कांग्रेस के मेयर हुए जितेंद्र नाथ ने इस पारसी कब्रिस्तान का सौंदर्यीकरण भी करवाया था।
Truth behind grave of Rahul grandfather Feroze Gandhi - Satya Hindi
फ़िरोज़ और इंदिरा का विवाह भी हिन्दू रीति रिवाज़ों से हुआ था। कैथरीन और बर्टिल ने इस पर भी विस्तार से लिखा है।
Truth behind grave of Rahul grandfather Feroze Gandhi - Satya Hindi
इंदिरा से फ़िरोज़ गाँधी का विवाह हिन्दू रीति-रिवाजों से हुआ था।
लंदन से छपने वाली 'द लंदन गज़ट' के 11 अक्टूबर, 1870 को एक दिलचस्प ख़बर छपी। इसमें बताया गया था कि कुछ लोगों ने ब्रिटिश सरकार के पास याचिकाएँ दायर कीं। इनमें एक थे धनजीभाई फ़रदूनभाई गाँधी। उनका धर्म पारसी था, वे मुंबई के धोबी तालाब इलाक़े में रहते थे और पेशे से ठेकेदार थे। 

कौन थे फ़िरोज़ के दादा?

दरअसल ये धनजीभाई फ़रदूनभाई गाँधी कोई और नहीं, फ़िरोज़ गाँधी के दादा थे। इनके बेटे थे फ़रदूनभाई जहाँगीर गाँधी। फ़रदून जहाँगीर गाँधी के बेटे तीन बेटे और दो बेटियाँ थीं। बेटे थे, फ़िरोज़, दोराब और फ़रिदून जहाँगीर, बेटियां थीं, तहमीना करशश्प और आलू दस्तूर। फ़िरोज़ का जन्म बंबई फ़ोर्ट के तहमुलजी नरीमन अस्पताल में 12 सितंबर, 1912 को हुआ था। पारसी में गाँधी की स्पेलिंग Ghandy था लेकिन गाँधी जी से प्रभावित होकर फ़िरोज़ ने अपने सरनेम की स्पेलिंग Gandhi कर ली।
Truth behind grave of Rahul grandfather Feroze Gandhi - Satya Hindi

राहुल का पारसी रिश्तेदार दिल्ली में

इंदिरा कभी-कभी इलाहाबाद जाने पर अपने ससुराल के लोगों को चाय-नाश्ते पर बुलवा लेती थीं। फ़िरोज़ तीन भाई थे। उनसे ठीक छोटे रुस्तम का घर इलाहाबाद में ही था। उनकी मौत हो चुकी है। लेकिन रुस्तम के बेटे फ़रदीन दाँतों के डाक्टर हैं और दिल्ली में रहते हैं। उन्हें प्रियंका गाँधी के विवाह में न्योता गया था। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल तक, उस परिवार के सारे लोग बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों के निशाने पर हैं। राहुल के ख़ानदान के लोगों के बारे में तरह-तरह के झूठ गढ़े जाते हैं और सोशल मीडिया पर वायरल कराए जाते हैं। ज़ाहिर है, इसके पीछे राजनीतिक चाल है। राहुल के ख़ुद को कौल ब्राह्मण बताने के बाद इस तरह के हमले और तंज तेज़ हो गए हैं। यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि राहुल के दादा तो मुसलमान थे, वे ब्राह्मण कैसे हो गए? दरअसल राहुल जिस तरह 'नरम हिन्दुत्व' की लाइन लेते हुए मंदिर जा रहे हैं, ख़ुद को शिवभक्त बता रहे हैं, उससे बीजेपी परेशान है। राहुल की कोशशों की हवा निकालने के लिए यह सब किया जा रहा है जिससे यह साबित कर दिया जाए कि वे तो हिन्दू हैं ही नहीं। इसकी पूरी आशंका है कि जैसे-जैसे आम चुनाव नज़दीक आएगा, इस तरह की बातें बढेंगी। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

असत्य से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें