बसवराज बोम्मई
भाजपा - शिगगांव
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आर्थिक मंदी और कोरोना लॉकडाउन के बीच करोड़ों लोगों की नौकरियाँ ख़त्म हुई हैं, इसकी तसवीर अब नौकरी से जुड़े सरकारी पोर्टल पर ही दिखने लगी है। सिर्फ़ 40 दिन में 69 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन दिया। बेरोज़गारी के भयावह संकट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने 11 जुलाई को ही इस पोर्टल को लॉन्च किया है। हालाँकि इतनी संख्या में लोगों ने नौकरियाँ माँगी हैं लेकिन गिने-चुने लोगों को ही नौकरी करने का अवसर मिल पाया है। बेरोज़गारी की यह तसवीर सिर्फ़ आँकड़ा भले ही लगे, लेकिन सरकार के लिए यह ख़तरे की घंटी होनी चाहिए।
वैसे, ख़तरे की घंटी तो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के बेरोज़गारी के आँकड़े से ही साबित हो गई होगी। लेकिन यदि सरकार को ग़लतफहमी हो कि ये सिर्फ़ आँकड़े हैं और लोगों की बेरोज़गारी कोई मुद्दा नहीं बनेगी तो नौकरी के लिए बनाए गए सरकारी पोर्टल पर नौकरी माँगने वालों की यह संख्या नेताओं की नींद उड़ाने के लिए काफ़ी है।
अब इस सरकारी पोर्टल पर पिछले एक हफ़्ते में नौकरी ढूँढने वालों की संख्या और जिनको नौकरी मिली है उनकी संख्या को देखिए। यह संख्या काफ़ी कुछ कहती है।
पिछले एक हफ़्ते में 14 अगस्त से 21 अगस्त तक 7 लाख लोगों ने पोर्टल पर ख़ुद को रजिस्टर कराया। लेकिन इस दौरान सिर्फ़ 691 लोगों को नौकरियाँ मिलीं।
कौशल विकास मंत्रालय और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा अपने ASEEM (Aatmanirbhar Skilled Employee Employer Mapping) पोर्टल पर डाले गए आँकड़ों के अनुसार, पंजीकरण करने वाले 69 लाख प्रवासी श्रमिकों में से 1.49 लाख को नौकरी की पेशकश की गई थी, लेकिन केवल 7,700 ही ज्वाइन कर सके।
पोर्टल पर 514 कंपनियाँ पंजीकृत हैं, जिनमें से 443 ने 2.92 लाख नौकरियाँ पोस्ट की हैं। आँकड़े बताते हैं कि इसमें से 1.49 लाख नौकरी चाहने वालों को नौकरी की पेशकश की गई है। 21 अगस्त को समाप्त सप्ताह में, पोर्टल पर सक्रिय कंपनियों की संख्या, जिसने कम से कम 1 नौकरी पोस्ट की है, पिछले सप्ताह के दौरान 419 से बढ़कर 443 हो गई है।
अगर देखा जाए तो लॉकडाउन के दौरान कंपनियाँ और दूसरे काम बंद होने से जितने लोगों की नौकरियाँ गई हैं उसके हिसाब से नौकरी माँगने वालों की यह संख्या काफ़ी कम है। सीएमआईई ने पिछले हफ़्ते ही रिपोर्ट में कहा था कि अप्रैल से लेकर जुलाई तक 1 करोड़ 89 लाख वेतन भोगी लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। इन वेतन भोगियों में वे शामिल नहीं हैं जो ग़ैर वेतन भोगी हैं यानी दिहाड़ी पर काम करते हैं। ऐसे लोगों की संख्या तो काफ़ी ज़्यादा है। वेतन भोगी लोगों की नौकरियाँ जाना लंबे समय के लिए अर्थव्यवस्था पर असर को दिखाता है और यह भी कि अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ख़राब है।
वैसे वेतनभोगी लोगों की नौकरियाँ कम सिर्फ़ लॉकडाउन में ही नहीं हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वित्त वर्ष में भी रिपोर्ट नकारात्मक थी। सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में ही कहा है कि 'वैसे तो वेतनभोगियों की नौकरियाँ आसानी से नहीं जाती हैं, लेकिन एक बार चली जाने के बाद उन्हें फिर से पाना और भी कठिन होता है। इसलिए, इतनी बड़ी संख्या में नौकरियाँ जाना चिंता की बात है। 2019-20 में वेतनभोगी नौकरियाँ अपने औसत से क़रीब 1 करोड़ 90 लाख कम थीं। पिछले वित्त वर्ष में वे अपने स्तर से 22 फ़ीसदी कम थीं।'
असंगठित क्षेत्र में तो अप्रैल महीने में ही 12 करोड़ नौकरियाँ चली गई थीं। इनमें छोटे-मोटे काम धंधा करने वाले लोग और इस तरह के धंधों से जुड़ी दुकानों या कंपनियों में काम करने वाले लोग ज़्यादा हैं। सीएमआईई ने अनुमान लगाया था कि इसमें से कम से कम 75 प्रतिशत तो दिहाड़ी मज़दूर ही थे।
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