हिंदी दिवस के मौक़े पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब कहा कि पूरे देश की एक भाषा होना बेहद ज़रूरी है जो विश्व में भारत की पहचान बन सके तो इस पर संग्राम छिड़ गया। दक्षिण के कुछ नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि शाह हिंदी को थोपने की कोशिश न करें। अमित शाह ने अपने ट्वीट में कहा कि आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है। हालाँकि शाह ने यह भी कहा कि भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है।
भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परन्तु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है। pic.twitter.com/hrk1ktpDCn
— Amit Shah (@AmitShah) September 14, 2019
गृह मंत्री ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘हिंदी दिवस के दिन हमें आत्मचिंतन करना चाहिए। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिनकी भाषाएं लुप्त हो गईं। जो देश अपनी भाषा छोड़ देता है वह अपना अस्तित्व भी कायम नहीं रख सकता। क्योंकि भाषा ही है जो व्यक्ति को देश के मूल के साथ, संस्कृति के साथ जोड़ती है।’
MK Stalin, DMK president: We have been continuously waging protest against imposition of Hindi. Today's remarks made by Amit Shah gave us a jolt, it will affect the unity of the country. We demand that he takes his statement back. pic.twitter.com/JMchnIeZc4
— ANI (@ANI) September 14, 2019
Hindi isn't every Indian's "mother tongue". Could you try appreciating the diversity & beauty of the many mother tongues that dot this land? Article 29 gives every Indian the right to a distinct language, script & culture.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) September 14, 2019
India's much bigger than Hindi, Hindu, Hindutva https://t.co/YMVjNlaYry
Karnataka Ranadheera Pade and other pro Kannada organizations held a protest in front of town hall in Bengaluru against #Hindidivas pic.twitter.com/7Y4stviZFH
— ANI (@ANI) September 14, 2019
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दीं और कहा कि हम कई भाषाएँ सीख सकते हैं लेकिन हमें अपनी मातृ-भाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए और सभी भाषाओं और संस्कृतियों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए।
याद दिला दें कि इस साल जून में नई एजुकेशन पॉलिसी का ड्राफ़्ट सामने आने के बाद दक्षिण के राज्यों में इसका जोरदार विरोध हुआ था क्योंकि इसमें भारत के सभी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया गया था। तब दक्षिण के लोगों ने कहा था कि उन पर हिंदी थोपी जा रही है और ट्विटर पर #StopHindiImposition और #TNAgainstHindiImposition ट्रेंड कराया था। तमिलनाडु सरकार ने भी इसे लागू करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि तमिलनाडु में सिर्फ़ तमिल और अंग्रेज़ी आगे बढ़ेगी।
तमिलनाडु के हिंदी विरोधी आंदोलन
तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन का इतिहास बहुत पुराना है। साल 1937 में जब मद्रास प्रान्त में इंडियन नेशनल कांग्रेस की सरकार बनी थी और सरकार के मुखिया चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की थी तब द्रविड़ आंदोलन के नेता 'पेरियार' के नेतृत्व में हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ था। यह आंदोलन इतना तीव्र और प्रभावशाली था कि सरकार को झुकना पड़ा था। इसके बाद 50 और 60 के दशकों में भी जब हिंदी को थोपने की कोशिश की गयी तब भी जमकर आंदोलन हुआ था और हिंसा भी हुई थी।तमिलनाडु ने हमेशा ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव का भी विरोध किया है। तमिलनाडु की सभी द्रविड़ पार्टियाँ शुरू से ही हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश का विरोध करती रही हैं। पेरियार, अन्ना दुराई, एमजीआर, करुणानिधि, जयललिता जैसे सभी नेताओं ने तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य किये जाने का विरोध किया। द्रविड़ पार्टियों का हिंदी विरोध इतना तीव्र है कि इन पार्टियों ने तमिलनाडु में राजमार्ग पर लगने वाले साइन बोर्ड/ दिशा-निर्देश पट्टिकाओं पर हिंदी में लिखे जाने का विरोध किया है। तब तमिलनाडु को तत्कालीन कांग्रेस-जेडीएस सरकार का भी समर्थन मिला था।
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