राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार भले ही किसी भी क़ीमत पर नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने पर आमादा हो और विपक्ष की बात सुनने के लिए तैयार नहीं हो लेकिन एनडीए में सबसे बड़े दल बीजेपी को अपनी पार्टी के नेताओं की बात तो सुननी ही चाहिए। उसे इस ओर भी देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी की असम के लोगों को इस विधेयक से नहीं डरने की अपील के बावजूद वहां जोरदार प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं। आख़िर क्यों त्रिपुरा और मेघालय में लोग सड़क पर हैं और क्यों वहां इंटरनेट बंद करने की नौबत आई है। लेकिन इस सबसे पहले बीजेपी अपनी पार्टी के नेताओं की बात तो सुने। नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर असम के बीजेपी नेता और अभिनेता जतिन बोरा के पार्टी से इस्तीफ़ा देने के बाद पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने इस विधेयक को विभाजनकारी बताया है।
असम के विधानसभा स्पीकर हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने कहा है कि इस विधेयक को लेकर लोगों की जो शंकाएं हैं, वे निराधार नहीं हैं। गोस्वामी ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह असम के लोगों, विशेषकर युवाओं के ग़ुस्से और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए।
गोस्वामी ने एक बयान में कहा, ‘राज्यसभा से पास होने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक क़ानून बन चुका है। हालाँकि मुझे विधानसभा स्पीकर जैसे संवैधानिक पद पर होने के नाते टिप्पणी नहीं करनी चाहिए लेकिन असम आंदोलन के जरिये देश और समाज के लिए काम करने वाले एक व्यक्ति के नाते मैं मानता हूँ कि इस विधेयक को लेकर लोगों की जो शंकाएं हैं, वे बेबुनियाद नहीं हैं।’
गोस्वामी ने आगे कहा, ‘अगर इस विधेयक को लागू किया जाता है तो इस बात की प्रबल संभावना है कि यह जातियों, समुदायों और भाषाओं को बाँटने वाला साबित होगा।’ इस साल जनवरी में इस विधेयक के पुराने स्वरूप को लोकसभा की ओर से सहमति मिलने के बाद भी गोस्वामी ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी और कहा था कि असम के एक सामान्य नागरिक होने के नाते उनकी अंतरआत्मा असम की एकता और अखंडता को चोट पहुंचाने वाले किसी भी क़दम का समर्थन नहीं करेगी।
गोस्वामी ने कहा है कि वह इस विधेयक को लेकर अपने स्टैंड पर कायम हैं और भविष्य में भी कायम रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘विधानसभा स्पीकर होने के नाते अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों के साथ मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित हूँ। लेकिन स्पीकर होते हुए भी मैं जनता से ऊपर नहीं हो सकता हूँ।’
गोस्वामी ने विधेयक के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे लोगों से असम में शांति बनाये रखने की अपील की। गोस्वामी ने कहा कि अपने 30 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने काफ़ी कुछ सीखा है और वह युवाओं के विचारों का सम्मान करते हैं।
अब कोर्ट में होगी परीक्षा
मोदी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास कराने में तो सफल रही है लेकिन इसकी अगली परीक्षा सुप्रीम कोर्ट में होगी। इंडियन यूनियन मुसलिम लीग (आईयूएमएल), जमीअत उलेमा-ए-हिंद विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस ने भी कहा है कि वह इस विधेयक के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी।
कैसे शांत होगा विरोध?
मोदी सरकार भले ही इस विधेयक को तीन पड़ोसी देशों में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का क़ानून बता रही हो लेकिन उसे यह भी सोचना चाहिए कि आख़िर देश के ही एक हिस्से में विधेयक को लेकर लोगों में उबाल क्यों है। यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्योंकि बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता इस विधेयक को लेकर चिंतित हैं। एनडीए में बीजेपी की सहयोगी और असम के अहम राजनीतिक दल असम गण परिषद का कहना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद बांग्लादेशी हिंदुओं के आने से असम बर्बाद हो जाएगा। बीजेपी के एक अन्य सहयोगी दल इंडीजीनस पीपल फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) ने भी विधेयक के विरोध में आवाज़ बुलंद की है। केंद्र सरकार असम और पूर्वोत्तर के लोगों के विरोध को कैसे शांत करेगी, यह एक बड़ा सवाल है।
अपनी राय बतायें