loader

नोटबंदी के बाद भी ‘कैशलेस इकॉनमी’ फ़ेल?

मोदी सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को जब नोटबंदी का एलान किया था तो इसके कई संभावित फ़ायदों के साथ ही यह भी कहा था कि इससे देश ‘कैशलेस इकॉनमी’ बनेगा। यानी कि लोग नक़दी से चीजें ख़रीदना कम करेंगे और डिजिटल ट्रांजेक्शन ज़्यादा करेंगे। लेकिन जो ताज़ा आंकड़े आए हैं, उनसे पता चलता है कि ‘कैशलेस इकॉनमी’ वाली बात धड़ाम हो गई है। 

आंकड़ों से पता चलता है कि 8 अक्टूबर, 2021 को ख़त्म हुए पखवाड़े पर लोगों ने 28.30 लाख करोड़ का कैश भुगतान किया, जबकि 4 नवंबर, 2016 को यह आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था। यानी इसमें 57.48 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 23 अक्टूबर, 2020 को ख़त्म हुए पखवाड़े में जनता के हाथ में दिवाली से पहले 15,582 करोड़ रुपये की और नकदी आई थी। यह हर साल 8.5 फ़ीसदी की या फिर 2.21 लाख करोड़ रुपये की रफ़्तार से बढ़ी है। 

ताज़ा ख़बरें

इससे पता चलता है कि सिस्टम में नक़दी लगातार बढ़ती रही है। बावजूद इसके कि केंद्र सरकार और आरबीआई ‘कैशलेस इकॉनमी’ को बढ़ावा देने की बात करते रहे हैं और इसका प्रचार भी करते रहे हैं। 

नक़दी से लेन-देन को बूस्ट तब मिला, जब केंद्र सरकार ने मार्च, 2020 में पहले लॉकडाउन का एलान किया। उस समय लोगों ने नक़दी जमा करनी शुरू की और इससे ज़रूरी चीजें ख़रीदी। क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लोग आस-पड़ोस की दुकानों पर ज़्यादा निर्भर थे और ऐसी बहुत सी जगहों पर नक़दी से ही सामान मिलता था। इस वजह से बाजार में नक़दी तेज़ी से आने लगी। 

हालांकि नोटबंदी के बाद से काफी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्होंने डिजिटल पेमेंट करना शुरू किया है लेकिन आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि अभी भी एक बड़ी आबादी कैश या नक़दी के जरिये ही भुगतान को प्राथमिकता देती है। 

नोटबंदी की वजह से देश में लाखों रोज़गार चले गए। आतंकवाद की कमर टूटने का जो दावा था, वह फ़ेल साबित हो गया। काले धन को लाने का दावा भी फ़ेल साबित हुआ और अब ‘कैशलेस इकॉनमी’ पर भी मोदी सरकार औंधे मुंह गिरी है।

त्योहारों के मौसम के दौरान कैश की मांग सबसे ज़्यादा रही। इसकी एक बड़ी वजह यह भी रही कि 15 करोड़ लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं। ऐसे लोग नक़दी से भुगतान पर ही ज़्यादा भरोसा करते हैं और खाते न होने की वजह से उनके पास डिजिटल पेमेंट का विकल्प नहीं है। 

देश से और ख़बरें
टियर 4 शहरों में 90 फ़ीसद ई-कॉमर्स वाले ट्रांजेक्शन नक़दी के जरिये ही होते हैं जबकि जबकि टियर 1 वाले शहरों में यह आंकड़ा 50 फ़ीसद है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें