दूसरे दल भी हैं साथ
कांग्रेस अपने किसी भी सहयोगी दल को अपनी भावना प्रकट करने से नहीं रोकती। ग़ौरतलब है कि तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद की शपथ से एक दिन पहले चेन्नई में करुणानिधि की प्रतिमा के अनावरण के मौक़े पर स्टालिन ने राहुल गाँधी को विपक्ष की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद का साझा उम्मीदवार घोषित करने का प्रस्ताव किया था। बाद में आरजेडी के तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी इस मांग को दोहराया था। इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी भी यही बात कह चुके हैं। अपने सहयोगी दलों के इस प्रस्ताव पर कांग्रेस ज़ाहिर तौर पर कुछ भी कहने से बच रही है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक़,जुलाई में नवगठित कांग्रेस कार्यसमिति की पहली बैठक में ही यह फ़ैसला लिया जा चुका है कि कांग्रेस की तरफ़ से राहुल गाँधी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार और उम्मीदवार होंगे। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता चुनाव से पहले राहुल गांधी को पीएम प्रत्याशी घोषित करने के हक़ में नहीं हैं।
आम सहमति नहीं
डीएमके नेता एम के स्टालिन और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की राय से विपक्ष के कई अन्य दल भी सहमत नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस बार इस पर सख़्त एतराज़ है। हालाँकि सार्वजनिक रूप से ममता बनर्जी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उनका साफ़ कहना है कि अभी प्रधानमंत्री पद के सवाल पर विवाद खड़ा करने के बजाय मोदी को हराने की रणनीति पर काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री चुनने का मसला चुनाव के बाद का है। दिल्ली में 10 दिसंबर को हुई विपक्षी दलों की बैठक में भी ममता बनर्जी ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि मोदी को हराने की लिए यही रणनीति बननी चाहिए कि जिस राज्य में जो पार्टी मज़बूत है, बाकी पार्टियाँ उसे वहाँ समर्थन दें। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में किसी के साथ किसी तरह का कोई समझौता नहीं चाहतीं। उनकी नज़र राज्य की सभी 42 सीटों पर है।वाम की ऊहापोह
वामपंथी दल भी राहुल गांधी को चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का साझा उम्मीदवार घोषित किए जाने के पक्ष में नहीं है। उनके सामने दिक़्क़त यह है कि केरल में उन्हें कांग्रेस से सीधी टक्कर लेनी है और पश्चिम बंगाल विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ उनका तालमेल था। उन्हें इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल करने में भी दिक़्क़त आएगी। अभी यह भी तय नहीं है कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में बनर्जी के साथ चुनावी तालमेल करना चाहेगी या वामपंथी दलों के साथ। वामपंथी दलों की राय भी यही है कि अपने-अपने राज्यों में सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करें। फिर चुनाव के बाद की स्थिति देख कर ही प्रधानमंत्री के मुद्दे पर सोचा जाए। कांग्रेस के सामने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी दलों के बीच तालमेल बैठाने की भी एक बड़ी चुनौती है। लिहाज़ा इस बारे में कुछ भी कह कर वह अभी पत्ते नहीं खोलना चाहती।
फिर बीएसपी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश दोनों को ही प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर राहुल गांधी कुबूल नहीं हैं। अखिलेश यादव तो सार्वजनिक तौर पर इसकी मुख़ालफ़त कर चुके हैं। वह साफ कर चुके हैं कि सभी क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में बीजेपी को हरा कर ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतने की कोशिश करें। प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसका फ़ैसला चुनाव के बाद इस आधार पर किया जाना चाहिए कि कौन दल कितनी ज़्यादा सीटें जीतकर लाता है। उत्तर प्रदेश से ख़बरें आ रही हैं कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं दी जाएगी। चर्चा यहां तक है कि मायावती के जन्मदिन 15 जनवरी को मायावती और अखिलेश यादव साझा प्रेस कांफ्रेंस करके गठबंधन का एलान करेंगे।
2009 में भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों का तालमेल आपसी रस्साकशी की वजह से नहीं हो पाया था। कांग्रेस अकेले लड़ी और वह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। कांग्रेस को लगता है कि 2009 की तरह इस बार भी उत्तर प्रदेश में हवा उसके पक्ष में बह रही है।
अपनी राय बतायें