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सरकार क्यों नहीं मान रही कि कोरोना वैक्सीन कम पड़ी?

देश में कोरोना वैक्सीन की कमी है या नहीं? इस सवाल का उन राजनेताओं के जवाब पर कितना भरोसा होगा जो एक तरफ़ चुनावी रैलियों में हज़ारों की भीड़ इकट्ठी करते हैं और फिर कोरोना से सचेत रहने को कहते हैं, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन, मास्क लगाने और टीके लगाने को कहते हैं? इसलिए राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों से अलग मुद्दा यह है कि आख़िर देश में कोरोना वैक्सीन की स्थिति क्या है?

इस सवाल का जवाब उन तथ्यों से मिल जाएगा जो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं। एक, 45 साल से नीचे के लोगों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी नहीं दी गई है। दो, जहाँ कोरोना अनियंत्रित है वहाँ भी 45 से कम उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने की छूट नहीं दी जा रही है। तीन, वैक्सीन बनाने वाली कंपनियाँ सरकार से पैसे माँग रही हैं कि वे वैक्सीन बनाने की क्षमता दोगुना कर सकें। और चार, उससे भी बड़ी बात सरकार का यह बयान कि 'कोरोना वैक्सीन उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं जिनको इसकी ज़रूरत है, न कि उनके लिए जो इसे चाहते हैं'। इन तथ्यों से क्या यह साफ़ नहीं है कि वैक्सीन की माँग ज़्यादा है और इसकी पूरी पूर्ति नहीं की जा रही है?

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जब सरकार ने कहा कि कोरोना टीका के लिए स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स का नया पंजीकरण नहीं किया जाएगा तो भी इसने तर्क दिया था कि ऐसा इसलिए किया गया है कि 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को टीकाकरण का जो अभियान जारी किया गया है वह बाधित न हो पाए। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया था कि यह फ़ैसला मुख्य तौर पर इसलिए लिया गया है क्योंकि इन दो श्रेणियों में से कुछ अपात्र लाभार्थी अपना नाम जुड़वा रहे हैं और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए टीकाकरण करवा रहे हैं। सरकार यह क्यों कह रही थी, यह इतनी छिपी हुई बात भी नहीं है!

अब उन रिपोर्टों को पढ़िए जिनमें कहा गया है कि महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे, सतारा और पनवेल क्षेत्र में कोरोना वैक्सीन कम पड़ने की वजह से टीकाकरण केंद्रों को बंद करना पड़ा है। सतारा ज़िला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विनय गौडा और पनवेल नगरपालिका के नोटिस में यह दावा किया गया है। मुंबई में गुरुवार को कम से कम 26 कोरोना टीकाकरण केंद्र बंद करने पड़े हैं।

एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने ट्वीट किया कि टीकाकरण की कमी के कारण पुणे में 100 से अधिक टीकाकरण केंद्र बंद हैं। उन्होंने बुधवार रात ट्वीट किया, 'पुणे ज़िला ने आज 391 टीकाकरण केंद्रों में 55,539 व्यक्तियों का टीकाकरण किया। कई हज़ार लोग बिना टीकाकरण किए वापस चले गए क्योंकि टीके का स्टॉक ख़त्म हो गया।' 

उन्होंने ट्वीट में कहा, '109 केंद्र आज बंद रहे क्योंकि उनके पास टीकों का कोई भंडार नहीं था। स्टॉक की कमी के कारण हमारी गति टूट सकती है। हम जीवन बचाने, संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने और जल्द से जल्द अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने के लिए सहमति व्यक्त करने वाले सभी लोगों का टीकाकरण करने के लिए दृढ़ हैं।'

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने बुधवार को कहा था कि अब महाराष्ट्र के पास 14 लाख वैक्सीन के डोज बचे हैं जिसका मतलब है कि यह तीन दिन का स्टॉक है।

टोपे ने यह भी कहा था कि राज्य को हर हफ़्ते 40 लाख डोज चाहिए ताकि हर रोज़ 5 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई जा सके। उन्होंने कहा था कि केंद्र के साथ बैठक में उन्होंने टीके कम पड़ने की जानकारी दी थी।

हालाँकि उनके इस बयान पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने आरोप लगाया कि कोरोना की ज़िम्मेदारी से बचने और वास्तविक स्थिति से ध्यान भटकाने के लिए ये बातें कही जा रही हैं। उन्होंने दावा किया था कि देश में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है।

coronavirus vaccine shortage in india allegations  - Satya Hindi

इस बीच महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश जैसे दूसरे राज्यों से भी वैक्सीन की कमी की ख़बरें आईं हैं। 'इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश में भी कोरोना टीका ख़त्म हो रहे हैं। 

ट्विटर पर लोग राज्यों में टीकाकरण केंद्रों पर वैक्सीन नहीं होने की शिकायतें कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और सेफोलॉजिस्ट संजय कुमार ने ट्वीट किया है, 'पिछले 3 दिनों से ग़ाज़ियाबाद के वसुंधरा के ले क्रेस्ट अस्पताल में वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है क्योंकि मुझे मेरी माँ और खुद को टीका लगवाना है।' उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा है कि उन्होंने वसुंधरा में तीन निजी अस्पतालों में फ़ोन किया और उन तीनों में टीके उपलब्ध नहीं थे। 

तो सवाल है कि ऐसे हालात कैसे बने? क्या इसलिए कि कोरोना वैक्सीन की सीमित कंपनियों को टीका बनाने का काम दिया गया है? जानकार तो कम से कम सरकार की वैक्सीन नीति पर सवाल उठाते रहे हैं। सरकार ने देश में कोरोना वैक्सीन की दो कंपनियों- एस्ट्राज़ेनेका से क़रार करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक- को ही टीके के इस्तेमाल की मंजूरी दी है। फाइजर को मंजूरी नहीं दी गई। स्पुतनिक भी भारत में टीके लाने के प्रयास में है।

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देश में कोविशील्ड और कोवैक्सीन के जो दो टीके हैं उनकी भी उत्पादन की क्षमता सीमित है। निजी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट महीने में 6.5 करोड़ कोविशील्ड वैक्सीन बना सकती है। भारत सरकार भी एक खरीदार है। यानी सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत में वैक्सीन बेच सकता है। कोवैक्सीन देश में टीकाकरण में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी ही ही सहभागी है। मार्च में सरकार ने दो करोड़ टीके का ऑर्डर दिया था। 

कोरोना की दूसरी लहर पर शोर मचने से पहले कहा यह जा रहा था कि भारत की वैक्सीन डिप्लोमैसी शानदार है। लेकिन स्थिति यह है कि सिर्फ़ 1.05 करोड़ वैक्सीन ही ग्रांट के तौर पर दी गई है, 3.5 करोड़ वैक्सीन व्यावसायिक तौर पर बेचा गया है और 1.8 करोड़ वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स फैसिलिटी के तहत निर्यात की गई है। 

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भारत की वैक्सीन नीति पर एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि सरकार ने टीके के लिए प्राथमिकता समूह तय कर रखा है। अब तक यह इस आधार पर तय किया गया कि जो कोरोना से ज़्यादा प्रभावित होंगे, जैसे- स्वास्थ्य कर्मी, फ्रंट लाइन वर्कर्स और बुजुर्ग और कोमोर्बिडिटीज वाले मरीज़, उनको पहले टीका लगाया जाएगा। लेकिन अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्यों न कंटेनमेंट ज़ोन के आधार पर टीकाकरण अभियान चलाया जाए। यानी उस ज़ोन में सभी लोगों को टीके क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं।

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क़मर वहीद नक़वी

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