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चीन के कहने पर सीपीआई, सीपीआईएम ने किया था भारत-अमेरिका परमाणु संधि का विरोध?

क्या सीपीआई, सीपीआईएम ने भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते का विरोध चीन के कहने पर किया था?

पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने यह बेहद गंभीर और सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि चीन ने भारत की घरेलू राजनीति का इस्तेमाल कर सरकार पर दबाव डाला था। 

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विजय गोखले ने अपनी किताब 'द लॉंग गेम, हाऊ द चाइनीज़ ऑपरेट इन इंडिया' में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी पर यह आरोप लगाया है, जिसके राजनीतिक निहितार्थ हैं।

भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते के तहत भारत को न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप से छूट मिल गई थी और उसे यह इजाज़त मिली थी कि वह अमेरिका के मित्र देशों से परमाणु भट्ठियाँ, परमाणु सामग्री व उपकरण वगैरह खरीद सकता है।  

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डॉक्टर मनमोहन सिंह उस समय प्रधानमंत्री थे। जिस समय इस समझौते पर बातचीत चल रही थी, उस समय यानी 2007-09 में गोखले विदेश मंत्रालय में पूर्व एशिया विभाग में संयुक्त सचिव थे। 

विजय गोखले को चीन का विशेषज्ञ माना जाता है, उन्होंने 20 साल चीन में गुजारे हैं, चीन में राजदूत रहे हैं और धारा प्रवाह मैंडरिन बोल लेते हैं। उनके इस आरोप पर तूफान मचना तय है। 

किताब में एक जगह लिखा हुआ है, 

चीन ने भारत में अपने नज़दीकी संपर्कों का इस्तेमाल किया, सीपीआई और सीपीआईएम के नेता विचार विमर्श और इलाज के लिए चीन जाते रहते थे।


विजय गोखले की किताब 'द लॉंग गेम, हाऊ द चाइनीज़ ऑपरेट इन इंडिया' का अंश

क्या है किताब में?

विजय गोखले का मानना है कि 'ये दोनों ही कम्युनिस्ट पार्टियाँ राष्ट्रवादी थीं, पर चीन को यह पता था कि वे अमेरिका से परमाणु समझौते के ख़िलाफ़ थीं। यूपीए सरकार पर उनके प्रभाव और प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से उनकी करीबी का नतीजा यह हुआ कि वे उन्हें इस परमाणु समझौते पर अपने डर के बारे में बताते रहे, समझाते रहे। यह पहला मौका है जब चीन ने इन दलों का इस तरह इस्तेमाल किया था।'

गोखले ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि चीन ने भारत के साथ दोतरफा बातचीत में कभी भी अमेरिका के साथ होने वाले 123 परमाणु समझौते पर आपत्ति नहीं जताई, न ही न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप से मिलने वाली छूट का विरोध किया।

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तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ मनमोहन सिंह

किताब में कहा गया है कि बीजिंग ने इसके बदले वामपंथी झुकाव वाले पत्रकारों और कम्युनिस्ट पार्टियों का इस्तेमाल किया क्योंकि ये ख़ुद अमेरिका और उस समझौते के ख़िलाफ़ थीं। 

सीपीआईएम का जवाब

सीपीआईएम महासचिव सीताराम येचुरी ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से बात करते हुए इससे इनकार किया है। उन्होंने कहा कि 'उनकी पार्टी परमाणु समझौते के ख़िलाफ़ इसलिए थी कि यह कुल मिला कर अमेरिका के साथ सामरिक रिश्तों की नींव डालने के लिए था। बाद की घटनाओं से यह साफ हो गया है कि हमारा सोचना सही था।' 

येचुरी ने कहा,

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते से हमें आख़िरकार क्या मिला? वे कहते थे कि इससे हमारी परमाणु क्षमता बढेगी, पर क्या ऐसा हुआ? कुछ नहीं हुआ। सिर्फ यह हुआ कि हम अमेरिका के साथ सैन्य समझौते में जुड़ गए और हमारी यही आशंका थी।


सीताराम येचुरी, महासचिव, सीपीआईएम

यह साफ है कि बीजेपी और दूसरी दक्षिणपंथी ताक़तें इस मुद्दे को उठाएंगी और सीपीआई व सीपीआईम को घेरेंगी। उन पर देशद्रोह तक का आरोप लग सकता है और चीन के साथ मिलभगत कर देश को नुक़सान पहुंचाने का भी। 

यह बात दीगर है कि उस समय खुद बीजेपी ने उस समझौते का विरोध किया था। इस समझौते की वजह से ही वाम दलों ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। 

यूपीए के पास सिर्फ 228 सदस्य थे और सीपीआई व सीपीआईएम के 44 सदस्यों के समर्थन से सरकार चल रही थी। 

समाजवादी पार्टी के 39 और राष्ट्रीय लोक दल व जनता दल सेक्यूलर के तीन-तीन सदस्यों के समर्थन से मनमोहन सिंह सरकार बच गई थी। 

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क़मर वहीद नक़वी

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