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अमेरिकी राष्ट्र्पतियों के पहले का दौरा और अब ट्रंप की यात्रा, कितना होगा सफल?

क्या डोनल्ड ट्रंप का भारत दौरा अतीत में हुई अमेरिकी राष्ट्रपतियों की यात्रा की तरह ही कामयाब और सुखद होगा? क्या उनकी यात्रा ड्वाइट आइजनहॉवर  या जॉर्ज बुश की यात्रा की तरह उत्साहवर्द्धक नतीजे देगी या रिचर्ड निक्सन की तरह अमेरिका से भारत के रिश्ते और तल्ख़ हो जाएंगे? सरकार की  तरफ़ से ज़ोरदार प्रचार किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप के दोस्त हैं और दोनों नेताओं के निजी रिश्तों से भारत को बहुत लाभ होने को है। क्या सचमुच? 

ड्वाइट आइजनहॉवर

भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहॉवर थे। वह जब दिसंबर 1959 को भारत पहुँचे, दिल्ली में उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। यह वह दौर था, जब शीत युद्ध शुरू हो चुका था, पाकिस्तान अमेरिका की ओर झुक चुका था। भारत यूं तो गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेता था और तटस्थ था, पर साफ़ हो चुका था कि वह धीरे-धीरे सोवियत संघ की ओर झुकने लगा था।
Donald Trump India visit compared to visits of other US presidents - Satya Hindi
आइजनहॉवर की इस यात्रा की तुलना ट्रंप के दौरे से की जा रही है, क्योंकि वह भी ताजमहल देखने आगरा गये थे। दिल्ली के रामलीला मैदान में बहुत बड़ी सभा हुई थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि लगभग 10 लाख लोग उसमें मौजूद थे। हवाई अड्डे से राष्ट्रपति भवन तक तकरीबन एक लाख लोगों ने हाथ हिला कर उनका स्वागत किया था।

रिचर्ड निक्सन

लेकिन रिचर्ड निक्सन का भारत दौरा इतना अच्छा और कामयाब नहीं रहा। अगस्त, 1969 में भारत आने के बहुत पहले यानी 1953 में ही उप राष्ट्रपति बन चुके थे और वह भारत से चिढ़ते थे। जिस समय वह भारत आए, इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं, जिन्हें निक्सन नापसंद करते थे। निजी बातचीत में उनके लिए अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल कर चुके थे। भारत की गुटनरिपेक्षता उन्हें तकलीफ देती थी। और वो भारत को अपने कट्टर दुश्मन देश सोवियत संघ के साथ मानते थे।
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उनकी यात्रा के बाद ही बांग्लादेश में संकट उभरा और शरणार्थियों का जत्था आने लगा, भारत के कहने के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान पर कोई दबाव नहीं डाला। भारत-अमेरिका सम्बन्ध बिगड़ते चले गए और 1971 के बांग्लादेश युद्ध में अमेरिका खुलेआम पाकिस्तान के साथ खड़ा था।

जिमी कार्टर

जिमी कार्टर 1978 में भारत आए तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। कार्टर भी ताजमहल गए, लौटते हुए दिल्ली के पास एक गाँव में रुके, जहां कार्टर की मां कभी आई थीं। जिमी कार्टर ने एक टीवी सेट भी उस गाँव को उपहार में दिया, जो उन दिनों बड़ी बात मानी जाती थी।
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लेकिन बाहर से दिखने वाला यह प्रेम भाव तसवीरें खिंचवाने का मौका ही साबित हुआ। उस समय तक भारत अपना पहला परमाणु परीक्षण (1974 में ही) कर चुका था, जिससे अमेरिका नाराज़ था। कार्टर चाहते थे कि भारत परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तख़त कर दे और यह ऐलान करे कि परमाणु हथियार कभी नहीं बनाएगा। इसके साथ ही भारत परमाणु अप्रसार की शर्तों को लागू करे। भारत इसके लिए तैयार नहीं था। दोनों देशों के एक साझा बयान जारी करने के बावजूद, कार्टर यहां से लौटते वक्त निराश और नाराज़ थे।

बिल क्लिंटन

इसके दो दशक बाद 2000 में बिल क्लिंटन भारत आए। उन्होंने भारत की तारीफ़ की। वह दिल्ली के अलावा मुंबई और हैदराबाद भी गए। उन्होंने कंप्यूटर के क्षेत्र में भारत की मदद करने का भरोसा दिया। वह यात्रा सुखद मानी गई।
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जॉर्ज बुश

डॉक्टर मनमोहन सिंह के समय 2005 में जॉर्ज बुश जूनियर की यात्रा को बेहद सफल माना गया। बुश मनमोहन सिंह का बहुत सम्मान करते थे। बाद में बु़श और मनमोहन की दोस्ती का नतीजा था भारत -अमेरिका परमाणु संधि, जिसके तहत अमेरिका ने भारत को परमाणु बिजलीघर बनाने में मदद करने का ऐलान किया। 
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उन्होंने भारत को परमाणु क्षेत्र में हर तरह की मदद करने का भरोसा दिया और यह मान लिया गया कि परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तख़त किए बगैर भारत को ये तमाम सुविधाएं मिलनी चाहिए। इस कऱार का काफी विरोध भी हुआ था और मनमोहन सिंह की सरकार गिरते-गिरते बची थी। 

बराक ओबामा

बराक ओबामा अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो दो बार पद पर रहते हुए भारत आए-2010 और 2015 में। पहली बार उनका स्वागत मनमोहन सिंह ने किया तो दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
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मुंबई में 2008 में हुए पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादी हमले पर भारत के प्रति एकजुटता जताने के लिए ओबामा दिल्ली न उतरकर सीधे मुंबई उतरे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी की बात उठाई और समर्थन का वायदा किया।
ओबामा जब अगली बार 2015 में भारत आए, मोदी ने उनका स्वागत किया। 
ट्रंप के भारत आने के पहले वैसा ही वातावरण है, जैसा रिचर्ड निक्सन के समय था। ट्रंप मोदी दोस्ती के दावों के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार और कश्मीर के मुद्दे पर दूरियां बढ़ी हैं। ट्रंप ने एक बार नहीं, कई बार भारत को सबक सिखाने की बात कही है। उन्होंने व्यापार में भारत को मिल रही रियायतें पहले ही ख़त्म कर दी हैं और भारत पर दबाव बढ़ाए जा रहे हैं।
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प्रमोद मल्लिक

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