चंद्रशेखर आज़ाद रावण के नेतृत्व वाले संगठन भीम आर्मी और पीएफ़आई यानी पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया के बीच संबंध बताने वाली रिपोर्टों को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने खारिज कर दिया है। ईडी ने साफ़ तौर पर कहा है कि इसने इन दोनों संगठनों के बीच कोई लिंक नहीं पाया है। योगी सरकार पीएफ़आई पर नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगाती रही है। इसी कारण पीएफ़आई से जुड़े लोगों और संगठनों को योगी सरकार निशाने पर ले रही है। हाथरस गैंगरेप मामले में भी सरकार इसी पीएफ़आई की साज़िश की बात कह रही है।
इसी हाथरस मामले से जुड़ी एक अपुष्ट ख़बर पर कि 100 करोड़ रुपये बरामद किए गए हैं, 'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार ईडी ने इसे ग़लत बताया है। ईडी की यह सफ़ाई तब आई है जब उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृज लाल ने दावा किया कि भीम आर्मी ऐसे ही दूसरे गुट हाथरस गैंग पीड़िता के परिवार को बहका रहे थे। बृज लाल ने दावा किया था कि पीड़िता और उसके परिवार ने पहले एक पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था और आठ दिन बाद उन्होंने तीन और लोगों पर दुष्कर्म के आरोप लगा दिए थे।
बृज लाल ने दावा किया, 'घटना में एक नया मोड़ तब आया जब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर अपने समर्थकों के साथ अस्पताल में महिला को देखने गए। पहले से ही तनाव में परिवार अलग-अलग सुझाव देने वाले लोगों से भ्रमित हो गया और अब वे सीबीआई जाँच, पॉलीग्राफ/नार्को टेस्ट से पीछे हट रहे हैं।'
बहरहाल हाथरस मामले में चौतरफ़ा आलोचनाओं का सामना कर रही योगी सरकार ने अब कहा है कि हाथरस मामले में साज़िश रची गई थी। इसी बीच हाथरस जा रहे एक पत्रकार और तीन अन्य लोगों को पुलिस ने मथुरा से 5 अक्टूबर की देर रात को हिरासत में लिया था। पुलिस का दावा है कि ये पीएफ़आई यानी पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़े हैं और वे सभी दिल्ली से एक कार में हाथरस जा रहे थे। उन्हें मथुरा में रोका गया और हिरासत में लिया गया।
इस मामले में आरोप लगाया गया कि हाथरस में विपक्ष, कुछ पत्रकारों व नागरिकता क़ानून विरोधी आंदोलन से जुड़े संगठनों के साथ कुछ सामाजिक संगठन योगी सरकार की छवि बिगाड़ने की साजिश रच रहे थे और इनके ख़िलाफ़ कारवाई की जा रही है।
पिछले कुछ दिनों से योगी सरकार की ओर से ‘हाथरस केस में बड़ा खुलासा’ के नाम से प्रसारित किए जा रहे मैसेज में कहा जा रहा है कि जातीय दंगे करा कर दुनिया भर में मोदी और योगी को बदनाम करने के लिये रातों-रात ‘दंगे की वेबसाइट’ बनाई गई।
बहरहाल, चार लोगों को हिरासत में लेने के मामले में पुलिस ने कहा है कि जब उन्हें जानकारी मिली कि कुछ 'संदिग्ध लोग दिल्ली से हाथरस जा रहे हैं', चार लोगों- अतीक-उर रहमान, सिद्दीक कप्पन, मसूद अहमद और आलम को एक टोल पर रोका गया। पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में कहा है, 'उनके मोबाइल फ़ोन, एक लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया है। पुलिस का कहना है कि ये सामान राज्य में क़ानून और व्यवस्था व शांति को प्रभावित कर सकते हैं।
इसी ख़बर के बाद कुछ अपुष्ट ख़बरों में चंद्रशेखर का नाम पीएफ़आई से जोड़ा जा रहा था। वैसे, योगी सरकार चंद्रशेखर आज़ाद रावण के बीच छत्तीस का आँकड़ा रहा है। योगी सरकार चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ काफ़ी आक्रामक रही है और चंद्रशेखर भी सरकार पर हमलावर रहे हैं।
योगी सरकार और चंद्रशेखर आज़ाद के बीच 2017 में सहारनपुर हिंसा के बाद तनातनी काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में दलित और ठाकुर समुदाय के बीच जातीय हिंसा हुई थी। घटना के बाद चंद्रशेखर का नाम सामने आया था, पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ कई धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया था। बाद में उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। दो नवंबर 2017 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंद्रशेखर को जमानत दे दी तो उत्तर प्रदेश सरकार ने रासुका लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में रासुका की अवधि बढ़ा दी गई थी। इसके बाद से चंद्रशेखर और ज़्यादा आक्रामक हो गए हैं और दलितों, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले को उठाते रहे हैं।
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