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ज़ुल्म ढाने के बजाए किसानों से बात करे सरकार

अन्न उपजाने वाले किसानों पर बेरहमी से आंसू गैस के गोले छोड़ना, इतनी ठंड में उन पर पानी की बौछार करना, लाठीचार्ज करना; इसका यही मतलब है कि हुक़ूमत किसानों के लिए नरम दिल नहीं है या उसे उनका आवाज़ उठाना नागवार गुजरा है।

पवन उप्रेती

135 करोड़ की आबादी वाले मुल्क़ की राजधानी दिल्ली में देश की संसद, सर्वोच्च न्यायपालिका, देश के सारे सांसदों के आवास, अहम सरकारी महक़मों के दफ़्तरों के अलावा और भी काफ़ी कुछ है। यहां हर आदमी अपनी फरियाद लेकर आता रहा है और कभी किसी सरकार ने ऐसा सख़्त रूख़ नहीं दिखाया कि उसे न आने दिया जाए। 

लेकिन केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली कूच कर रहे देश के अन्नदाताओं पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है। हरियाणा की बीजेपी शासित खट्टर सरकार किसी क़ीमत पर किसानों को पंजाब से अपने राज्य की सीमा में नहीं घुसने देना चाहती। उसने सरकार की पूरी ताक़त का इस्तेमाल सिर्फ़ इसके लिए किया है कि किसान किसी भी क़ीमत पर उसके राज्य से होते हुए दिल्ली न पहुंच पाएं। 

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25 साल के युवा से लेकर 70 साल तक के बुजुर्ग ‘दिल्ली चलो’ मार्च में शिरकत कर रहे हैं। वे कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। शायद, केंद्र सरकार ने उनसे बात करने में इतना कठोर रवैया नहीं अपनाया होता, तो वे लाखों की संख्या में इतनी ठंड में घर-परिवार को छोड़कर दिल्ली आने के लिए मजबूर नहीं हुए होते। 

किसान को समझे सरकार

मोदी सरकार को यह समझना चाहिए कि खेती किसान का पुश्तैनी काम है, वह जानता है कि उसे किस तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। वह जानता है कि उसे अपने अनाज की सही क़ीमत के लिए साल भर मेहनत करने के बाद बिचौलियों से लेकर, आढ़तियों के भरोसे रहना होता है। वह अपने पेशे को बहुत अच्छे ढंग से जानता है। 

वह जानता है कि इस देश में कृषि सुधारों के लिए मैराथन भाषण दिए जाते हैं लेकिन हर साल, हर दिन किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। इसीलिए, वह सरकार तक आवाज़ पहुंचा रहा है कि उसके नए क़ानूनों में कुछ ख़ामियां हैं, उन्हें वह दूर कर ले तो वह फिर से नई ऊर्जा के साथ काम में जुटेगा। 

अन्न उपजाने वाले किसानों पर बेरहमी से आंसू गैस के गोले छोड़ना, इतनी ठंड में उन पर पानी की बौछार करना, लाठीचार्ज करना; इसका यही मतलब है कि हुक़ूमत किसानों के लिए नरम दिल नहीं है या उसे उनका आवाज़ उठाना नागवार गुजरा है।

हरियाणा सरकार ने पंजाब की तरह ही दिल्ली से लगने वाले उसके बॉर्डर्स को भी सील कर दिया है। मतलब कि हरियाणा से भी किसान दिल्ली नहीं पहुंच सकें। दिल्ली-उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर भी भारी पुलिस फ़ोर्स तैनात है। 

पंजाब संग सौतेला व्यवहार क्यों?

पिछले चार महीनों से पंजाब और हरियाणा में मरकज़ी सरकार के इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान मुखर हैं। दो महीने तक पंजाब में रेलगाड़ियां व मालगाड़ियां नहीं गईं, राज्य सरकार के सुरक्षा का भरोसा देने के बाद भी केंद्र सरकार हठ पर अड़ी रही। पंजाब की माली हालत चरमरा चुकी है। कोयला न पहुंचने के कारण पावर प्लांट लंबे वक़्त तक बंद रहे। किसान पूछते हैं कि आख़िर पंजाब से किस बात का बदला लिया जा रहा है। क्या सिर्फ़ अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने का।

farmers protest in delhi against farm laws 2020 - Satya Hindi

रोज़गार देने वाले राज्य

हरियाणा और पंजाब देश के अन्न के कटोरे कहे जाते हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां खेती के काम से जुड़े हैं। इन राज्यों में बाहर से कई सूबों के लोग आकर खेती और इससे जुड़े दूसरे कामों से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। इसका मतलब उन्हें रोज़गार मिलता है। पेट भरने से लेकर रोज़गार देने तक का काम इन राज्यों के किसान करते हैं। लेकिन मोदी सरकार इन किसानों से बात तक करने में अहसान दिखा रही है। 

देखिए, कृषि क़ानूनों पर चर्चा- 

केंद्र सरकार कहती है कि हमने बातचीत के लिए किसानों को 3 दिसंबर को बुलाया है। सरकार जानती थी कि किसान 26 नवंबर को दिल्ली आ रहे हैं तो पहले ही बात कर लेती। ये बहुत साधारण सी बात है। 

farmers protest in delhi against farm laws 2020 - Satya Hindi

भारत में किसान आंदोलनों का गर्व करने वाला इतिहास रहा है। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के बड़े नेता थे और जब लाखों किसानों को लेकर दिल्ली आए थे तो हुक़ूमत को किसानों की ताक़त का अंदाजा हुआ था। 

केंद्र सरकार को याद रखना चाहिए कि ये देश का कृषि क्षेत्र ही है, जिसने लॉकडाउन के बाद रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था को सहारा दिया और लोगों को भूखे नहीं सोने दिया। आज जब किसान हुक़ूमत की कुछ बातों से ख़फ़ा हैं तो बजाए उनसे बात करने के उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिए ताक़त का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

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आवाज़ सुनें पीएम मोदी 

किसानों के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी कुछ कहते रहे हैं। लेकिन क्या वे देख नहीं रहे हैं कि इस अच्छी-खासी ठंड में दिन-रात हक़ की लड़ाई लड़ रहे किसानों के साथ क्या सलूक किया जा रहा है। देश उनसे यही उम्मीद करता है कि उन्हें आगे आकर किसानों के साथ हो रहे इस बर्ताव की मज़म्मत करनी चाहिए और इनके डेलीगेशन को मिलने के लिए तुरंत बुलाना चाहिए। 

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पवन उप्रेती

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