किसान नेताओं ने कहा है कि बातचीत के लिए शर्त रखना किसानों का अपमान है। इसके साथ ही उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह की बातचीत की पेशकश को ठुकरा दिया है। गृह मंत्री ने एक दिन पहले ही कहा था कि सरकार किसानों की सभी माँगों पर बात करने को तैयार है बशर्ते वे सरकार द्वारा तय जगह पर चले जाएँ। लेकिन किसानों ने यह मानने से इनकार कर दिया है। अब किसान आरपार के मूड में हैं।
बीकेयू क्रांतिकारी (पंजाब) के राज्य अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, 'बातचीत के लिए सामने रखी गई शर्त किसानों का अपमान है। हम कभी बुराड़ी (दिल्ली) नहीं जाएँगे। यह एक पार्क नहीं बल्कि एक खुली जेल है।' उन्होंने कहा, 'बुराड़ी में खुली जेल में जाने के बजाय, हमने तय किया है कि हम दिल्ली में 5 मुख्य प्रवेश की जगहों को बंद करके दिल्ली का घेराव करेंगे।' किसानों ने चार माँगें भी सामने रखीं, जिनमें एमएसपी की गारंटी, तीन कृषि बिलों को ख़त्म करना, बिजली अध्यादेश को रोकने और पराली जलाने पर जुर्माने को ख़त्म करना शामिल है।
गृह मंत्री की पेशकश को ठुकराने का सीधा मतलब यह है कि किसान अपनी शर्तों पर ही प्रदर्शन करते रहेंगे और नये कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने पर अड़े रहेंगे। किसान नये कृषि क़ानूनों को कृषि विरोधी बता रहे हैं। उन्हें डर है कि नये प्रावधान से मंडी व्यवस्था, न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान ख़त्म हो जाएगा और कृषि पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो जाएगा। इसी के ख़िलाफ़ पंजाब और हरियाण के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और वे दिल्ली बॉर्डर पर जमे हुए हैं।
किसानों ने शनिवार को भी बुराड़ी के निरंकारी समागम ग्राउंड पर जाने से इनकार कर दिया और कहा है कि उन्हें जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए। किसान नेताओं का कहना है कि जब तक उन्हें जंतर-मंतर पर जाने की इजाजत नहीं दी जाती, वे दिल्ली के बॉर्डर पर ही जमे रहेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा था कि अगर किसान संगठन ये चाहते हैं कि भारत सरकार उनसे 3 दिसंबर से पहले बात करे तो वे दिल्ली पुलिस द्वारा तय की जगह पर आ जाएँ, उसके दूसरे ही दिन भारत सरकार उनसे बातचीत करेगी।
सरकार की परेशानी यह है कि किसान अड़े हुए हैं। वे कह रहे हैं कि छह महीने का राशन साथ लेकर आए हैं, कम पड़ेगा तो और मंगा लेंगे। यानी उनका कहना साफ़ है कि नये कृषि क़ानून को वापस लिए जाने तक वे दिल्ली में ही प्रदर्शन करते रहेंगे।
बता दें कि किसानों की इस घोषणा से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नये कृषि क़ानूनों का ज़िक्र किया। किसान जिन क़ानूनों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे हैं उनको प्रधानमंत्री ने रविवार को किसानों के लिए नई संभावनाओं के दरवाजे खोलने वाला बताया है। प्रधानमंत्री ने तो यहाँ तक कहा कि वर्षों से किसानों की जो माँगें थीं वे अब पूरी हुई हैं। प्रधानमंत्री का यह बयान नये कृषि क़ानून के संदर्भ में है। प्रधानमंत्री का यह बयान 'मन की बात' कार्यक्रम में आया है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भी बयान आया था। उन्होंने कहा था कि यदि किसानों में ग़ुस्सा है और उनकी माँगें हैं तो वह किसानों से बात करेंगे। अब ज़ाहिर है गृह मंत्री ऐसी बात कर रहे हैं तो उन्हें भी पता है कि किसान नये कृषि क़ानूनों से नाराज़ हैं। यह पूरा देश यह जानता है।
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