किसानों का आंदोलन भले ही तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध से शुरू हुआ था, लेकिन इन क़ानूनों के वापस लिए जाने पर ही यह ख़त्म नहीं हुआ। किसान इन क़ानूनों के अलावा छह अन्य मांगों को लेकर भी प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन पहले सरकार इस पर राजी नहीं हो रही थी।
लंबे चले संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव से ऐन पहले सरकार ने किसानों की क़रीब-क़रीब सभी मांगें मान ली हैं। इसने किसान नेताओं से बातचीत की मांगें माने जाने का प्रस्ताव पेश किया। इस पर किसान नेता पिछले दो दिन से गहन मंथन कर रहे थे और आज सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने स्वीकार कर लिया। तो सवाल है कि आख़िर किसानों की मांग क्या-क्या थी और और सरकार ने किन-किन मांगों को किस रूप में माना।
सरकार ने ये मांगें मानीं-
- केंद्र एमएसपी पर एक समिति बनाने को सहमत है। इसमें अधिकारी, कृषि विशेषज्ञ और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि होंगे।
- केंद्र किसानों के ख़िलाफ़ सभी पुलिस मामले वापस लेने को सहमत है। इसमें सुरक्षा बलों से झड़पों को लेकर हरियाणा, यूपी में दर्ज केस भी शामिल हैं।
- किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने को लेकर किए गए मामले भी हटाए जाएंगे। दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर यह मुद्दा बनता रहा है।
- केंद्र ने कहा हरियाणा, यूपी ने जान गँवाने वाले किसानों के मुआवजे के लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है, पंजाब ने पहले ही घोषणा कर दी है।
- किसानों को प्रभावित करने वाले वर्गों के संबंध में एसकेएम सहित सभी हितधारकों से परामर्श के बाद ही बिजली बिल पेश होगा।
किसानों की ये छह मांगें थीं-
- एमएसपी को लेकर गारंटी क़ानून बनाना
- आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुक़दमे वापस लेना
- बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेना
- केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करना
- आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवज़ा देना
- पराली जलाने पर किसानों पर मुक़दमे का प्रावधान हटाना
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