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भगवान बचाए! 10 हज़ार आबादी पर 5 बेड; भारत 155वें स्थान पर

कोरोना महामारी के बीच दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में अस्पताल में मरीज़ों को भर्ती कराने के लिए लोगों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल टटोलते रहने की ख़बरें तो आपने पढ़ी ही होंगी। तब मरीज़ों को अस्पतालों में बेड भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। सरकार जल्दबाज़ी में अस्पताल के बेड तैयार करने में जुटी थी। यदि उन ख़बरों को नहीं पढ़ा है तो मानव विकास रिपोर्ट 2020 को ही देख लीजिए, अंदाज़ा हो जाएगा कि भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की कितनी ख़तरनाक स्थिति है। हर 10 हज़ार जनसंख्या पर सिर्फ़ 5 बेड हैं। इस मामले में भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान में भी भारत से बेहतर स्थिति है। 

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दरअसल, बेडों की उपलब्धता के मामले में 167 देशों की सूची में भारत 155वें स्थान पर है। दुनिया में युगांडा, सेनेगल, अफ़ग़ानिस्तान, बुर्किना फासो, नेपाल और ग्वाटेमाला सहित सिर्फ़ 12 देश ही हैं जहाँ प्रति 10 हज़ार जनसंख्या पर भारत से भी कम बेड उपलब्ध हैं। यानी भारत से बदतर स्थिति दुनिया के इन 12 देशों में ही है और बाक़ी देशों में भारत से बेहतर स्थिति है। 

अस्पतालों में बेडों की उपलब्धता से देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की मज़बूती का पता चलता है। क्योंकि महामारी जैसी किसी भी आपात स्थिति से निपटने में यह व्यवस्था काफ़ी महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि महामारी की स्थिति नहीं हो तो उसमें भी मरीज़ों की अच्छी देखभाल हो पाती है और उनके स्वस्थ होने की उम्मीद ज़्यादा होती है। जिन देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था कमज़ोर होती है वहाँ मरीज़ों की मरने की आशंका भी ज़्यादा होती है। 

अस्पतालों में बेडों की उपलब्धता तो अपेक्षाकृत कम है, लेकिन भारत में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने पर ज़ोर रहा है। हालाँकि इस मामले में भी भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है।

भारत में हर 10 हज़ार जनसंख्या पर 8.6 डॉक्टर उपलब्ध हैं। हर 10 हज़ार आबादी पर उपलब्ध डॉक्टरों के मामले में भारत 76 देशों से बेहतर स्थिति में है। इसमें से कई देश तो ऐसे हैं जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ भारत से बेहतर हैं। थाइलैंड और वियतनाम ऐसे ही देश हैं। हर 10 हज़ार आबादी पर थाइलैंड में 8.1 और वियतनाम में 8.3 डॉक्टर ही हैं जबकि हर 10 हज़ार जनसंख्या पर वियतनाम में 32 बेड और थाइलैंड में 20 बेड हैं। 

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भारत में डॉक्टरों की उपलब्धता की अपेक्षा स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति ज़्यादा ख़राब होने की वजह से ही शायद डॉक्टर अक्सर स्वास्थ्य सुविधाओं में अभाव की शिकायतें करते रहे हैं। अस्पतालों में बेड की कमी को स्वास्थ्य सुविधाओं के कमजोर होने का संकेत माना जाता है। 

अस्पतालों में बेड की कमी तब ख़ूब खली थी जब कोरोना संक्रमण के कारण देश भर के कई शहरों में मरीज़ों को बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। दिल्ली, मुंबई सहित कई शहरों में मेकशिफ़्ट अस्पताल और बेड तैयार किए गए। फिर भी स्थिति संभलती हुई नहीं दिखी तो राज्य सरकारों ने कोरोना संक्रमित मरीज़ों को होम क्वॉरंटीन में रहने की सलाह देनी शुरू की। स्वास्थ्य महकमों ने यह दिशा-निर्देश जारी किए कि गंभीर मरीज़ों को ही अस्पताल में भर्ती किया जाएगा और बाक़ी मरीज़ों का इलाज उनके घर पर ही किया जाएगा। 

वीडियो से समझिए, क्या नीति बन रही है भारत में कोरोना वैक्सीन के लिए?

ऐसे दिशा-निर्देश के बाद भी स्थिति ऐसी आ गई थी कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में शिकायतें की जाने लगी थीं कि बेड की कमी के कारण अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा रहा था और इलाज में देरी के कारण मरीज़ों की मौत की शिकायतें भी की गईं। 

बता दें कि कोरोना संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में दूसरे स्थान पर है। 99 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1 लाख 44 हज़ार से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं। शायद कोरोना की इस महामारी से सरकारों को स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त करने की सीख मिल पाए!

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क़मर वहीद नक़वी

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